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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/१८

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पवनों अथवा प्रीकों का उल्लेख (ई० पूर्व ३२०) ४५, प्रादि पर्वमे प्रीक शब्द सुरंग है ४५, (फुटनोट) महाभारत ईसासे पूर्व ३२० से ई० सन् ५० तकका है ४५, महाभारत- में राशियोंका उल्लेख नहीं है ४५, राशियाँ यूनानियोंसे ली गई हैं ४६, प्रीको और भारतवासियोका पुराना परिचय ईसासे पूर्व ४०० वर्षतक ४६-४७, बैक्ट्रियन यूना- नियोंने ईसासे पूर्व सन् २०० में हिन्दुस्तानमें राज्य स्थापित किये ४७, शक-यवन, मालवा उज्जयिनी में शकोंका राज्य ४७, उज्जयिनीमें यूनानियोंकी सहायतासेज्योतिष- का अभ्यास और सिद्धान्त-रचना ४८, गशियाँ ईसासे पूर्व सन् २०० में भारतवर्ष में भाई और महाभारत उससे पहलेका है अतः उसका समय ईसासे पूर्व सन् २५० ठहरता है १८, दीक्षितका मत भ्रमपूर्ण है ४६-११, वौद्ध ग्रन्थों में राशियाँ नहीं है और न गर्गके ग्रन्थमें ही हैं ५१-५२, सरसरी तौर पर महाभारतका समय ईसासे पूर्व सन् २५० ठहरता है, तिलकने गीता-रहस्यमें भी इसी सिद्धान्तको स्वीकार किया है ५२-५३, अन्तःप्रमाण-महाभारतमें दूसरे ग्रन्थोंका उल्लेख ५४, नाटकोंका उल्लेख है पर कर्ताओका नहीं ५४, "ब्रह्मसूत्र पदैश्चैव” में बादरायणके वेदान्त-सूत्रका उल्लेख नहीं है ५४, बादरायण सूत्रका समय ईसासे पूर्व सन् १५० है ४४, “ऋषिभिर्यहुधा- गीत" आदि श्लोकका मैक्समूलर और अमलनेरकरने जो भाषान्तर किया है वह भ्रमपूर्ण है ५५, सूत्र शब्दका अर्थ बौद्ध सुत्त शब्दके समान ही है ५६, बादरायण व्यास और लैपायन व्यास दोनों अलग अलग हैं, एक बुद्ध के बादका और दूसरा पहलेका है ५६, भगवद्गीता और वेदान्त मूत्र एक ही कर्ताके नहीं हैं, पहलेमें सांख्य योगका मण्डन और दूसरेमें खण्डन है ५७, आश्वलायन सूत्र महाभारतके बादका है ५७-५८, अन्य सूत्र और मनुस्मृति वर्तमान महाभारतके बादकी है ५-५६, वर्त- मान पुराण भी बादके है १६, गाथा, इतिहास और पाख्यान आदि पहले छोटे छोटे थे; ये सब महाभारतमें मिला लिये गये: अव महाभारत ही इतिहास है ६०, वेद पहलेके हैं ६०, मुख्य उपनिषद् भी पहलेके हैं ६१-६२, उपवेद और वेदांग पहलेके हैं, यास्कका उल्लेख ६२-६३, दर्शन, न्याय आदि पहलेके हो, परन्तु सूत्र पहलेके नहीं हैं ६४-६५, नास्तिक मत पहलेका है परन्तु वृहस्पति सूत्र नहीं मिलता ६६, "असत्यमप्रतिष्ठन्ते" आदि श्लोकमें नास्तिकोंका उल्लेख है, बौद्धोका नहीं ६७-६८. अहिंसा मत पहलेका है ६८-६६, पाञ्चरात्र मत पहलेका है ६९-७०, परन्तु पुराना प्रन्य नहीं मिलता ७०, पाशुपत मतकी भी यही बात है ७०, दूसरे अन्तःप्रमाण-गच और पद्य, गद्य उपनिषदोंसे हीन है ७१, महाभारतके अनुष्टुभ् और त्रिष्टुम् आदि वृत्त और उनके प्रमाण १, दीर्घवृत्त पुराने हैं, भार्या छन्द बौद्धों और जैनौके प्रन्यो- से लिया गया है ७२, अनुष्टुभ और त्रिष्टुभ वैदिक वृत्त हैं ७२, व्यासकी वृत्तरचना नियमके अनुसार ठीक नहीं है ७२, यह मत भ्रमपूर्ण है कि दीर्घवृत्त ईसवी सन्के बाद उत्पन हुए ७४, महाभारतमें बौद्ध और जैन मतका निर्देश ७५, ज्योतिषका प्रमाण-राशियोंका उल्लेख नहीं है ७५, हाप्किन्सने जो महाभारतका समय ई० सन् ४०० निश्चित किया है वह भ्रमपूर्ण है ७६, दीनारका उल्लेख केवल हरिवंशमें है, हरिवंश सौतिका बनाया नहीं है, बादका है १६. ताम्रपटका उल्लेख नहीं है ७६, प्राश्वलायन पतजलिके बादके है ७७, एडूकोकी निन्दा ७८, सिकन्दरका आक्रमण देखकर यह भविष्यवाणी की गई थी कि कलियुगमें शक यवनोंका राज्य होगा, उनका प्रत्यक्ष