पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/८७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मगर प्रकाश आता हो और जिनमें भंगीको आगेसे घुसकर अगला भाग साफ करने में सुभीता हो । ये फेरबदल करनेमें गरीब लोग तो वहुत अनुकूल हुआ, मगर अधिकसे अधिक विरोध नागरवाड़ेमें हुआ। वे तो कहते ." देखो न, आये हैं बड़े पाखानोंमें सुधार करनेवाले !' मेघजीभाभी पुलिस सुपरिण्टेण्डेण्ट, जो मेरे सम्बन्धी थे सुनकी और दूसरोंकी मुझे मदद थी । मगर नागरवाडेने किसीकी न सुनी और गालियोंकी वर्षाकी सो अलग ! मैं ढेड़वाड़ेमें भी गया था कहाँ ढेड़वाड़ा और कहाँ नागरवाड़ा ! ढेड़वाड़ेकी सफाीकी हद नहीं थी ! वहाँके स्वच्छ मुहल्लेमें कुछ भी बिछाये बिना बैठ सकते थे, जब कि नागरवाड़ा गंदगीका घर था । सुस वक्त अकाल भी था । अकाल पीड़तोंके लिओ अफ्रीकासे भी रुपया आया था। मुझे कुछ अनुभव था अिसलिओ अक बीचकी जगह पर जाकर अनाज बाँटने लगा । वहाँ अितनी धक्कापेल मची कि दंगा होनेका अन्देशा हो गया । तीसरा काम अक हिन्दू मुस्लिम झगड़ेका था । अिस झगड़ेमें अक दो मुसलमान जान-पहचानवाले थे, अिसलिओ याद है कि सुनके कारण झगड़ा निबटानेमें मैं सफल हुआ था । और झुसी वक्त विक्टोरियाकी हीरक जयन्ती थी। मैंने अच्छी तरह भाग लिया था । मगनलाल और छगनलालको God save the King सिखाया था । और अिन लड़कोंसे छोटे छोटे बहुतसे काम लिये थे। और तभीसे कहा जा सकता है कि मैंने अिन लड़कोंको अपना बना लिया था । मुझे लगा कि ये लड़के भविष्यमें काम देंगे ।

आज बापूने बहुत पत्र लिखे और लिखाये । प्रेमा बहन और मीरा बहनको अपने हाथसे लम्बे पत्र लिखे -बायें हाथसे । दाहिने हाथकी अंगुलीमें काफी दर्द होता है, अिसलिले बायें हायसे लिखना पड़ता है। इससे थोड़ा लिखा जाता है, अिसलि मामूली पत्र मेरे पास लिखवाते हैं । मगर अिस तरहके असाधारण सब खुद ही लिखते हैं । मुझसे लिखाये हुझे पत्रों से अक खत अम्बालाल मोदीका था, जिसका जिक्र मैं सुपर कर चुका हूँ । संतराम महाराजकी आज्ञासे सन्तराम मन्दिरमें देशकी शांतिके लि) गीता, रामायण वगैराके पारायण शुरू हुआ हैं। जिस विषयमें महाराजने बापूकी राय माँगी थी। जवाबमें वापूने लिखाया : "आपका पत्र और गुजराती गीता-रामायण मिले । दोनोंके लिओ महाराजका आभार मानता हूँ । अिस बारेमें दो मत हो ही नहीं सकते कि ब्राह्मण पंडित सन्त पुरुष हों और लोगोंमें झुपनिषदादिका प्रचार ८०