- समाजिक परिखिति-अन्न। *
२५५ दोनों के मेलसे मिट गया । यह निश्चय बड़ा स्थित्यन्तर हो गया। भारती युद्ध के सहजमें ही हो गया कि हिंसायुक्त वेदोक्त समय अर्थात् शुरु शुरूमें, भारती आर्य यज्ञ करना अनुचित नहीं । इसी तरह मद्य अथवा मुराका सेवन करना प्रशास्त्र समाजको क्षत्रियोंका, शिकार खेलनेका | नहीं मानते थे । क्षत्रियों के लिए मद्यपान- हक भी मंजर करना पड़ा। शिकार खेलने की मनाही तो थी ही नहीं, बल्कि यह की अनुमति रहनेके कारण क्षत्रियोंकी कहा जा सकता है कि इस मामलेमें वे क्षात्रवृत्तिके लिए अच्छा अवसर मिल लोग पाश्चात्य आर्य-जर्मन लोगों की गया । अगस्त्य ऋषिने निश्चय कर दिया तरह प्रसिद्ध थे। इस काममें यादव लोग कि शिकारमें मारे हुए पशु प्रोक्षित ही अगुश्रा थे और द्वारकामें मद्यपानका हैं। पिछले कथानकमें मांस-प्रयुक्त यज्ञके खासा जमघट रहता था । महाभारतमें प्रतिवादी अगस्त्य ही हैं और उन्होने यह वर्णन है कि वृष्णि और यादव मद्य- इतनी सुविधा कर दी! यह आश्चर्य ही पान करके ही परम्पर भिड़ गये और है। इसी प्रकार नकलके कथानकमें भी ऐसे भिड़े किवहीं ढेर होगये। यह प्रसिद्ध हिंसायुक्त यज्ञ करनेके विषयमें अगस्त्य ही है कि बलगम तो खब डटकर पीते थे। ऋषिका, अन्य महर्षियोंकी ही तरहश्रीकृष्ण यद्यपि मध पीनेमें मर्यादित थे। प्राग्रह देख पड़ता है। भिन्न भिन्न मतों- नथापि समस्त क्षत्रियोंकी गतिके अनुसार के लिए एक ही पूज्य व्यक्तिक मतका वे भी, मर्यादासे, मद्य पीते थे। श्रीकृष्ण आधार माननेकी प्रवृत्ति मनुष्य में स्वाभा- और अर्जुनके मद्यपान करनेका वर्णन महा- विक है। ब्राह्मणोंके यन और क्षत्रियोंकी भारतमें दो तीन स्थलों पर है। गमायणमें मृगया इस तरह शास्त्रोक्त हो गई है और लिग्वा है कि जब समुद्रमेंमे सुग निकली इनमें मांस खानेकी स्वाधीनता हो गई। तो देवताश्रीने उसे ग्रहण कर लिया, इस फिर भी समूचे समाजके मनको मान कारण देवताओंका नाम 'सुर' हो गया। देकर यह नियम हो गया कि सभी लोग महाभारतमें भी एक स्थान पर इसी चौमासे भर, या कमसे कम कार्तिक प्रकारका उल्लम्व है। वरुण-लोकमें सुरा- महीने भर, मांस न खायँ । यह नियम भवन कनक-मय है श्रीर सुग हाथ लग अब भी प्रचलित है। आजकल बहधा जानेसे ही देवता मर कहलाने लगे श्रावण महीनेमें कोई क्षत्रिय मांसाहार (उद्यो० अ०६८) । युधिष्ठिरके अश्वमेधके नहीं करता। उत्सव-वर्णनमें यक्षको "सुगमैग्य सागरः । मद्य-पान-निषेध । कहा है। अर्थात यशोत्सवकी धूम-धाममें सुरा और मैरेयकी रेल-पेल थी। ज्ञान जिस तरह भारनी कालमें प्राध्या- | होता है कि भारती-युद्ध के समय क्षत्रिय- स्मिक भावनासे अहिंसा-धर्मकी जीत हुई विशेषकर यादव वीर, युद्ध पर जाते और मांस-भक्षणके सम्बन्धमें भारती | समय सुरापान किया करते थे। जयद्रथ- आर्योकी चाल ढालमें फर्क पड गया और वध पर्वमें धर्मकी आज्ञासे मात्यकी जब निवृत्ति-मार्गमें मांसाहार बिलकुल बन्द अर्जुनको मदद देनेके लिये कौरवी सेनामें हो गया: और प्रवृत्ति-मार्गमें वह यब- घुसनेको तैयार हुआ, तब उसके सुग- याग और श्राद्धमें ही बाकी रह गयाः / पान करनेका वर्णन है। यहाँ पर विशेष उसी तरह भारती कालमें मद्यके बारेमें भी नाम बतलाया है 'पीन्या कैलानकं मधु'