पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/३८३

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  • सेना और युद्ध । &

३५७ निर्विवाद सिद्ध है कि जहाँ जहाँ रथोंका सौप्तिक पर्व के १३ वै अध्यायमें श्रीकृष्णके रूपक दिया गया है, वहाँ वहाँ चक्क तो रथका इस प्रकार वर्णन है- दो ही दिखाई देते हैं, पर घोड़े रहते हैं दक्षिणामवहच्छेब्यः सुग्रीवः सव्यतोऽभवत्। चार । घोड़ोंके सम्बन्धमें छिवचनका पार्णिवाहोतुनस्यास्तं मेघपुष्पबलाहको । प्रयोग कहीं नहीं किया गया है । यहाँ भी वही शङ्का शेष रह जाती रूपकमें सदा चार वस्तुओका वर्णन है। वनपर्वमें कहा गया है कि एक उदार घोड़ोंके स्थान पर किया जाता है। यह गजाने अपने रथके घोड़े एकके बाद एक मी एक महत्त्वपूर्ण और कठिन प्रश्न है कि निकालकर ब्राह्मणको दान कर दिये ये घोड़े, पाश्चात्य देशोंके पुराने चित्रोंके (वन० अ० १६८)। यह बात गूढ़ है कि अनुसार, एक ही कतारमें जीते जाते थे उसका रथ तीन घोड़ोसे या एक घोड़ेसे या नहीं; क्योंकि दो ही डण्डियोंका कैसे चल सका। यह प्रश्न अनिश्चित ही हमेशा वर्णन किया गया है । इसके रह जाता है। प्रस्तु: निश्चयपूर्वक मालुम सम्बन्ध अनुमान करनेके लिए जो कुछ होता है कि ग्थकं दो ही चकं रहते थे। वर्णन पाये जाते हैं उनका अब विचार वन० अ० १७२-- में, इन्द्रके रथ पर करना चाहिए। बैठकर अर्जुन निवातकवचसे युद्ध कर विगट पर्वक ४५ अध्यायमै उत्तर- रहा था, उस समय यह कहा गया है कि में अपने ग्थक घोडाका निम्नलिखित व्यगृहन्दानवा घारा रथचक्र च भारत। वर्णन किया है:- ____ यहाँ उसके दो ही चक्रीका वर्णन है। इसी प्रकार जब श्रीकृष्ण दतका काम दक्षिणां यो धुरं युक्तः सुग्रीवसदृशा हयः ।, करनेके लिए गये थे, उस समयके उनके योयं धुरं धुर्यवहाँ वामं वहनि शोभनः ॥ , ग्थका वर्णन उद्योग पर्वमें किया गया मंमन्ये मेघपुष्पस्य जवेन सदृशं हयम ॥२१ . योय कांचनसनाहः पाणि वहति शोभनः।। है। वहाँ भी दो चकांका उल्लंम्ब किया समं शैव्यस्य तं मन्ये जवेन बलवत्तरम। गया है (अ० ८३) योयं वहति मे पाणि दक्षिणाभितः स्थितः । । सूर्यचन्द्रप्रकाशाम्यां चक्राभ्यां समलंकृतम् ॥ सारांश, सब बड़े बड़े व्यक्तियोंके बलाहकादपि गतःस जवे दीर्घवत्तरः ॥२३॥ . " : रथों में दो ही चकोंक रहनका वर्णन पाया टीकाकारका कथन है- ___ जाता है । अर्थात् निश्चय हो जाता है कि पुरः स्थितयोग्श्वयाः पृष्ठभागं पाश्चात्यं उस समयक रथ दो चक्रवाल ही होने युगं पाणिमिति । थे। यह साधारण समझ कि रथ चार खैरइन श्लोकांसे और टीकास भी चक्कोंक होते थे, गलत है। वन पर्वके एक पूरा पूरा बोध नहीं होता। बहुधा दो संवादमं यह वाक्य है:- घोड़े सामने जोते जाते थे और उनके द्वावश्विनौ रथस्यापि चक्रे । पीछे दूसरे दो घोड़े रहते थे, अर्थात् इससे तो वही बात स्पष्ट होती साधारणतः अाजकलकी चार घोड़े जोतने-' है। रथ-सम्बन्धी साधारण धारणाम और की रीति ही देख पड़ती है। परन्तु चारों' भी कुछ भूल देख पड़ती है । पथके भिन्न घोड़े एक ही कतारमें अर्थात् दो बाई भिन्न अवयवोंके जो नाम पाये जाते हैं ओर और दो दाहिनी ओर रह सकते उनकी ठीक ठोक कल्पना नहीं की जाती। होंगे । पाणि शब्द यहां भी संदिग्ध है। वे नाम ये हैं.--