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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/३५०

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महाभारतमीमांसा

ॐ महाभारतमीमांसा ® को त्रस्त कर रही थी जिससे लोगोंको दूसरा खर्च नहर (इरीगेशन) विभाग विदेशी अँग्रेज़ोंका राज्य प्रिय मालूम का रहा होगा। नारदने पूछा है कि तेरे हुआ और उन्होंने उसका स्वीकार भी कर राज्यमें योग्य स्थानों में बनाये हुए और लिया। अतएव सिद्ध है कि राजाका | पानीसे भरे हुए तालाब हैं न ? तेरे राज्य- पहला कर्तव्य स्वयं अपना तथा दरबारी में खेती आकाशसे बरसनेवाले पानी लोगोंका निग्रह करके द्रव्य लूटनेकी पर तो अवलम्बित नहीं है ? इन प्रश्नोसे इच्छाको दबाना है। यह तभी हो सकता | मालूम होता है कि आजकलकी ही तरह है जब राजा अपने और दरबारके खर्च- प्राचीन कालमें भी सदा समय पर पानी को संयमके अधीन रखे। दूसरा कर्तव्य | बरसनेका भरोसा नहीं रहता था और यह है कि चोरोंके बारे में अच्छा प्रबन्ध सदैव अकालका डर लगा रहता था। करना चाहिए । विशेषतः दिनदहाड़े इससे स्थान स्थान पर पानी इकदा कर लूटनेवाले चारोंका सत्यानाश कर रखनेकी जिम्मेदारी सरकार पर थी। देना चाहिए । इसके लिए पुलिसका इस सम्बन्धमें सब खर्च सरकारको उत्तम प्रबन्ध करनेकी आवश्यकता | करना पड़ता था। तीसरा खर्च तकावी. होगी। प्रत्येक राष्ट्र के शहर, ग्राम और का था। इसे आजकल कहीं कहीं खाद प्रान्त यानी सीमा ऐसे तीन भाग और बीज-सम्बन्धी खर्च कहते हैं। यह नित्य रहा करते थे और इन सीमाओं देखकर आश्चर्य होता है कि खेती करने- पर जंगल थे । इन प्रान्तो अथवा जंगलों- वाले लोग प्राचीन कालसे ही सरकारी में रहकर डाकु प्रजा को लूटा करते थे। अथवा साहकारी सहायताके बिना हमें इतिहाससे मालम होता है कि पिंडारों खेती न कर सकते थे। खेतीका व्यवसाय का यही तरीका था। इसके लिए प्रत्येक | बहुत करके महाभारतकालमें वैश्य नगरमें कोट और प्रत्येक गाँवमें गढ़की लोगोंके हाथोंसे निकल गया होगा। पूर्व- व्यवस्था थी। नारदने एक प्रश्न किया कालमें और भारतकालमें वैश्योंका मुख्य है जिसमें पूछा गया है कि क्या तेरे राष्ट्र- व्यवसाय कृषि था। भगवद्गीतामें भी में प्रत्येक गाँव शहरके सरीखे है न ? वंश्योंका रोजगार कृषि, गोरक्षा और और प्रान्त या सीमा गाँवके सरीखे है न? | वाणिज्य बतलाया गया है । परन्तु मालूम इससे विदित होता है कि ऊपर कहे होता है कि महाभारतकालमें वैश्योंने अनुसार ही व्यवस्था थी। इसके सिवा पहले दो रोजगारोंको शूद्रोंको सौंप नारदने यह भी पूछा है कि डाकुओंके दिया। इसलिए खेतीके लिए आवश्यक छिपनेकी जगहतक घुड़सवारोंको भेजता बीजकी और चार मासतक यानी फसल- हैन ? तात्पर्य यह कि डाकुओका नाश के तैयार होनेतक लगनेवाले अन्नकी करने और लोगोंके जानमालकी हिफ़ा- कुछ न कुछ सुबिधा सरकार अथवा जत करनेके सम्बन्धमें आजकल अँग्रेज़ी साहकारकी ओरसे करा लेनी पड़ती राज्यमें जो प्रयत्न किये जाते हैं, वे सब थी। मुसलमानोंके राज्यमें ऐसी सहा- प्राचीन कालमें बतलाये गये हैं और यताका नाम तकावी था और आजकल सुव्यवस्थित राज्यों में उनके अनुसार यही शब्द प्रचलित है। इस तरह सरकारी कार्रवाई की जाती थी। इस तरहसे सहायता देनेकी प्रथा महाभारतकालसे एलिस-विभागका खर्च प्रधान था। । प्रचलित सिद्ध होती है। नारदके प्रश्नमें