ॐ प्रस्ताव और दूसरी ओर अर्वाचीन कालके बौखः । अर्थ में कुछ भेद करना पड़ा है। "महा- और जैन ग्रन्थों तथा ग्रीक लोगोंके प्राचीन भारत काव" सेहमने महाभारतके अन्तिम इतिहास-प्रन्थोंसे प्रा मिलता है। अतः उक्त स्वरूपके समयका अर्थात् साधारणतः विवेचन करते समय हमें जिस प्रकार सिकन्दरके समकालीन ग्रीक लोगोंके वैदिक साहित्यका प्राधार लेना पड़ेगा! समयका अर्थ लिया है। और "महाभारत उसी प्रकार बौद्ध और जैन ग्रन्थोंकी युद्ध-काल" शब्दका प्रयोग हमने महाभारती और विशेषतः ग्रीक लोगोंके ग्रन्थोंकी कालके प्रारम्भके समयके सम्बन्धमें किया बातोंके साथ उसका मेल मिलाना है। और समस्त महाभारत-कालके सम्बन्ध पड़ेगा। भागेके विवेचनमें हमने ऐसा में सामान्यतः “भारती-काल" शब्दका ही प्रयत्न किया है। वास्तवमें महाभारत प्रयोग किया है। प्रस्तु, मुख्य विषयपर अन्धका काल बहुत विस्तृत है; इसलिये विचार करने से पहले महाभारतके विस्तारः भिन्न भिन्न समयकी परिस्थितिका वर्णन के सम्बन्धमें एक कोष्ठक दे देना बहुत करते हुए हमें “महाभारत-काल" के आवश्यक है। वह कोष्ठक इस प्रकार है:- अनुक्रमणिकाध्यायमें कहे अनुसार म गोपाल नारा०/ गणपत कृष्ण कुंभकोणम् प्र के अनु० । प्र० के अनु० । प्र०के अनु० पर्व. 1अ० श्लोक. श्र० श्लोक. अ० श्लोक.अ. श्लोक. १ श्रादिपर्व २२७, ८४ २३४ ८६१६) २३४ ४६६ २६० १०६EE २ सभापर्व ___७८ २५२१ २७१२ १ २७०६ २०३, ४३७७ ३ वनपर्व ११६६४ ३.५२०४६४, ३१५११५४ ३१५ १४०१ ४ विराटपर्व २०५० ७२ २२७२/ ७२ २३२७ ७ ३५७५ ५ उद्योगपर्व ६६६८ १६६ ६५५६/११६/६६१-१९६ - ६७५२ ६ भीष्मपर्व ५८८४ १२२ ५४६६ १२२ ५८१७/ १२२ ५० ७ द्रोणपर्व 4808] २०२: ६५७२/ २०२५६३) २०३ १०१२७ - कर्णपर्व ४६६४) १६ ४६६४/६६ ४६७) १०१ ४६६ शल्यपर्व 48 ३२२० ६५ ३६१% ६५ ३६०८ ६६ ३५६४ १० सौक्तिकपर्व ८७०/ १८८०३/ १०/ १८८१५ ११ स्त्रीपर्व ७७५ ८२५, २७ २६ २७/ ०७ १२ शांतिपर्व १४७३२/ ३६५ १४६३८ ३६६ १३७३२/ ३७५ १५१५३ १३ अनुशासनपर्व | १४६ ८००० ७६३६] ७८३६ १०६३ १४ श्राश्वमेधिपर्व १०३ ३३२०) २ २८५२/११ ४५४३ १५ अाश्रमवासिपर्व ४२ ११११/ ३६ १०- ३६ १०८५ १०४ १६ मौसलपर्व । ३२०, २८७ २७/ ६ ३०० १७ महाप्रस्थानपर्व ३, १२३/ ३ १२० ३ १०६ १ः स्वर्गारोहणपर्व। ५ २०६६ ३२०/ ६ ३०७ ६ ३३७ . कुल १६२३ ८४२४४ २१०६ ८३५२५ २१११ ८३८२६ २३१५ ह८५४५ १२००० २६३ १५४८५ १२००० १२००० ३२६ २७४ ३ १६२३ ८४२४४ २१ १६ हरिवंशल १६२५४ २३७२१६०१० ५८२६ १२०५४५
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