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पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/७०

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95 "मेरी पैसा लगा बोले -" मगर अिन लोगोंकि रीत रिवाज दूसरे हैं। ये मांसाहारी, हम शाकाहारी, किस तरह मेल बैठे ?" बाप्पू - " नहीं भाभी, गुजरातके सिवा और कहाँ हिन्दू शाकाहारी हैं ? पंजाव, युक्तप्रान्त और सिन्धमें तो सभी मांसाहारी कहे जा सकते हैं। . . . . आज तो सब कुछ आगमें तपाया जा रहा है । जो हो जाय सो ठीक । यह विश्वास रखना चाहिये कि अच्छा ही होगा । आज सिविल सर्जन वापूको देखने आया था। जैसे वह भी अपकार करने आया हो, जिस ढंगसे बाकी छाती पर नली रखकर बोला - छाती अितनी अच्छी हो, तो मैं फूला न समायूं।" वस, अितना कहकर आगे चल दिया । बापने अपनी कलाओ और अँगुलीके दर्दकी बात ही न की । मेरा पैर देखा, मगर असके पास कोभी सुझाव नहीं था । जैसे कोओ बेगार टालने आया हो । शायद ही कोभी सिविल सर्जन बापूके साथ बातचीत करनेका लालच छोड़कर अिस तरह चला जाता होगा। अिस आदमीका संयम कितना बड़ा है ! जॉन अण्डर्सन सबके सर्टिफिकेट लेकर आया है। लास्कीके अिसके विषयके अद्गार बापूको बताये । बापू कहने लगे - ." सच्चे होंगे। अगर यह आदमी असा होगा, तो बंगालको वशमें कर लेगा । सुभाष, सेनगुप्त वगैराको समझायेगा । और कांग्रेसकी अपेक्षा करेगा । मुझे असा लगता है कि पंजाबमें भी जैसा ही होगा । मुझे औसा नहीं दीखता कि सारे हिन्दुस्तानमें अक ही साथ शान्ति स्थापित होगी । मेरी जैसी कल्पना है कि ये लोग अक अक प्रान्त ही शान्त करते जायेंगे।"

. बरामदेमें सोनेके बजाय मुझे बापूने आजसे बाहर सोनेको मजबूर किया और मेरे लिओ मेजरसे खाट माँगी । मेजर आज बहनोंके सम्बन्धमैं कहता था ." तीस चालीस पहनें आपको लिखना चाहती हैं, अनका अब क्या हो! अपना नाम लिख भेजें तो काम नहीं चलेगा? बापू बोले-" कहती हों तो मैं अनसे कहूँगा कि दो चार लकीरोंसे सन्तोष करना, लम्बा न लिखना। तो कैसा हो ! वे दो चार लकीरें लिखकर जो सन्तोष मान लें, तो अनसे अन्हें क्यों वंचित रखते हैं ? वे तो बेचारी सब गरीब हैं।" आज 'लीडर' की 'लंदनकी चिट्ठी' अच्छी थी। आम तौर पर पोलक नरम शन्दोंमें ही लिखते हैं, मगर अिस बार हिन्दुस्तानकी घटनाओं पर अन्होंने काफी गरम होकर लिखा है। बाका 'सी' क्लास मिला, बादमें 'ओ' मिला और कराचीकी अक ८० वर्षकी महिलाको पकड़ा गया, अिन बातों पर अन्होंने ६५ -५