पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/३८४

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महाभारतमीमांसा

३५- ॐ महाभारतमीमांसा युगमीषां वरूथं च तथैव ध्वजसारथी। तैयार रहते थे। ऐसे समय पर, धर्मयुद्ध- अश्वास्त्रिवेणुंतल्पंच तिलशोत्यधमच्छरैः ॥' के नियमानुसार, द्वन्द्वयुद्ध करनेवाले इसी प्रकार वनपर्वके २४२ में वीरोंकी दूसरे लोग मदद न करते थे। अध्यायमें 'गिरिकृबरपादादं शुभवेणु धर्मयुद्ध के नियमानुसार प्रत्येक मनुष्य त्रिवेणुमत्' यह वाक्य भी है। इस वाक्य- ' किसी दूसरे एक ही मनुष्य पर हमला से तथा और कई उल्लेखोंसे मालूम होता है कर सकता है। जब अन्य प्रकारके युद्ध कि युग, ईषा, कृबर, अक्ष, त्रिवेणु, ध्वज, होते थे तब द्वन्द्वयुद्ध नहीं होते थे। महा- छत्र, वरूथ, यन्धुर और पताका रथके ! भारतमें किये हुए इस द्वन्द्वयुद्धके वर्णन- भित्र भिन्न अङ्ग थे । इन अङ्गोको ठीक ठीक का सबसे बड़ा उदाहरण कर्णार्जुन-युद्ध कल्पना नहीं होती। युद्धवर्णनमें 'ध्वज- ही है। रथोंके युद्ध में सारथियोंका भी यष्टि समारंव्य' यह कथन बार बार देख बहुत महत्व था। सम और विषम भूमि पडता है। अर्थात, योद्धा बाणबिद्ध हो देखकर रथका चलाना.ऐसे भिन्न भित्र जाने पर ध्याजयष्टिको पकड़ लिया करता स्थानों पर रथको वेगसे ले जाना जहाँसे था, इससे यह नीचे न गिरने पाता था। ठीक निशाना मारा जाय और रथीको इससे प्रकट है कि यह यष्टि ध्वजाके नीचे बार बार प्रोत्साहन देना इत्यादि काम रथमें होगी। तब यह बात समझमें नहीं सारथीको करने पड़ते थे। दो रथियों में आती कि यह ध्वजयष्टि किस तरहकी होगी। जब युद्ध शुरू होता तब रथ एक ही रथियोंका द्वन्द्वयुद्ध । - स्थान पर खड़े नहीं रहते थे। रोका स्थानान्तर बाणोंकी मार टालनेके लिए महाभारतमें रथियोंके युद्धका वर्णन : भी किया जाता था, पर इस बातकी अनेक बार किया गया है। ये युद्ध बहुधा ' कल्पना ठीक ठीक नहीं की जा सकती। द्वन्द्वयुद्ध होते थे। इन द्वन्द्वयुद्धोंका वर्णन जब कर्णकेरथका पहिया गड्ढे में घुस गया केवल काल्पनिक नहीं है। प्राचीन कालमें था तब वह उस पहियको ऊपर खींचने यही रीति थी कि दोनों फौजोंके मुख्य लगा । इस वर्णनसे यह बात मालूम होती सेनापति सामने आते और युद्ध करते है कि द्वन्द्वयुद्ध में रथ मण्डलाकार घूमते थे। आजकलकी नाई पीछे रहनका नियम थे। अब हम इस बातका वर्णन करेंगे नहीं था । सेनापति या विशिष्ट वीर प्रत्यक्ष कि भारतीयुद्ध-कालमें धर्मयुद्धके नियम युद्ध में रणशर होते थे और आपसमें खूब : कैसे थे और भिन्न भिन्न प्रकारके बाल लड़ते भी थे। ये सेनापति प्रायः रथी कौनसे थे। होते थे, इसलिए रथोका द्वन्द्वयुद्ध प्रायः __ धर्मयुद्धके नियम। होता था। इस बातका भी वर्णन किया गया है कि ऐसे समय पर दूसरे कई बाण बहुत छोटे अर्थात् लम्बाई में सैनिक अपना युद्ध बन्द कर देते और बित्ता भर ही होते थे। जब शत्रु बहुत उनकी ओर देखते रहते थे। इस प्रकारके निकट आ जाता तभी ये बाण उपयोगमें द्वन्द्वयुद्धोका वर्णन होमरने भी किया है। लाये जाते थे। कुछ बाण सीधे छोरवाले जब मुठभेड़ लड़ाई ठन जाती, तब दोनों न होकर अर्धचन्द्रके समान छोरवाले पक्षके योद्धागण कुछ देग्तक ठहरकर रहते थे। ऐसे बाणोंका उपयोग, गर्दन प्रसिद्ध वीरोंका द्वन्द्वयुद्ध देखने के लिए काटकर सिरको धड़से अलग कर देने में,