सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/२९८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२७२
महाभारतमीमांसा
  • महाभारतमीमांसा #

- सर्शतक न होता होगा । महाभारतमें रखे रहते थे। गृहस्थाश्रमी लोग डादी नापितोंका उल्लेख है । नख-निकृन्तन मुंडाकर शिखा रखते थे। क्षत्रिय लोग अथवा नहरनीका उल्लेख उपनिषदोंमें भी मस्तक और डाढ़ी-मूंछके बाल रखते मिलता है। तब यह निर्विवाद है कि थे। निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता बाल बनानेका पेशा करनेवाले नाई लोग कि वैश्यों और शूद्रोंमें कौन रीति थी। प्राचीन कालमें भी थे। नापितका उल्लेख सुन्दोपसुन्द राक्षसोंके विषयमें यह कर्ण-शल्यके भाषणमें है। अनुमानसे वर्णन है-"ततस्तुतौ जटा भित्वा मौलिनी जान पड़ता है कि राजा लोग सिरके संबभूवतुः, (प्रा० अ० २०६; २६) इससे बाल न मुंडाते थे । सिरके बाल न प्रतीत होता है कि तप करते समय जटाएँ बनवानेकी रीति क्षत्रियों में अब भी देखी बढ़ा ली जाती थी और तप पूर्ण हो जाती है। कारण यह बतलाया जाता है चुकने पर गृहस्थाश्रममें सिर पर चोटी कि सिरके बाल बनवाते समय गजाकी रखने का साधारण रीतिके मब वर्गों में चोटी नाईके हाथमें आ जाती है । यह रवाज था । इस पूरे वर्णनको कुछ कारण हो चाहे न हो; पर राजाओंमें । सहाग यूनानी ग्रन्थकारोंके वर्णनसे भी विरके बाल न बनवानेकी रीति अब मिलता है। महाभारतके वर्णन उपन्या- भी-या कमसे कम इस समय तक थी सोंकी भाँति विस्तृत और बहुतही और वह प्राचीन समयमें भी रही होगी: बारीकीसे नहीं लिखे गये हैं, अतएव इस क्योंकि रामचन्द्रने वनवासको जाते समय सम्बन्धमें निश्चयात्मक पूर्ण तथ्य बतलाना गङ्गाके तट पर अपने और लक्ष्मणके कठिन है सही; फिर भी समकालीन केशोंकी जटा चटपट, सिर्फ बग्गदका यूनानी ग्रन्थकागेके लेखोसे बहुत कुछ दुध लगाकर, बना ली । यदि मस्तक पर खुलासा हो जाता है। युनानी इतिहास- बाल खब लम्बे लम्बे बढ़े हुए न होते तो कार अरायन स्पष्ट कहता है कि हिन्दु- तुरन्त उसी समय जटाएँ कैसे बन सकती स्तानियोंके डाढ़ी होती है और उसे वे थी। किन्तु राजाओंके डाढ़ी रखनेके रंगते भी हैं। वह कहता है-“कुछ सम्बन्ध सन्देह ही है । शिवाजो की लोग डाढीको सफेद रंगते हैं, इससे वे डाढ़ी तो प्रसिद्ध ही है। मालूम होता सफ़ेद ही सफेद दिखाई देते हैं। अर्थात् है कि मस्तकके बालोंकी भाँति बहुत पैरोंसे लेकर सिरनक बिलकुल सफ़ेद ! करके भारती आर्य क्षत्रिय डाढ़ी भी (सफ़ेद धोतियाँ पहनने और ओढ़नेकी रखते होगे । मुँडानेकी रीति तो संन्या- रीतिका वर्णन हुआ ही है और सफेद सियोकी थी । सारी खोपड़ी और पगड़ीका उल्लेख भी हो चुका है।) कुछ डाढ़ी-मूंछ घुटानेका व्रत संन्यासियोको लोग नीलो डाढ़ी रँगते हैं। कुछ लोग पालना पड़ता था। किन्तु मालूम नहीं, लाल डाढ़ी रँगते हैं और कुछ लोग वे ऐसा किस लिए करते थे। संन्या- हरी।" डाढीको तरह तरहके रंगोंसे सियोंका यही लक्षण बौद्ध संन्यासियों या रँगनेकी रीनि अब भी देखी जाती है। मिओंने भी अङ्गीकार कर लिया और संयुक्त प्रदेश और पजाबकी ओर कुछ जैन संन्यासी लोग सारा सिर मुंडाते थे: लोगोंकी, खासकर मुसल्मानोंकी, हादी और प्राचीन समयके ऋषि तथा ब्राह्मण : रॅगी हुई होती है। समस्त वर्णनसे यह खोपड़ी और डाढ़ी-मूंछके सभी बाल' अनुमान किया जा सकता है कि पात्रियों,