पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/२८

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महाभारतमीमांसा
  • महाभारतमीमांसा

धम्म चार्थे च कामे च मोक्षे च पुरुषर्षभ। उसमें किस प्रकार वृद्धि हुई । (२) इस यदिहास्ति तदन्यत्र यन्नेहास्ति न तत्क्वचित्॥ ग्रन्थमें दिये हुए तथा बाहरी प्रमाणसे वह बिलकुल ठीक है । प्राचीन कालका | इसका कौमसा समय निश्चित होता है। (३) सारा संस्कृत साहित्य बहुत कुछ महा- इस ग्रन्थमे जिस भारतीय युद्धका वर्णन है भारतके ही आधारपर है। सारांश यह वह काल्पनिक है या ऐतिहासिक और कि इस ग्रन्थसे हमें प्राचीन कालके भारत- (४) यदि वह युद्ध पेतिहासिक है तो वह की परिस्थितिके सम्बन्धमें विश्वसनीय किस समय और किसमें किसमें हुआ। और विस्तृत प्रमाणोके आधारपर अनेक इस प्रकार इस ग्रन्थके सम्बन्धसे और ऐतिहासिक बातोका पता चलता है। इस ग्रन्थमें वर्णित प्राचीन भारती युद्धके प्राच्य और पाश्चात्य दोनों विद्वानोंने इसी सम्बन्धसे मुख्यतः ये चार बातें आपके रधिसे महाभारतका अध्ययन करके अपने सामने रक्खी जाती हैं । प्राच्य और अपने ग्रन्थों में उसके सम्बन्धमें अपने पाश्चात्य विद्वानोंने विस्तृत रीतिसे इन अपने मत अथवा सिद्धान्त प्रकट किये सब बातोंका विचार किया है। अतः आप हैं । वेबर, मेकडानल्ड, हाफमैन श्रादि लोगोंको यह भी देखना चाहिए कि वे अनेक पाश्चात्य विद्वानोंने ऐतिहासिक दृष्टि- पाश्चात्य विचार ग्राह्य हैं अथवा अग्राह्य । से इस ग्रन्थका बहुत अच्छा परिशीलन इसके अतिरिक्त इस ग्रन्थसे प्राचीन काल- किया है। इसी प्रकार लोकमान्य तिलक, की स्थितिके सम्बन्धमें और जो अनेक दीक्षित,ऐय्यर आदि अनेक प्राच्य विद्वानों- प्रकारकी सूचनाएँ आप लोगोको मिल ने भी ऐतिहासिक दृष्टिसे इस ग्रन्थका सकती हैं उनसे भी आप लोग और बहुत- अध्ययन किया है। प्रत्येक भारतीय आर्य सी बात निकाल सकते हैं । भूगोल, इस ग्रन्थपर बहुत अधिक श्रद्धा रखता ज्योतिष, सेना और युद्ध, वर्णाश्रमविभाग, है। अतः लोगोंके मनमें यह जिज्ञासा उत्पन्न रीति-रवाज और आचार, शिक्षा, अन्न, होना बहुत ही सहज और स्वाभाविक है वस्त्र, भूषण श्रादिके सम्बन्धकी बहुतसी कि इस ग्रन्थसे कौन कौनसे ऐतिहासिक बातें यहाँ बतलाई जायँगी। इनके अति- अनुमान किये जा सकते हैं। प्राच्य और रिक्त गजधर्म, व्यवहार, नीति और मोक्ष- पाश्चात्य परीक्षाको दृष्टिमें अन्तर पड़ना धर्मके सम्बन्धमें प्राचीन भारतीय पार्योने खामाविक ही है। तथापि जैसा कि इस जो सदा ठीक उतरनेवाले अर्थात् त्रिकाला- प्रन्थके मराठी भाषान्तरके प्रारम्भमें उपो- बाधित अप्रतिम सिद्धान्त स्थिर किये थे दातमें उन सबका विचार करके दिखलाया वे सब इस लोकोत्तर ग्रन्थमें प्रथित किये गया है, हमें इस ग्रन्थमें महाभारतका ऐति- गये हैं: आप लोगोंको इन सब भिन्न भिन्न हासिक दृष्टिसे सांगोपांग विचार करना विषयोंका भी परिचय कराया जायगा। है। भारतवर्षकी प्राचीन परिस्थितिके जिस तात्पर्य यह कि उस मराठी उपोद्धातमें जिन खरूपका यहाँ विचार किया जानेको है अनेक मुख्य मुख्य बातोंका वर्णन है उन सब. उस स्वरूपका स्पष्टीकरण उस उपोद्घातमें का विवेचन इस महाभारत-मीमांसा प्रन्थमें किया जा चुका है। इस महाभारत- पाठकोंके सामने उपस्थित किया जायगा। मीमांसा प्रन्थमें पाठकोंके सामने जो बातें महाभारतमें जिन परिस्थितियोंका वर्णन रक्खी जायँगी वे संक्षेपमें इस प्रकार हैं। है उनके अनुसार एक ओर तो महाभारत (१) महाभारत प्रन्थ किमने लिखा और अन्य वैदिक साहित्यतक जा पहुँचता है