३७४ ॐ महाभारतमीमांसा ® थीं। कण छोटी छोटी थैलियों में भरकर मिश्रित पत्थरोंसे सोना निकालनेकी कला लाये जाते थे । यह सोना वे लोग विदित थी। युधिष्ठिरको नजर करनेके लिए एक द्रोण अप्युन्मत्तात्पलपतो बालाञ्च परिजल्पतः । ( एक पुरानी नाप) लाये थे । इसी सर्वतः सारमादद्यादश्मभ्य इवकांचनम् ॥ कारणसे उस सोनेका पिपीलिक नाम (उद्योग० ३४) था। यह बात झूठ नहीं मालूम होती, : प्राचीन कालमें पत्थर तोड़कर और क्योंकि मेगास्थिनीज़ और सिकन्दरके उसकी बुकनी बनाकर भट्टीमें गलाकर साथ आये हुए ग्रीक इतिहासकारोंने सोनानिकालनेकी कला प्रसिद्ध रही होगी: इसी बातको कुछ अतिशयोक्तिके साथ अर्थात् उस जमानेमें सुनारीकी कला लिख रखा है। "ये च्यूँटियाँ कुत्तोंके अच्छी उन्नत दशामें पहुंच चुकी थी। समान बड़ी होती हैं । वे सोनेके कणोंको सुवर्णके तो अनेक भूषणोंका वर्णन है। अपने पैरोंसे घसीटकर बाहर ला रखती । परन्तु महाभारतमें तलवार, सिंहासन, हैं। यदि कोई मनुष्य उस सुवर्गा-राशि- चौरङ्ग, जिरहवख्तर आदि भिन्न भिन्न को लेनेके लिए जाय तो वे उस पर श्राक- ' शस्त्रों पर सुवर्ण के काम किये जानेका मण करके उसकं प्राण ले लेती हैं । अत- . वर्णन भी पाया जाना है। बल्कि सुवर्णसे एष लोग सिर पर कम्बल ओढ़कर, भूषित किये हुए रथ और घोड़ोंके सामान- रात्रिके समय, गुप्त रीतिसे जाकर, इस ' का भी वर्णन मिलता है। इससे सिद्ध सवर्णकणकी राशिको ले आया करते हैं।” होता है कि सुनारीका काम बड़ी कुश- यह वर्णन अतिशयोक्तिपूर्ण है। परन्तु यह लताके साथ होता था। उसी तरह लुहारों- बात निर्विवाद है कि तिब्बतकी ओर का धन्धा भी पूर्णावस्थाको पहुँच चुका हिमालयके समधरातल पर बिलकुल भू-' था। प्राचीन कालमें लोहसे फोलाद बनाने- पृष्ठके पास सुवर्णकण बहुतायतसे पाये की कला भी अवगत थी । किंबहुना, उप- जाते थे और इन कणोंको एक प्रकारके निषदोंमें भी फोलाद अथवा कार्णायस. जन्तु जमीनमेंसे खोदकर ऊपर ला रखत : का उल्लेख पाया जाता है। इसका उप- थे। यह बात तिब्बतमें आजकल भी कई योग शस्त्रोंके लिए किया जाता था। नख स्थानों में दिखाई पड़ती है । इन सुवर्ण- काटनेकी छोटीसी नहरनीसे लेकर कणोंको तङ्गण आदि तिब्बती लोग छोटी तलवारतक धारवाले हथियार फौलादके छोटी थैलियोंमें भरकर हिन्दुस्थानमें ले ही बनाये जाते थे। लुहार लोग तलवार, आया करते थे। पर्शियन लोगोंको हिन्दु-, भाले, बाण, चक्र, जिरहवख्तर, बाहु- स्थानके एक हिस्सेसे जो कर दिया जाता भूषण, गदा आदि लोहे और फौलादके था यह इन्हीं सुवर्णकणोंसे भरी थैलियों- हथियार बनाते थे। यह लोहा पूर्व के देशों- में भेजा जाता था। ___' में विशेष रीतिसे होता था, क्योंकि वहाँके यह सच है कि हिमालयके प्रागे और · लोग जो कर या नज़राना दिया करते थे नदीकी रेतमें सुवर्णरज मिलते थे और . उसके वर्णनमें इन हथियारोंका उल्लेख इस तरहसे निर्मल सोना अनायास मिल किया गया है। इसके सिवा हाथीदाँतके जाता था। तथापि यह बात भी नीचेके : काम करनेवाले बहुत ही निपुण थे। श्लोकसे स्पष्ट मालूम होती है कि महा- लिखा है कि माना प्रकारके कवच, हथि- भारन-कालमें पत्थरकी खानोंसे सुवर्ण- : यार, व्याघ्राम्बरसे आच्छादित एवं सुवर्ण-
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