पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/३६७

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ॐ राजकीय परिस्थिति। सन्देह नहीं कि राजनीतिकी दृष्टिसे प्रबल वीर भीष्म और द्रोण तो हैं । इन भीष्मका ही आचरण श्रेष्ठ है। जिसके लोगोंने जो नमक खाया है उसको वे अन्तःकरणमें स्वराज्यका सञ्चा तत्व जम अवश्य अदा करेंगे।" (वनपर्व प्र० ३६) गया है वह स्वराज्यके पक्षको कभी इसे सुनकर भीम चुप रह गया । सारांश छोड़ नहीं सकता । दुर्योधनका पक्ष यह है कि सब लोगोंका यही विश्वास अन्यायका था; तथापि वह स्वराज्यका पक्ष : था कि भीष्म और द्रोण अत्यन्त राजनिष्ठ था और भीष्मने अपने स्वराज्य-सम्बन्धी हैं और वे अपने राजाका पक्ष. कभी कर्तव्यका पालन योग्य रीतिसे किया। न छोड़ेंगे। महाभारतमें आगे जो यह रामायणमें भी विभीषणको श्राश्रय देते वर्णन है कि युद्ध-प्रसङ्गमें भीष्मने युधि- हुए रामने स्पष्ट कहा है कि यह अपने ष्ठिरसे अपनी मृत्युका उपाय बतला दिया, भाईसे लड़कर आया है, अतएव राज्यार्थी वह पीछेसे जोड़ा गया है। महाभारत. होनेके कारण यह भेद हमें उपयोगी कालीन राजनीति बिगड़ गई थी: इस. होगा। उच्च सभ्यता और हीन सभ्यतामें लिए सौतिके समयमें यह धारणा थी कि यही अन्तर है । यह निर्विवाद है कि राज- कैसा ही राज्याधिकारी क्यों न हो, नीतिसे कीय नीति-सम्बन्धमें भीप्मका आचरण भ्रष्ट किया जाकर अपने पक्षमें मिला लिया ही अतिशय श्रेष्ठ है और रामभक्तके नाते- जा सकता है। और इसी धारणाके अनु- से विभीषणका महत्व कितना ही अधिक सार सौतिने भीष्मके भ्रष्ट होनेका यह क्यों न हो, परन्तु राजनीतिकी दृष्टिसे एक प्रसङ्ग जोड़ दिया है। परन्तु जब उसका आचरण हीन ही है। भीष्मकी नीतिमत्ता उच्च और उदास थी, ___ महाभारतमें वर्णन है कि युद्धके तब यह सम्भव नहीं है कि वह इस प्रारम्भमें जब युधिष्ठिर भीप्मको नमस्कार तरहकी नमकहरामी करे। भीष्मने करने गये, तब भीष्मने कहा कि- “पुरुष , अपने मुँहसे युद्धके प्रारम्भमें कहा था कि अर्थका दास होता है। इसलिये मैं दुर्यो- मैंने दुर्योधनका नमक खाया है; और वन- धनकी ओरसे लड़ रहा हूँ, अर्थात् अाज- पर्वमें युधिष्ठिरने भी भीमसे इसी बातको तक मैंने इस राजाका नमक खाया है दुहराया है। यह सम्भव नहीं है कि भीम अतएव में इसीकी ओरसे लडूंगा।" इन दोनों मतोंके विरुद्ध आचरण करे। यह कथन भी एक दृष्टिसे अपूर्ण ही है। यह प्रसङ्ग, “कर्णका मनोभङ्ग मैं करूंगा" वे इससे भी अधिक उदात्त रीतिसे कह इस विश्वासघातपूर्ण शल्यके वचनकी सकते थे। तथापि उनका उक्त वचन भी तरह, असम्भव तथा पूर्वापर-विरोधी है: उदार मनुष्यका सा है। वनपर्वमें युधि- और वह महाभारतकालीन राजनीतिकी ष्ठिरने भीमका इसी तरहसे समाधान कल्पनाके अनुसार सौतिके द्वारा पीछेसे किया है। जब भीम श्राग्रहके साथ कहने । गढ़ा गया है । भीष्मपर्वके १०७ वे लगा कि बनवासकी शर्तको तोड़कर अध्यायमें दिये हुए वर्णनके अनुसार अपने बलसे हम कौरवोंको मारेंगे, और : यदि सचमुच युधिष्ठिर और श्रीकृष्ण जब इस कामको अधर्म कहे जाने पर कौरवोंकी फौजमें भीष्मकेमारनेका उपाय भी उसका समाधान न हुआ, तब युधि- ! पूछने गये हों, तो सम्भव नहीं कि यह ष्ठिरने उससे कहा-"तू अपने ही बलको ' बात दुर्योधनसे छिपी रहे। इसके सिवा प्रशंसा करता है: परन्तु कौरवोंकी ओर यह भी नहीं माना जा सकता कि श्रीकृष्ण