पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/३९९

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  • व्यवहार और उद्योग-धन्धे । म

अवस्थामें पहुंच गई थी, इसका पाठकोंको सुवर्णस्य मलं रूप्यं रूप्यस्थापि मलं पपु । विश्वास दिलानेके लिए यह बतलाना शेयं अपुमलं शीसंशीसस्यापि मलं मलम् । काफी होगा कि एजेन्टाकी गुफाओमें इसका अर्थ ठीक ठीक नहीं बतलाया चित्र बनानेके लिए जो रङ्ग काममें लाये जा सकता। नथापि महाभारत-कालमें गये हैं वे आज हजार बारह सौ वर्षोंके इन सब धातुओंकी प्रक्रिया कारीगरोंको बाद भी ज्योंके त्यो चमकते हुए और तेजस्वी मालूम रही होगी। उस ज़मानेमें हिन्दु दिखाई पड़ते हैं । मालूम होता है कि स्थानमें सुनारोंका धन्धा अच्छा चलता यह कला महाभारत-कालमें भी ज्ञात थी। था। उस समय यहाँ सुवर्णकी उत्पत्ति क्योंकि यूनानियोंने भी हिन्दुस्थानकी रग- . बहुत होती थी। हिन्दुस्थानके प्रायः सब की कलाके सम्बन्धमें उल्लेख कर रखा है। भागोंमें सोनेकी उत्पत्ति होतीथी । हिमा- उन्होंने यह भी लिख रखा है कि हिन्दु- लयके उत्तरमें बहुत सोना मिलता था। स्थानके लोगोंको रंगे हुए कपड़े पहननेका उत्तर हिन्दुस्थानकी नदियों में सुवर्णके कण बड़ा शौक है। इस रंगकी कलाका शान । बहकर आते थे । दक्षिणके पहाड़ी और उसकी क्रिया, जर्मन लोगोंके गसा- प्रदेशों में सोनेको बहुतसी खाने थी और यनिक रंगोंके श्रा जानेके कारण, दुर्देव-: अब भी हैं। सभापर्वके ५१ अध्यायमें वश प्रायः भूल गई और नष्टप्राय हो गई है। युधिष्टिरको भिन्न भिन्न लोगोंसे जो नज- सब धातुओं की जानकारी। राने मिलनेका वर्णन है उसमें बहुधा सोनेका नाम पाता है। विशेषतः चोल अब हम यह देखगे कि इस कपड़ेक और पांड्य नामक दक्षिणी मुल्कोंके धन्धेके सिवा हिन्दुस्थानके लोगोंको दृसरे राजाओस कांचनके दिये जानेका उल्लंख किन किन धन्धोंका ज्ञान था। भारतीय है। हिमालयकी ओरसे आनेवाले लोगोंने आर्योको महाभारत कालमें प्रायः सब : भी सोना दिया था। इनमेंसे एक वर्णन धातुओंका ज्ञान था और उन्हें उनके गुण तो बड़ा ही मनोरञ्जक है। भी मालम थे । छान्दोग्य उपनिषद्कं चौथे

खमाः एकासनाः ह्याः प्रदरादीर्घवणवः ।

प्रपाठकमें एक महत्वपूर्ण वाका है जिससे " मालूम होता है कि हिन्दुस्थानके लोगोंको, पारदाश्च कुलिंदाश्च तंगणाः परतंगणाः ॥ नईपिपीलिकं नाम उद्धृतं यन्पिपीलिकैः । इतने प्राचीन कालमें भिन्न भिन्न धातुओंके ' जातरूपं द्रोणमेयमहायुः पुअशोनृपाः ॥ सम्बन्धमें अच्छी जानकारी थी। "जिस प्रकार सोना तारसे जोड़ा जाता है, चाँदी (सभापर्व ५२) सोनेसं जोड़ी जाती है, जस्ता चाँदीस, . हिमालयकं उस पार रहनेवाले खस शीशा जस्तेसे, लोहा शीशम, लकड़ी आदि नङ्गण और परतङ्गण लोग भी एक लोहेसे और चमड़ा लकड़ीसे जोड़ा जाता है प्रकारका सोना लेकर युधिष्ठिरकी नजर है।" इस वाक्यसे प्राचीन कालमें भिन्न करनेके लिए आये थे। यह सोना कुछ भिन्न धातुओंके धन्धोंका ज्ञान होना सिद्ध ! भिन्न प्रकारका था। उसे जातरूप कहते होता है। (उस समय लोहके काँटे बनाने-थे। उसके मिलनेका वर्गान भी अत्यन्त का शान था।) इसीवाक्यकी तरह महा- भिन्न प्रकारका है। उस सोनेके कणोंको भाग्नमें उद्योगपर्व के 35वें अध्यायमें पिपीलिका अर्थात् न्युटियाँ अपने बिलोस एक वाक्य है:- बाहर निकालकर इकट्ठा किया करती