--- गल्त है ? कौन जापानी सिर्फ चावल पर रहता है ? चावल तो सुनका गौण भोजन है। वे मांस-मच्छी अच्छी तरह खाते हैं। जैसे हममें बंगाली, मलबारी और त्रावणकोरी चावल और मछली खाते हैं वैसे ही । ये लोग चावल पर जीनेवाले थोड़े ही कहे जा सकते हैं ? चावल पर जीनेवाले विहारी जरूर हैं। वे सब कितने कमजोर और रोगी होते हैं ! चावल पर शरीर बन ही नहीं सकता।" आमिनियन पत्रमें यह लिखा हुआ है कि बादली रंग आशाका चिह है । शतरंजीमें खाकी रंग है। बापूने कहा "यह आकाशका रंग कैसे कहलाया होगा ?" शामको घुमते वक्त कहने लगे. "वह तो खाकी रंगका आकाशका टुकड़ा दिखायी देता है वैसा ही यह रंग है । वैसा रंग शायद सीरिया आकाशका रंग होगा । डीन फेरारका जीसाका जीवन चरित्र पड़ा या । असमें याद है कि नेज़रेयके आगेके पदापोंके कारण वहाँके आकाशको असे ही रंगका वर्णन किया गया है !" कल नरसिंहभाी पटेलके अफ्रीकाके पत्र पठ लिये । अिनमें जिस पत्र में नरसिंहभाीके विचार कैसे बदले यह बताया गया था, वह मुझे जोर देकर पद मुनाया क्योंकि मैं कात रहा था । किस तरह अन्होंने हिन्दुस्तान छोड़ देने पर भी सरकारके प्रति क्रोध और वैरभाव जमा कर रखे थे, किस तरह अन्होंने अंग्रेज मुसाफिरोंके साथ अपन्यास अदलबदल करते हुओ टॉल्स्टॉयकी A Murderer's Remorse (खुनीका पछतावा) पुस्तक पढ़ी और सुनकी ऑन्त्रं खुल गयीं । अन्होंने अस पुस्तकको अनेक बार पड़ी और उसका अनुवाद मित्रोंमें घुमाया और अहिंसाके अपासक बन गये। बापू कहने लगे- सचाभी बहुत प्रशंसनीय है ।" अंबालाल मोदीका - जोलिया खड़की* नडियादसे आया था । असका जवाब दिये बाद जोलियाका अर्थ पृछा और शुस परसे पोलोंके नामके बारेमें बातें चलीं । वल्लभभाभी कहने लगे : "नागरवाड़ा यानी ढेडवाड़ा।" बापूको भी हँसी आ गयी । मगर अिस हँसीको टालनेके लि कहो या अनायास, अन्हें राजकोटका नागरवाड़ा याद करते करते कुछ स्मरण ताजे हो आये । १८९६-९७ में राजकोटमें पहली प्लेग आयी थी। अस वक्त बापू ताजा ताजा दक्षिण अफ्रीकासे आये थे । अन्हें सुधार करनेकी लगन तो थी ही । अिसलिओ प्लेग-निवारणके अपाय करनेमें मदद दी। मुख्य कार्यक्रम यह था कि अस वक्त्तके पाखानोंको नष्ट करके दूसरे पाखाने बनाये जायँ, जिनमें सूर्यका "भिनकी अक पत्र • मोहल्लेका नाम .७९
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