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महाभारतमीमांसा
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चाहिये । दुर्योधनके भाषणसे यह नहीं होता है कि दूसरे जासूस भेजकर पाण्ड. दिखलाया जा सकता कि पाण्डव कितने | वोको ढूंढ़ निकालनेके लिये अवधि बची दिनोंके पहले प्रकट हुए थे। तथापि यह थी । यदि दो दिनोंकी ही अवधि होती, नहीं कहा जा सकता कि केवल दो ही तो दूसरे जासूस भेजनेसे कुछ लाभ न दिनोंकी अवधि बाकी थी। "बदी अष्टमी होता। यह सम्भव है कि आठ महीनेकी को दुर्योधन आदि मित्रमण्डली गीग्रहण अवधि समाप्त हो चुकी हो और चार के लिये गई" इस उल्लेखमें महीनेका नाम महीनेकी बच रही हो। इसी सभामें वह नहीं है। इससे, सम्भव है कि, केवल त्रिगर्त राजा भी बैठा था जिसका परा- तिथिका महत्व समझा जाय । परन्तु, भव कीचकने किया था। उसने विराट दशमीको सब पाण्डव प्रकट होकर पर आक्रमण करनेकी सलाह दी और विराटकी गद्दी पर बैठे इस कथनसे यह यह सलाह ठीक समझी जाकर आक्रमण महीं कहा जा सकता कि दशमीको अवधि किया गया। इस आक्रमणमें पाण्डवोंको समाप्त होती थी । अन्य प्रमाणोंसे भी प्रकट करन-करानका विचार बिलकुल सिद्ध किया जा सकता है कि केवल नहीं था। यह बात अचानक हो गई। दो ही दिनोंका अन्तर नहीं था । जिस सभाकी उक्त बातोंसे भी यही दिखाई समय गांग्रहणका निश्चय किया गया, पड़ता है कि उस समय चार महीनकी उस समयके वादविवादका ध्यान अवधि बाकी थी। यह भी स्पष्ट है कि रखना चाहिये । एवं अध्यायमें, पागडवा- 'चान्द्र और सौर मासीम चार महीनका की खोजके लिये भेजे हुए दृतोंने वापस | अन्तर पड़ा। यह समझकर कि पाण्डव आकर कहा है कि-"पागडवाका कुछ चार मासके पहले ही पहचान लिये गये, भी पता नहीं मिलता। केवल यह बात दुर्योधनने,कहा-"अज्ञातवासका तेरहवाँ मालुम हुई है कि विराट नगरमें गन्धर्वोन वर्ष अभीतक समाप्त नहीं हुआ है । कीचकको मार डाला।" उस समय दुर्यो- राज्य-लोभस अन्धे हो जाने के कारण उन्हें धन कहने लगा-"पाण्डवोंका पता इस बातका स्मरण न रहा होगा: अथवा लगना अवश्य चाहिये । पाण्डवोंके अज्ञात-काल-गणनाके विषयमें हमारी वासका समय प्रायः समाप्त हो गया है: धारणा ही भ्रमपूर्ण होगी। इसमें जो बिलकुल थोड़ा समय बाकी रह गया है। कुछ सत्यासत्य हो उसे भीष्म बतला दें।" यदि वे अपना प्रण पूरा कर आवेगे, तो वे इससे दुर्योधनकं भी मनमें शङ्काका होना हम लोगों पर चिढ़े हुए रहेंगे।" इस सिद्ध होता है । मालूम होता है कि वाक्यसे सचमुच यह मालूम नहीं होता। उसके मनमें यह सन्देह था, कि पाण्डव कि कितनी विशिष्ट अवधि बाकी रह गई चान्द्र वर्षका पालन करनेवाले हैं;अतएव थी; परन्तु आगे चलकर कर्णके भाषण- कदाचित् उनके तेरह वर्ष पूरे हो चुके से वह निश्चित हो जाती है। कर्ण कहने हो । प्राश्विन, ज्येष्ठ आदि महीनोंके क्रम लगा-"राजा साहब, पाण्डवोंकी खोज उस समय शुरू नहीं हुए थे। परन्तु यह करनेके लिये दूसरे होशियार और निपुण स्पष्ट है कि दोनोंके नाम एकसं ही न रहे जासूस शीघ्र भेजे जायं ।" इसे सुनकर होग। पाँच वर्षों में स्थूल मानसं दो महीन दुर्योधनने दुःशासनको शीघ्र ही दुसरं अधिक जाड़ दनक नियमसे, भीष्मक गुप्तचर भेजनेकी आज्ञा दी। इससे प्रकट कथनानुसार, तरह वर्षीम दस वर्षोंके चार