पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/९१

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होते हैं, तब अक असाधारण प्रवल वृत्ति चुपचाप आपकी निजी सेवामें ही डूबे रहनेकी प्रेरणा मुझे करती रहती है। और कोी काम करनेका प्रयत्न फरना मुझे मिथ्या लगता है, रास्ता भूलने जैसा लगता है। जैसा लगता है कि आपकी निजी सेवा करनेमें सफलता मिले, तो ही अन बाहरी कामोंको करनेकी शक्ति आये । जैसा लगता है कि अक चीज दूसरीकी पूरक है । कोभी मुझे हमेशा भीतर ही भीतर कहा करता है कि मैं जो खिंत्र कर आपके पास चली आयी हूँ, सो आपकी सेवा करनेके लिझे ही आयी हूँ। यह वृत्ति अितनी ज्यादा प्रबल है कि मैं अससे छुट नहीं सकती । यह बात माननेके लिअ आपसे कहना भी कठिन है, क्योंकि अिस वातकी सचाीका पूरा सबृत तो आपके अवसानके वाद ही मिल सकता है। अिसलि मुझे अितना कहकर ही रुक जाना पड़ता है कि यह अक वृत्ति है । अितनी बात मैं निश्चित जानती हूँ कि अिस वारकी लड़ाीमें मेरा बल, मेरी शक्ति, मेरी भीतरी शान्ति और सुख पिछली बारसे कहीं ज्यादा रहे हैं । अिसका अक यही कारण है कि अिस बार मैं अपनी वृत्तिके अनुसार काम कर सकी हूँ। सिर्फ आपके पहले छूटनेके बाद अक बार थोड़े समयके लिओ मैं दुःखी हो गयी थी। जिस बार यहाँ (जेलमें) आनेसे पहले मेग स्वास्थ्य नष्ट होनेको ही था, मगर जिस पातका अित प्रभके साथ कोी वास्ता नहीं है । अिसका कारण तो सिर्फ ताकतसे ज्यादा काम करना ही था। मैंने देखा कि मैं थोड़े दिनमें पकड़ी जाने वाली हूँ, निमलिझे मैंने अपनी शक्ति अँचनीच देखे बिना ही खर्च करना शुरू कर दिया । मैं जानती थी कि मुझे जबरदस्ती आराम मिलने ही वाला है । और मेरे पाम कामका अितना ढेर पड़ा था कि ज्यादा सोच विचार करनेकी गुंजायश नहीं थी। "कौन जाने, यह मन भ्रम हो तो न हो ? मगर स्त्री तो अपनी मनोवृत्तिसे ही चलती है न ? असका बल बुद्धिके बजाय वृत्तिके आधार पर चलनेमें ही है । वह अपने स्वभावको प्रगट कर सके, तो ही असकी सच्ची शक्ति कामें की जा सकती है और सेवामें लगाी जा सकती है । अक आप, आप ही मेरे काम और आप ही मेरे आदश है, जिसके सिवा सारी दुनिया में मंग और कोी विचार, और कोी चिन्ता या और कोी चाह नहीं है । जिस जीवन में यह काम पूरा करनेके लिझे और अगले जीवनमें जिस आदर्श तक पहुँचनेके लिओ क्या भगवान मेरी प्रार्थना नहीं सुनेंगे ? किस लिओ वे मेरी वृत्तियोंको गलत रास्ते पर जाने देंगे ? क्या वे ही मुझे गहरे अंधेरेसे आम प्रकाशमय मार्ग पर खींच नहीं लाये ! यह सब में आपके मामने तर्फ करने के लिअ नहीं लिख रही हूँ। लेकिन जेलमें आनेके बाद ८४