पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/११९

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- ® भारतीय युद्धका समय १३ स्थिर किया गया है: क्योंकि महाभारतमें प्रत्येक युगके श्रारम्भमें सब ग्रह अश्विनी- जो लिति बतलाई गई है बह. कलियग- के प्रारम्भमें एकत्र रहते हैं। बल्कि महा- के पारम्भमें जो ग्रह थे उनसे, बिलकुल भारतमें एक जगह कहा गया है कि सूर्य, नहीं मिलती। इस ग्रह-स्थितिके विषयमेहम. चन्द्र, बृहस्पति और तिण्यके एक राशिमें मागे चलकर विस्तारपूर्वक विचार करेंगे। आने पर कृतयुग होता है।" उनका यह हम इसे भी सच मान सकते हैं, कि यदि भी कथन है कि-"ऊपर दिया हुश्रा युग- महाभारतमें बतलाई हुई ग्रह-स्थितिके का लक्षण पुराणोंमें भी कहीं बतलाया प्राधार पर गणित करके यह समय स्थिर नहीं गया है।" तब तो उक्त आक्षेप करने- किया गया होता, तो वह निश्चयपूर्वक वालोंका अन्तिम कथन यही देख पड़ता ठीक ही निकलता: परन्तु दुर्दैवसे ऐसा है, कि यह कल्पना स्वयं आर्यभट्टकी है बिलकुल नहीं हुश्रा । पहले कहीं नहीं और उसने उसीके आधार पर गणित बतलाया गया है कि कलियुगके प्रारम्भ- किया है। परन्तु,प्रत्यक्ष देखने पर यह बात में ग्रहोंकी स्थिति अमुक प्रकारकी थी। भी सिद्ध होती नहीं मालूम होती। सूर्य- फिर गणित करनेके लिये अाधार कहाँसे सिद्धान्तके अनुसार कलियुगका प्रारम्भ आया ? दीक्षित तथा अन्य लोगोंका फाल्गुन कृष्ण पक्ष अमावस्या बृहस्पति- कथन है कि कलियुगके प्रारम्भमें समस्त वारकी मध्य रात्रिके समय होता है। ग्रह मध्यम मानसे अश्विनीमें थे । इस इसके आधार पर यह निश्चित होता है कि समझके श्राधारपर आर्यभट्टने गणितके सन् ईसवीके ३१०१ वर्ष पहले १७ फर- द्वारा यह स्थिर किया कि मध्यम मानके वरी बृहस्पतिवारकी मध्य रात्रिके समय ग्रह एकही स्थान पर कब थे, और उसे कलियुगका प्रारम्भ हुआ। उस समयकी उसने कलियुगका प्रारम्भ मान लिया। ग्रह-स्थिति प्रोफेसर विटने ने निश्चित की है परन्तु यह किसने बतलाया कि कलियुग- और दीक्षितने भी मध्यम तथा स्पष्ट ग्राह- के प्रारम्भमें इस तरह की ग्रह-स्थिति थी स्थितिका निश्चय किया है। इसका उल्लेख मध्यम ग्रह श्राकाशमें दिखाई नहीं देते, : दीक्षितने अपनी पुस्तकके १४२ वे पृष्ठमें स्पष्ट ग्रह दिखाई पड़ते हैं । अर्थात्, यह किया है। उससे मालूम होता है कि सम्भव नहीं है कि आँखोंसे देखकर कलियुगके प्रारम्भमें मध्यम और स्पष्ट किसीने इस प्रकारका विधान लिख रखा सब ग्रह एकत्र नहीं थे। इसे दीक्षितने भी हो । तब यही मालूम होता है कि गणित- : कबूल किया है। वे कहते हैं कि-"हमारे के इस साधनको ज्योतिषीने अपनी ग्रन्थके अनुसार कलियुगके प्रारम्भमें कल्पनाके आधार पर स्थिर किया है। सब ग्रह एकत्र थे, परन्तु वस्तुस्थिति आर्यभट्ट ऐसा पागल नहीं था कि उदा- वैसी न थी। कदाचित् सब ग्रह अस्तं- हरण देते समय वह उदाहरणके उत्तरको गत रहे हों, परन्तु महाभारत आदि और उदाहरणके आधारको भी काल्पनिक ग्रन्थोंमें ऐसा भी वर्णन नहीं है। कलियुग रखे। स्वयं दीक्षितका कथन है कि- के अनन्तर, सूर्यसिद्धान्त श्रादि ग्रन्थोंके "महाभारत, मनुस्मृति तथा पिछले विवे- बननेतक, कमसे कम ३६०० वर्ष बीत चनमें आये हुए किसी ग्रन्थम, ज्योतिष- गये: परन्तु यह नहीं कहा जा सकता कि प्रन्योका बनलाया हुअा युगारम्भका यह उस समय इस बातका निश्चय हो चुका था लक्षण नहीं दिया है कि कलियुगके और किकलियुग अमुक समयमें प्रारम्भ हुमान