पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/२९९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ॐ सामाजिक परिस्थिति-वस्त्र । # और ब्राह्मणोंके भी, गृहस्थाश्रमतको, डाढ़ी रखने थे। अर्थात् म्लेच्छोकी यह महाभारतके समय डाढ़ी रही होगी। बहुत पुरानी चाल है। महाभारतके समय सिरके बालोंके सम्बन्ध रायनने तो क्षत्रिय लोग बहुधा सिरके बाल और उल्लेख नहीं किया, किन्तु कर्टिस रूफस | श्मश्रु रखते थे और अन्य लोग साधारण नामक इतिहासकारने किया है। वह रीतिसे चोटी रखकर सिरके शेष बाल लिखता है-"हिन्दुस्तानी लोग अपने तथा श्मथ मुंडा देते थे। सनातनधर्मी सिरके बाल कहीसे झाड़ते हैं, परन्तु और बौद्ध संन्यासी सभी मूंड़ मुँडाये कुछ थोड़ेसे लोग उन्हें मुंडाते भी हैं। सफाचट रहते थे और तपस्वी वैखानस डाढ़ीके बाल वे कभी नहीं बनवाते। श्रादि वनमें रहनेवाले लोग सब बाल किन्तु मुँह परके बाल बनवाते हैं जिससे बढ़ाये रहते थे । इसीसे यूनानियोंका चेहरा मुलायम रहता है।" (मेक्किंडल-कृत लिग्वा हुश्रा विवरण क्षत्रियों और तप- सिकन्दरकी चढ़ाईका वर्णन)। इस वर्णन- म्वियों के लिये विशेषतासे उपयुक्त मानना मे देवि पड़ता है कि बहुधा मिरके बाल पड़ता है । बनवानेका ग्याज न था। और यह इति- हासकार यद्यपि डाढ़ीके सम्बन्धमें उम पोशाककी सादगी। ग्वाजको नहीं बतलाता तथापि वह भी उपर्युक्त वर्णनमे मिद्ध है कि महा. रहा होगा। जो लोग सिरके बाल बनवाते भारतके ममय हिन्दुस्तानी आर्य लोग थे वे डाढ़ी भी न रखते होंगे। मुंछ नो पोशाकके सम्बन्धमे बिलकुल सादे थे: सभी रखते होंगे। और उनके वर्तमान वंशधर जिस प्रकार आजकल अग्निहोत्री लोग डाढ़ी-मूंछ मेघरके भीतर या देहातमें कपड़े पहने माफ़ मुंड़ाये रहते हैं। इसी तरह प्राचीन श्राजकल देखे जाते हैं, वही हाल उस समयमें यह नियम रहा होगा कि गृह- । ज़मानमें पोशाकका था। आजकल हिन्दु- स्थाश्रमीको डाढ़ी-मूंछ बनवा देना चाहिए। स्तान में उच्च श्रेणी के लोग जो पोशाक सिर पर चोटी, चतुर्थ आश्रमको छोड़- पहनते हैं वह हिन्दुस्तानके बाहरकी है। कर अन्य प्राश्रमवाले सब लोग रखते यह यूनानी, पर्शियन, मुसलमान और होंगे। शिवाका उल्लेव महाभारत में इधर अँगरेज़ लोगोंसे ली गई है। स्वास- अनेक स्थलों पर है। मुसलमानी धर्मने ! कर मुसलमानोंकी और उसने भी अधिक डाढ़ी रखना ज़रूरी माना है और उसने अंगरेजोंकी नकल है। मातवीं शताब्दी में जो मिर पर चोटीका नाम-निशानतक न चीनी यात्री हुपनमांग हिन्दुस्तानमें रखनेका ग्वाज चलाया है और जो भाज- श्राया था। उस समय यहाँवालोंके जो कल हिन्दुधर्मकी कल्पनाके बिलकुल प्राचार और गति-ग्वाज थे, उनको उसने विरुद्ध है, वह हज़रत मुहम्मदका ही बड़ी बारीकीमे लिग्वा है। उसने पोशाक- चलाया नहीं मालूम होता। द्रोण पर्य के सम्बन्धमें लिखा है-"यहाँके लोगोंके, (अ० १२०) में यह श्लोक है- घरमें पहने जाने और समाज में पहने पस्यूनां स शिरस्त्राणैः शिरोमिलनमूर्धजैः। जानेके कपड़ों में सिलाईका काम जग भी दीर्घकथैर्मही कीर्णा बिबहरगडजैरिव ॥ नहीं है । रङ्गोंके सम्बन्ध देग्यो तो खूब ___ इससे मालूम होता है कि काम्बोज माफ सफेद रङ्गका विशेष श्रादर है और आदि उत्तर ओरके म्लेच्छ सिर मुंडाकर अत्यधिक भिन्न रङ्गोंमें रंगना इन लोगों- ३५