पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/१४९

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8 भारतीय युद्धका समय : प्रश्नको बहुतेरे आदमियोंने उपस्थित किया युद्ध के बाद प्रचलित हुए। चान्द्र-मासके है। कुछ पाठकोंकी इच्छा यह जाननेकी जो अरुण, अरुणरजा आदि नाम उस भी होगी, कि पाण्डवोंने बनवास तथा समय प्रचलित थे, उनमेंसे एकाध नाम अज्ञातवासका समय चान्द्र वर्षसे भी मूल भारतमें यदि रह गया तो कोई आश्चर्य पूरा किया या नहीं। अर्थात् यह देखना नहीं । यह नाम पीछे लुप्त हो गया होगा। चाहिये कि पाण्डवोका प्रणपालन चान्द्र चाहे कुछ हो, कृष्ण पक्षकी यहं सप्तमी मानसे सिद्ध होता है या नहीं । महा- ग्रीष्म ऋतुकी मालूम होती है, क्योंकि भारतमें बतलाई हुई परिस्थिति थोडीसी उस समय ग्रीष्म ऋतु होनेका वर्णन है संदिग्ध है । तथापि हम इस प्रश्नको हल (विराट० अ०४७)। इससे मालूम होता करनेका प्रयत्न करेंगे। महाभारतमें इस है कि यह अष्टमी,सौर ज्येष्ठ कृष्ण पक्षकी बातका कहीं उल्लेख नहीं है कि पाण्डव अष्टमी होगी। यह नहीं कहा जा सकता बनवासके लिये कब गये । महाभारतमें कि ज्येष्ठ बदी अष्टमीको पूरे तेरह वर्ष द्यूतके महीने, मिति अथषा ऋतुका भी नहीं हो चुके थे। उस दिन युधिष्ठिरने उल्लेख कहीं नहीं है। चतुर्धरने अपनी विराट राजाके हाथसे पासेकी मार सही टीकामें यह मान लिया है कि पाण्डवोंने थी: परन्तु इसका कारण यह नहीं था प्राश्विन-कार्तिकके महीनों में जूश्रा खेला कि उस दिन वे प्रकट नहीं हो सकते थे- होगा । ऐसा मान लेना साधारण व्यव- इसका कारण यही था कि उस समय हारके अनुकूल है, क्योंकि दशहरेके बाद प्रकट होना प्रशस्त नहीं मालूम होता था। दिवालीतक सभी जगह लोग जूश्रा खेलते आगे वर्णन किया ही गया है कि उचित हैं। अस्तु: यह वर्णन पाया जाता है कि समय देखकर पाण्डव एकदम प्रकट हो गो-ग्रहणके समय पहले अर्जुन प्रकट हुश्रा गये । इसके सिवा, प्रारम्भमें ३१वें अध्या- और दुर्योधन आदिने उसे पहचाना। यमें कहा गया है कि-"फिर उस तेरहवें उसका रथ भी वहाँ श्राकर उसे मिला। वर्ष के अन्तमें सुशर्मान विराट राजाकी उसने अपने हाथकी चूड़ियाँ तोड़ डाली गौओंका हरण किया ।" इसमें साफ साफ और कानोंसे सुवर्ण कुण्डलोको निकाल कहा गया है कि बदी सप्तमीको तेरह वर्ष दिया । महाभारतमें बतलाया गया है कि पूरे हो गये थे। अष्टमोको अर्जुन प्रकट यह गोग्रहण किस मितिको हुाः हुआ था, परन्तु वह नियत समयके दो परन्तु आश्चर्यकी बात है कि उसका दिन पहले प्रकट नहीं हुअा था। यह भी महीना नहीं बतलाया गया है। विराट स्पष्ट है कि यदि समय-सम्बन्धी दो हो पर्वके ३१वें अध्यायमें कहा गया है कि दिनोंको भूल हुई होती, तो दुर्योधन सुशर्मा कृष्ण पक्षकी सप्तमीको गोग्रहणके भी इतना झगड़ा न किया होता । सौर लिये दक्षिण गया और वहीं यह भी कहा वर्षके मानसं दुर्योधनका खयाल यह था गया है कि उत्तर गोग्रहणकं लिये कौरव कि पाश्विन बदी अष्टमीको अथवा उसके कृष्ण पक्षकी अष्टमीको ( दूसरे ही दिन)। लगभग जूत्रा हुआ था और आश्विन गये; परन्तु यह नहीं बतलाया गया है। पहले ही जेठ बदी अष्टमीको अर्जुन पह- कि कृष्ण पक्षकी यह सप्तमी या अष्टमी मान लिया गया,अर्थात् वह नियत समय- फिस महीनेकी है। हम बतला चुके हैं के चार महीने पहले ही प्रकट हो गया: फि मार्गशीर्षादि महीनों के नाम भारतीय इसलिये पागडयोंको फिर बनवास भोगमा