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महाभारतमीमांसा
  • महाभारतमीमांसा *

बड़े प्रबल राजा थे। मेगास्थिनीज़ने भी हिन्दुस्तानकी पश्चिमी सीमापर पहाड़ोंमें इनका वर्णन किया है। उसने यह भी रहनेवाली अफरीदी शूर जातियोंके ये दर्शाया है कि पारज्योंका पाण्डवोंसे कुछ लोग होंगे। यह पहले लिखा जा चुका है सम्बन्ध है । हरिवंशमें भी पाराज्यका कि पजाबसे अफ़ग़ानिस्तानतकके सभी सम्बन्ध यदुके वंशसे जोड़ा गया है। लोग दुर्योधनकी ओर थे। संसप्तक भी अतएव हमें प्रतीत होता है कि जब पाण्ड्य दुर्योधनके ही दलमें थे । उस समयका राजा लोग महाभारतकालमें प्रसिद्ध थे, मुख्य प्रार्थ देश पश्चनद देश ही था, इसी तब.जिन लोगोंमें भारती युद्ध हुआ था कारण कौरवों-पाएवोकाझगड़ा तत्कालीन उनकी फेहरिस्तमें पारड्योका नाम भी हिन्दुस्तानके साम्राज्यके लिए था। जो आ गया होगा। बहुत करके प्रत्यक्ष भारती हो, यह अनुमान करनेके लिए स्थान है कि युद्ध ऋग्वेद-कालके अनन्तर हुआ है। संसप्तक और कोई नहीं-वही सरहदके और ऐसा अनुमान है कि उस समय पहाड़ो लोग होंगे। त्रिगर्ताधिपति वगैरह- इन लोगोंका अस्तित्व ही न था। को तो पजाबी ही कहा गया है। इन संसप्तक। संसप्तकोंको संसप्तकगण कहा गया है और इनके साथ नारायण और गोपाल- भारती युद्ध में यवन अर्थात् यूनानी गण और भी बताये गये हैं (भा० द्रो०)। न थे, उस समय वे पैदा ही न हुए थे। इससे भी यह अनुमान निकल सकता है कहीं कहीं भारती युद्धमें उनके होनेका कि ये लोग गण थे, अर्थात् ऐसे पहाड़ी भी वर्णन है। कदाचित् इनका वर्णन लोग थे जिनका कोई राजा न था । महा- श्रा जानेसे यह प्रकट ही है कि महा- भारतकालमें गण शब्दसे कुछ ऐसे विशेष भारतके समय इनका नाम प्रसिद्ध लोगोका बोध होता था जो स्वतन्त्र प्रजा- होनेके कारण पाण्ड्योंकी तरह पीछेसे सत्तात्मक या अल्पसत्तात्मक थे। हमारा ये भी घसीट लिये गये होंगे । अच्छा अनुमान है कि संसप्तकगण अथवा संसप्तक कौन थे ? यह प्रश्न बड़ा मजे- उत्सव-सङ्केत-गण दार है। महाभारतमें कहीं इस बातका गणानुत्सवसङ्केतानजयत् पुरुषर्षभः। वर्णन नहीं है कि ये लोग अमुक दशके शुद्राभीरगणांश्चैव ये वाश्रित्य सरस्वतीम् ॥ थे। ये बड़े शूर-वीर थे। इनका बाना यह वर्तयन्ति च ये मत्सयैर्येच पर्वतवासिनः। था कि युद्धमें मर भले ही जायँगे, पर (सभा० अ० ३२. १०) पीछे न हटगे। अतएव ऐसी ही शपथ | प्रभृतिका जो उल्लेख मिलता है वह ऐसे करके ये लोग युद्ध करने जाते थे, इस ही लोगोंके लिये है। शिलालेखमें "मालव- कारण ये 'संसप्तक' कहे जाते थे । यह गणस्थित्या" शब्दमें आनेवाला मालव बात द्रोण पर्वके १७ वें अध्यायमें है। गण भी ऐसे ही लोगोंका था। ये लोग किन्तु इसका 'संसप्तक' रूप भी मिलता प्रायः एक ही वंशके और शूर होते थे। है। ये सात जातियाँ एक ही जगहकी और इसी कारण हमने संसप्तकोंका रहनेवाली होगी और सैन्यमें सङ्गठित तादात्म्य सरहदके अफरीदी वगैरहके थी. इस कारण संसप्तक नाम हो गया साथ किया है। ये बहधा स्वतन्त्र रहते होगा । जिनको अाजकल 'फ्रगिटयर है और नाम मात्रके लिए किसी सम्राट्-. ट्राईकप' कहा जाता है, उन्हीं के अर्थात् की अधीनता माल लेते हैं। इसी कारण