® महाभारतमीमांसा और अन्य ऋषियोंकी सहायतासे सम्राट क्षत्रियोंके हिंसायुक्त यक्ष प्रचलित थे ही। युधिष्ठिरले जो यह किया था, उसकी युधिष्ठिर और जनमेजयने ही जो रास्ता निन्दा करनेकी हिम्मत नेवलेको किस चलाया था, उसी पर चलकर बलवान् तरह हुई? इस पर वैशंपायनने यह कथा क्षत्रिय लोम अश्वमेध यज्ञको छोड़ देनेके सुनाई। एक बार इन्द्र यज्ञ कर रहे थे। लिये तैयार न. थे। तब, ऐसे लोगों के जब यहमें प्रोक्षण किये हुए पशुओंको समाधनके लिये, एक और बात यहाँ मारनेका समय आया, तब वे पशु बड़ी कही गई है । अगस्त्य ऋषि बारह वर्षका करुणायुक्त दृष्टिसे ऋषियोंकी ओर देखने सत्र कर रहे थे और उसमें ब्रीजाहुति समे। उस समय ऋषियोंके हृदयमें दया देते थे। परन्तु इन्द्रने असन्तुष्ट होकर उपजी । वे इन्द्रसे बोले-“यह यज्ञ पानी बरसाना बन्द कर दिया । तब धार्मिक नहीं है। अगस्त्य ऋषिने कहा कि हम दूसरा मायं धर्मकृतो यज्ञो नाहिंसा धर्मउच्यते।' इन्द्र उत्पन्न करेंगे। तब कहीं इन्द्रने सन्तुष्ट यज बीजैः सहस्त्राक्ष त्रिवर्षपरमोषितः॥ होकर पानी बरसाना शुरू किया। तथापि तीन वर्षतक रखे हुए धान्यसे, हे इन्द्र, अन्याय ऋषियोंने अगस्त्यसे बिनती की सुम यज्ञ करो (अर्थात् पशुओको मार- कि प्राइये, हम लोग निश्चित कर दें कि कर यह मत करो)" उस समय, अभि- यज्ञकी हिंसा हिंसा नहीं है । इस प्रकार मानसे प्रस्त इन्द्रको यह बात पसन्द न अगस्त्य मुनिराजी हो गये । परन्तु इस आई। तब इन्द्र और ऋषियोंके बीच कथासे भी क्षत्रियोका समाधान नहीं इस बात पर झगड़ा हुआ कि निर्जीव हुश्राः और सबके अन्त में कह दिया गया पदार्थोके द्वारा यज्ञ किया जाय अथवा कि वह नकुल स्वयं धर्म था; उसने एक सजीव पदार्थोके द्वारा अब दोनों ही वसु बार क्रोध रूपसे जमदग्निको सताया था, राजाके यहाँ इसका निर्णय कराने गये। इस कारण उनके शापसे वह नेवला हो (यह वसु राजा चन्द्रवंशी पार्योंका वंश- गया; और शापसे मुक्त होनेके लिये जनक चेदि-पति था।) उन्होंने वसुराजासे उसने युधिष्टिरकृत यज्ञकी निन्दा कर दी। पूछा-यशके सम्बन्धमे वेद-प्रमाण क्या : उक्त नकुलकी कथाके विस्तारपूर्वक है ? पशुओं द्वारा यह करना चाहिए उल्लेख करनेका तात्पर्य यह है कि भारती- अथवा बीज, दूध, घी इत्यादिके द्वारा? ! कालमें सरह तरहसे इस प्रश्नका निर्णय बसु राजाने, प्रमाणोंके बलाबलका विचार किया जाता था कि अहिंसा-प्रयुक्त यश किये बिना ही, एकदम कह दिया-'जो करना चाहिये या हिंसा-प्रयुक्त। ऊपरवाली सिद्ध हो उसीके द्वारा यह करना ठीक कथाओंसे यही बात मालूम होती है लोक है। यह उत्तर देनेके कारण ऋषियोंके मतका प्रवाह यदि एक बार इस ओर हो शापसे चेदिराज रसातलको चला गया। जाता था तो फिर दूसरी ओर भी चला समें भी असल बातका स्पष्ट निर्पय जाता था। हिंसाप्रयक्त यज्ञ और मांसा- नहीं दुमा । क्योंकि क्षत्रिय तो पशु-हिंसा- हारका अपरिहार्य सम्बन्ध था । लोग युक्त या करेंगे ही और उसीको सशास्त्र : जबतक धर्मश्रद्धायुक्त रहते हैं, तभीतक बतलायेंगे। परन्तु राजाके रसातलको धर्मकी पगड़ी उतारनेके लिये तैयार नहीं चले जानेसे ऐसा यह निन्ध ठहरता है : होते। हम अपनी इच्छासे मांस खाते है, और वह यात्रियोंको मान्य न था । यक्षसे इसका कोई सरोकार नहीं', यह
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