पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/७२

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" बापू बोले- आम्बेड़कर अछूत बेकरीवालेने क बिल्ली पाली है। जिस दिल्लीको दो बच्चे हुझे हैं । वे अब बाहर निकलने लगे हैं। यापके खुले और चिकने पैरोंके १-४-३२ पास वह दिल्ली आकर बहुत बार चक्कर काटती थी। कल सवेरे बच्चेको लेकर आयी और बच्चा खेल करने लगा। विल्लीकी पूंछको चूहा मानकर दूरसे दौड़ता दौड़ता आवे, अस पूछको मुँहमें ले, काटे; बिल्ली पुंछको खींच ले, फिर छोड़ दे तो फिर वह बच्चा अिस पूंछको मुंहमें ले, नोचे, काटे और खेल करे । बाप रस्किन पक्ष रहे थे । असे छोड़कर की मिनट तक अिस खेलको देखते रहे । आज कुरेशी और दो महाराष्ट्री भाओ केम्पसे मिलने आये थे। जिन लोगोंसे बातें करनेके कारण बापूके कातनेमें आज देर हो गयी और दोपहरका सोना रह गया । बहनोंका पत्र भी आज आया । सब आनन्दमें हैं और अयोगमें दिन विताती हैं। आज शामको घूमते समय किसी प्रसंगको लेकर आम्बेड़करकी बात निकली। " मुझे तो विलायत गया तब तक पता नहीं था कि यह है। मैं तो मानता था कि यह कोभी ब्राह्मण होगा । अिसे अछूतोंके लिझे खुब लगी हुी है और वह अतिशयोक्ति भरी बातें जोशमें आकर करता है ।" वल्लभभाओने कहा "मुझे मितना तो मालूम था, क्योंकि वे ठक्करके साथ गुजरातमें घूमे थे, तब मेरे साथ जान पहचान हुी थी । बादमें ठक्करबापा और सर्वेट्स आफ मिडियाकी अछूतों सम्बन्धी वृत्तिकी बात निकली । बापू बोले "आज इस प्रश्नने जो स्वरूप ग्रहण किया है, असके लिये शुम्बसे ही अिन लोगोंकी अिस विषयकी वृत्ति जिम्मेदार है। जब १९१५ में गोखले गुजर गये और मैं पूना सर्वेट्स आफ सिंडिया सोसायटीके हॉलमें रहा था, तभी मैंने यह देख लिया था। वह प्रसंग मुझे अच्छी तरह याद है । मैंने देवघरसे सुनकी प्रवृत्तियोंका संक्षिप्त विवरण माँगा, जिससे मुझे पता चले कि मुझे क्या काम हाथमें लेना है । अिस विवरणमें अछूतोंके बारेमें यह या कि झुनके पास जाकर भाषण देना, अन पर कैसे अन्याय होते हैं अिस बारेमें अनमें जाग्रति करना वगैरा । मैंने देवधरसे कह दिया था कि 'मैंने मांगी रोटी और असके बदले पत्थर मिलता है। जिस ढंगसे अस्पृश्योंका काम कैसे हो सकता है ? यह सेवा नहीं है। यह तो हमारा मुरब्बीपन है । अछूतोंका अद्धार करनेवाले हम कौन ? हमें तो जिन लोगोंके प्रति किये पापका प्रायश्चित्त करना है, कर्ज लौटाना है ? यह काम अिन लोगोंको अपनानेसे होगा, जिनके सामने भाषण करनेसे नहीं होगा।' शास्त्री घबराये और बोले - 'मुझे यह अम्मीद नहीं थी कि आप अिस तरह न्यायासन पर बैठ कर बात करेंगे ।' हरिनारायण आपटे भी बहुत ६७