. * महाभारतमीमांसा # भी कह दी गई है कि बड़े लोग शूद्र टोक धीरे धीरे जगह पाने लगी। यदि वर्णकी स्त्री सन्तान उत्पन्न नहीं करते। क्षत्रिय शूद्रासे विवाह कर ले तो उसके जान पड़ता है कि यह विवाद बहुत ही गर्भसे उत्पन्न सन्तान दूसरे वर्णकी समझी अधिक हुआ था । शद्रा स्त्रीसे उत्पन्न पुत्र- जाने लगी और ऐसी सन्ततिका नाम उम्र को सम्पत्तिका हिस्सा मिले या नहीं ? पड़ गया। किन्तु वैश्य वर्णको वैश्य और यह प्रश्न भी सामने आया और महाभारत- शुद्र दो ही वर्णोकी बेटी ब्याहनेका कालमें ही उसका यह निर्णय कर दिया अधिकार था; इसलिये कहा गया है कि गया है कि उसे अंश दिया जाय। दोनोंसे ही वैश्य सन्तान उत्पन्न होती है। परन्तु महाभारतके पश्चात् स्मृति श्रादि- परन्तु आगे किसी स्मृतिकारने इस के समयमें यह तय किया गया कि उसे बातको नहीं माना । महाभारत-कालके कुछ भी हिस्सा न दिया जाय। अस्तु: पश्चात् यह बात भी न रही । इससे पूर्व शृद्रा स्त्रीसे उत्पन्न बेटेकी जातिका अन्तमें : तो वह रीति थी ही, अतः वैश्य जातिमें ब्राह्मणसे भिन्न तय किया जाना सहज ही शद्रोंका बहुत कुछ मिश्रण होगया । इसीसे था। क्योंकि उन दोन के वर्ण और बुद्धि-: वैश्योंके आर्य होनेमें थोड़ासा सन्देह मत्तामें बहुत अधिक अन्तर था। फिर हुश्रा और यह तय कर दिया गया कि भी कुछ लोग इसके विरुद्ध थे ही । मनु- यदि ब्राह्मण वैश्यकी बेटी ब्याह ले तो स्मृतिमें बीज और क्षेत्रके परस्पर महत्त्व- उसकी सन्तान ब्राह्मण न समझी जायगी: का वाद बहुत अधिक वर्णित है । शुद्रा स्त्री वह या तो वैश्य समझी जायगी या अंबष्ठ क्षेत्र हो और ब्राह्मण पति बीज हो नो जातिकी। सारांश यह कि भिन्न भिन्न महत्त्व किसे दिया जाय और कितना दिया वर्णाकी थेटियाँ ब्याहनेके सम्बन्धमें थोड़ा जाय ? यह वाद मनुस्मृति में बहुत अधिक । थोड़ा विचार और बन्धन उत्पन्न होने विस्तृत है । अन्तमें ब्राह्मणसे उत्पन्न शूद्रा लगा। यह तो हुई अनुलोम विवाहके स्त्रीकी सन्तति न ब्राह्मण मानी गई और सम्बन्धकी बात । प्रतिलोम विवाहके न शूद्रः एक स्वतन्त्र जाति बनाकर उसका सम्बन्धमें प्रारम्भसे ही विरुद्ध कटाक्ष दर्जा भी भिन्न ही रखा गया। अनुशासन देख पड़ता है। यद्यपि श्रारम्भमें उच्च पर्धके ४८ वें अध्यायमें इस जातिका नाम वर्णकी बेटियाँ ब्याह लेनेकी नीचेके वर्णों- पारशव रखा गया है और उस शब्दका को मनाही न रही हो, फिर भी शीघ्र ही रुकावट हो गई होगी: क्योंकि ऐसे निन्ध ____ परं शवाद् ब्राह्मणस्यैव पुत्रं । शद्रापुत्रं विवाह या सम्बन्धसे उपजी हुई सन्तानका पारशवं विदुः। शुश्रूषकः स्वस्य कुलस्य दर्जा बहुत ही हलका माना गया है। स स्यात् स्वचारित्र्यं नित्यमथो न दात्रियसे उत्पन्न ब्राह्मण स्त्रीका बेटा सूत जह्मात्॥ जातिका माना गया है और ब्राह्मण स्त्रीका "ब्राह्मणके शद्रा स्त्रीसे उपजे हुए पुत्र- वैश्यसे उत्पन्न पुत्र वैदेहक माना गया है। को शवके उस ओरका अर्थात् , पारशव : ब्राह्मण स्त्रोसे शूद्रको सन्तान हो तो वह समझना चाहिए। वह अपने कुलकी बहुत ही निन्द्य समझी गई है और यह अभूषा करे और अपने नित्य कर्म सेवा- : चाण्डाल मानी जाती थी। आर्य माता- को न छोड़े।" इस भेद-भावके कारण उच्च पितासे ही उत्पन होनेके कारण सूत और वर्णमें भी अन्य वर्णी की बेटी लेनेकी रोक- वैदेह भी वैदिक संस्कारोंके बाहर नहीं अर्थ यह है-
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