- राजकीय परिखिति। #
३२३ जङ्गल और आबकारी। खर्चके मद। वर्तमान भारत-सरकारकी आमदनी- यहाँतक राजाओंकी आमदनीका के तीन साधनों-अफीम,आयकारी और , विचार किया गया है। अब हम नीति- जङ्गल-का महाभारत-कालमें होना नहीं शास्त्रके उन नियमोंका विचार करेंगे पाया जाता। बल्कि इसी बातको शङ्का जिनके अनुसार निश्चय किया जाता है उत्पन्न होती है कि पूर्व कालमें भरतखण्ड- कि राजा लोग किन किन मदोंमें खर्च में अफीम होती भी थी या नहीं। अफीम किया कर । खर्चका असली मद फौज था के यहाँसे विदेश भेजे जानेका कहीं उल्लेख : जिसका विचार स्वतन्त्र रीतिसे किया नहीं है। (अफीमके लिए संस्कृतमें शब्द भी जायगा: परन्तु खर्चके दूसरे मदोंकी नहीं है । अहिफेण एक बनाया हुश्रा शब्द कल्पना सभा पर्वके कश्चित् अध्यायके है) श्रावकारी पर भी सरकारी करका आधार पर की जा सकती है। महा- होना दिखाई नहीं पड़ता। शान्ति पर्व में भारत-कालमें राजाओंके क्या क्या कर्तव्य तो यह लिखा है कि गजा लोग शराबी समझ जाते थे, इस विषयका उत्तम वर्णन दुकाने बन्द कर दें। शगव पर कर होने इस अध्यायमें किया गया है। नारद का कहीं उल्लेख नहीं है। मद्य श्रादिक पूछते हैं- "राएको तुझसे, तेरी स्त्रियोस स्थानोंका सर्वथा निरोध करनेके सम्बन्ध, या गजपुत्रीसे, चोरोसे अथवा लोभी मैं (शान्ति० अ० ::) श्राशा है। यह भी मनुष्योस पीड़ा तो नहीं होती?" इस कहा गया है कि शराबकी दुकानों और प्रश्नम इस बातका उत्तम वर्णन है कि वेश्याओं पर कड़ी निगरानी हो। इससे अन्धाधुन्ध चलनेवाले गएमें लोगोंको मालम होता है कि शराबकी बहतेरी प्रायः किनसे पीड़ा हुश्रा करती है। यह दुकाने बन्द कर दी जाती रही होगी और बात इतिहास-प्रसिद्ध है कि राष्ट्रको बहुधा जो थोड़ी बहुत कहीं कहीं बच जाती थीं: अत्याचारी गजाओंसे, उनके लड़को या उन पर जबरदस्त पहरा लगा दिया रानियोस, राजाके प्रीतिभाजन छोटे जाता था।* जङ्गलकी उपजसे प्रजा प्रकट नौकगेसे अथवा चोरोसे निस्य पीड़ा रीतिसे लाभ उठा सकती थी। जङ्गलके होती रहती है। इन कारणोसे हिन्दुस्तानके केवल ऐसे भाग सरकारी जङ्गल माने: इतिहासम प्रजाको कई बार कष्ट होमका जाकर सुरक्षित रखे जाते थे जिनमें हाथी । उदाहरण हमें मिलता है । अन्तिम उदाहरण और उत्तम घास उत्पन्न होती थी। प्रत्येक दुसरे बाजीराव पेशवाके समयका है। गाँवके और सीमाप्रान्तके शेष जङ्गल सब उस समय स्वयं बाजीराव लोगोंकी लोगोंके स्वतन्त्र उपभोगके लिए मुक्त ही आमदनीको लूटकर सरकारी खजानेमें थे। यहाँतक निश्चित हो गया था कि : मिला लेता था। उसके प्रिय अधिकारी जङ्गलों पर किसीका स्वामित्व नहीं है। और अन्य नौकर प्रजाको अलग लूटते - थे और सबसे अधिक लूट पिंडारोंके
- पूर्वकालमें क्षत्रियोके सिवा दूसरे लोग शराब नहीं मारा होती थी। सारांश यह है कि उसके
पीते थे। क्षत्रियो और राजा लोगोंके लिए शराब बहुधा उनके घरोंमें ही बनाई जाती थी । इसे देखकर . ।' समयमें सभी तरहकी दुर्व्यवस्था लोगों हमारा मत होता है कि शराय पर कर न रहा होगा। मम्भव वे दुकानें बन्द कर दी जाती थीं। हमारा मत है अनार्य लोगोंकी शरावकी कुछ दुकानें रही होगी परन्तु कि आबकारीक सम्बन्धमे महामारन-कालमें इमी तरहकी उन पर सरकारको मख्न निगाह रहनी थी और यब- परिस्थिति थी।