पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/४०१

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३७५ के व्यवहार और उद्योग-धन्धे । * जटित रथ, तथा नाराच, अर्ध नाराच समुद्रसारं वैदूर्य मुक्तासंघास्तथैव च । आदि बाण और अन्य प्रायुध रखे हुए शतशश्च कुथांस्तत्र सिंहलाः समुपाहरन् । स्थ, हाथीकी चित्र-विचित्र झलं आदि सिंहल देशसे जो नज़राने आये थे द्रव्य लेकर पौर्वात्य राजाओने युधिष्ठिरके उनका वर्णन इस श्लोकमें अक्षरशः सस्य या-मण्डपमें प्रवेश किया ( सभापर्व अ०है। समुद्रसे उत्पन्न होनेवाले मोती, ५२)। यह विदित ही है कि पूर्वके देशोंमें मुंगे और वैदूर्य जितने विख्यात है, अब भी लोहेकी खाने हैं । हाथीदाँतके उतने ही 'कुथ' भी यानी एक विशिष्ट काम पूर्व और दक्षिणकी ओर उत्तम होते प्रकारकी घाससे बनी हुई चटाई आज- थे और इस समय भी होते हैं। तक विख्यात है। प्राचीन कालमें हिन्दु- स्थानमें हीरे आदि भिन्न भिन्न रत्नों और रत्न। मोतियोंकी उपज होती थी और उनका अब हम हीरे और मोतीके सम्बन्ध- विदेशोंमें व्यापार होता था । इस कारण में विचार करेंगे। प्राचीन कालमें हिन्दु-। उस जमानेमें हिन्दुस्थान सुवर्णभूमिके स्थानसे बाहर जानेवाली मूल्यवान नामसे प्रसिद्ध हो गया था और प्रत्येक वस्तुओंमें, सोनेकी तरह ही, रत्न और देशको इस देशके बारेमें आश्चर्य और मोती भी मुख्य थे । रत्न और मोती दक्षिणी लालसा होती थी। कई यूनानी इतिहास- पहाडोमें और सिंहलद्वीपके निकटवर्ती कारोंने लिखा है कि परदेशोंके लोग समुद्र में पहले पाए जाते थे और अब भी : हिन्दुस्थानके मोतियों के लिए केवल मिलते हैं । दक्षिणके गोलकुण्डामें हीरे- ! मूर्खतासे मनमाना मूल्य देते थे। की म्वान अबत कमशहर है । पहले । वास्तुविद्या (इमारतका काम)। शाकाहा.) दिए हुए श्लोकके अनुसार चोल और । पाण्ड्य देशोंके राजा लोग- "मणिरत्नानि : अब हम वास्तुविद्याका विचार करेंगे। भास्वन्ति" चमकनेवाले हीरे नज़गना। इस बातका विचार करना चाहिए कि लेकर आये थे। इसी तरह हिमालयके महाभारत-कालमें भिन्न भिन्न घरों और पूर्वी भागमें भी भिन्न भिन्न रत्न पाये जाते मन्दिरीके बनानेकी कला किस स्थितिम थे। महाभारत-कालमें ऐसा माना जाता थी । भारती-कालमें पत्थगेसे उत्कृष्ट काम था कि हिमालयके शेष भागांम रत्न नहीं करनेकी शिल्पकलाका उन्नत अवस्थामें मिलते । ऐसा होनेका कारण भृगुका होना नहीं पाया जाता । इस कलामें शाप कहा जाता है (शां० अ० ३४२) ग्रीक लोग बहुत ही बढ़-चढ़े थे। जिस और यह धारणा आज भी ठीक पाई जाती समय ग्रीक लोग हिन्दुस्थानमें आये उस है। लिखा है कि प्राकज्योतिषके राजा समय उन्हें उत्तम इमारतोंका काम यहाँ भगदत्तने युधिष्ठिरकोरत्नोंके अलङ्कार और दिखाई नहीं पड़ा। हिन्दुस्थानमें प्राचीन शुद्ध हाथीदाँतकी मूठवाले खड्ग नज़र कालमें प्रायः लकड़ी और मिट्टीके मकान किये थे। वर्तमान आसाम ही प्राकज्यो. थे। दुर्योधनने पाण्डवोके रहनेके लिए तिष है। यहाँ लोहे, हाथीदाँत और रत्नों- जो लाक्षागृह बनवानेकी आशा दी थी, की उपज होती थी। प्राचीन कालसे आज- उसमें लकड़ी और मिट्टीकी दीवार तक पाण्ड्य और सिंहलद्वीपके किनारे बनानेको कहा गया था । इन दीवारोंके पर मोतीकी उपज होती है। । भीतर राल, लाख आदि ज्वालाग्राही ।