पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/२६४

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महाभारतमीमांसा

- २३ ॐ महाभारतमीमांसा वादिनी' और 'पण्डिता' विशेषणोंका बाहरसे आने पर स्त्रीको खड़े होकर उसका प्रयोग किया है। वह अपने पतियोंके अभिनन्दन करना और उसे जल तथा साथ वनवासमें बे-खटके चली गई ।राज- आसन देना चाहिए। स्त्रीको घरके बासन- कीय विषयों पर उसने अपने पतियोंके बर्तन खुब साफ़ रखना चाहिए और साथ अनेक बार वाद-विवाद किया। अच्छी रसोई तैयार करनी चाहिए । अपने तप और तेजसे उसने विराटके घर- : पतिको यथोचित समय पर भोजन की कठिनाइयाँ,अपनी शुद्धता और पाति- परोसनाचाहिए। सामानको सावधानीसे व्रतको बचाकर, झेल ली और अन्तमें रखे और मकानको बुहारकर साफ रखे। युद्ध में जीत होने पर उसने अपने पतियों- खोटी स्त्रियोंका साथ न करे और बालस से राज्य करनेके विषयमे आग्रह किया। तजकर पतिको निरन्तर सन्तुष्ट रखे। इस प्रकार उसके बड़प्पन, स्वातन्त्र्य और न किसीसे दिल्लगी करे और न हँसी। पातिव्रत्य आदि गुणोंका वर्णन कविन घरके बाहरवाले दरवाज़में खड़ी न हो। किया है। बागमें ज्यादा देरतक न ठहरे। पति पतिव्रता-धर्म। प्रवासमें हो तो नियमशील होकर पुष्पों और अनुलेपनको त्याग दे । पति द्रोपदीके ही मुखसे (वन प० २३३वा जिस चीज़को खाना-पीता न हो उसे श्राप अध्याय ) कविने वर्णन कराया है कि भी वर्जित कर दे। जो बातें पतिको हित- उत्तम पत्नीका आचरण कैसा होना कारक हों वे ही करें । सासने मुझे जो चाहिये। यहाँ उसे उद्धृत करना ठीक कुछ कह रखा है उसका अवलम्बन मैं रात- होगा । द्रौपदी सत्यभामासे कहनी है:- दिन बड़ी मुस्तैदीसे करती हैं। सब प्रकारसे "मैंने अपने पतियोंको जिस तरह प्रसन्न धर्मनिष्ठ पनियोंकी सेवा में इस तरह डर- किया है, वह सुनो । अहङ्कार और क्रोधको कर किया करती हूँ जैसे कोई कद्ध सर्पसे त्यागकर स्त्री वह काम कभी न करे डरे । पतिसे बढ़कर अच्छी होनेका जो पतिको अप्रिय हो । पतिका मन रखने प्रयत्न में नहीं करती। मैं सासकी निन्दा के लिय स्त्री निरभिमान भावसे उसकी नहीं करती। किसी बातमें प्रमाद नहीं होने शुश्रुषा करे । बुरे शब्द कहना. या बुरी देती। मैं सदा कुछ न कुछ करती रहती तरहसे खड़े रहना. बुरी रीतिसं देखना है : और बड़ोंकी शुश्रूषा करती हैं। अनेक या बैठना अथवा चाहे जिस जगह चले वदवादी ब्राह्मणोंका में सन्कार करती जाना-उन बातोंसे मैं बहुत बचती रहती हैं। नौकर चाकर जो कुछ करते हैं उसपर हूँ। मैं इस बातको जाँचनेकी फिक्र नहीं सदा मेरी दृष्टि रहती है । गोपाल (ग्वाले) करती कि मेरे पतियोंके मनमें क्या है । मैं से लेकर मेषपाल (गड़रिये ) तक सभी किसी दूसरे पुरुषको भूलकर भी नहीं चाकरोंकी मुझे जानकारी है । गृहस्थीमें देखती, फिर चाहे वह देवता हो या जो खर्च होता है और जमा होता है उस गन्धर्व, तरुण हो या मालदार, छैला हो ' पर मैं बड़े गौरसे नज़र रखती हूँ। ऐसे या सुन्दर । मैं पतिके पहले न भोजन वशीकरणके मन्त्रसे मैंने अपने पतियोंको करती हूँ, न स्नान करती हूँ और न लेटती वशमें किया है। और कोई वशीकरण मुझे है। नौकरों-चाकरोंके सम्बन्धम भी मैं मालूम नहीं।" यह वर्णन इस बातका ऐसा ही व्यवहार करती है। पतिके अध्या उदाहरण है कि गृहस्थीमें पत्नीको