ॐ महाभारतमीमांसा * पदार्थ डाल दिये गये थे और ऊपरसे थी। उसी तरह बादशाहके लिए एक मिट्टी लीप दी गई थी। जब पाण्डवो प्रचण्ड सभागृह बनानेकी कल्पनाभी उसे सरीखे राजपुत्रोके रहनेके लिए ऐसे घर पर्शियन बादशाहके अनुकरणसे सूझी बनानेकी आज्ञा दी गई थी तब यही बात थी। दिल्लीके दीवाने-ग्राममें भी यही हद होती है कि महाभारतकालमें बड़े कल्पना पाई जाती है। चन्द्रगुप्तकी इस लोगोंके घर भी मिट्टीके होते थे। पांडवोंके सभाके प्रत्यक्ष उदाहरणसे महाभारतकार- लिए मयासुरने जिस सभाका निर्माण ने कदाचित् युधिष्ठिरकी सभाकी कल्पना किया था, उसका वर्णन पढ़नेसे वह सभा की हो तो असम्भव नहीं। और, जब हम प्रायः काल्पनिक दिखाई पड़ती है। देखते हैं कि उम सभाका बनानेवाला परन्तु इस तरहमे अनुमान करनेकी कोई मयासुर था, तब तो उस सभाका सम्बन्ध मावश्यकता नहीं। मय अमर था। इससे पर्शियन बादशाहकी सभासे जा पहुँचता मालम होता है कि महाभारतकालमें है। इस सभाका यहाँ संक्षिप्त वर्णन देने लोगोंकी यही धारणा थी कि इस लायक है । "सभामें अनेक स्तंभ थे; उनमें तरहकी बड़ी बड़ी इमारतोंके बनवानेका स्थान स्थान पर सुवर्णके वृक्ष निर्मित किये काम असुर अथवा पारसी और गये थे। उसके चारों तरफ एक बड़ा पश्चिमके यवनों द्वारा ही उत्तम गतिसे परकोटा था। द्वार पर हीरे, मोती श्रादि हो सकता था। मयासुरके द्वारा बनाई रत्नोंके तोरण लगाये गये थे। सभाकी हुई युधिष्ठिरकी सभाके सम्बन्धमें यह दीवारमें अनेक चित्र बनाये गये थे और तर्क किया गया है कि, पाटलिपुत्रमें चन्द्र- उनमें अनेक पुतले बैठाये गये थे। सभाके गुप्त के लिए एक अनेक स्तंभकी बनी हुई भीतर एक ऐसा चमत्कार किया गया था इमारतकी कल्पनासे सौतिने युधिष्टिरके कि सभाके बीच एक सरोवर बनाकर लिए सहस्रों स्तंभवाली इस सभाको । उसमें सुवर्ग के कमल लगाये गये थे और कल्पना कर ली होगी। हालमें पाटलि- कमललताके पत्तं इन्द्रनील मणिके बनाये पुत्रमें खुदाईका काम करके प्राचीन इमा- गये थे तथा विकसित कमल पनरागमणि- रतों को ढूंढ़ निकालनेका जो प्रयत्न किया के बनाये गये थे। सरोवर में भिन्न भिन्न गया था उसमें चन्द्रगुप्तकी अनेक संभ- प्रकारके मणियोंकी सीढियाँ बनाई गई वाली सभाके अवशेषका पता लगा है। थीं। उस जलके संचयमें जलके स्थानपर बद्धिमानोंने अनुमान किया है कि दरा - जमीनका भास होता था। बगलमें मणिमय यस नामक पर्शियन बादशाहने पर्सि- शिलापद हानेके कारण पुष्करणीके किनारे पुलिसमें जो स्तंभगृह बनवाया था, उसी खड़े होकर देखनेवालेको ऐसा मालूम नमूने और लम्बाई-चौडाईका सभागृह होता था कि आगे भी ऐसी ही मणिमय चन्द्रगुप्तने पाटलिपुत्रमें अपने लिए भूमि है: परन्तु आगे जाने पर वह देखने- बनवाया था। पर्शियन बादशाहका पर्सि- वाला पानीमें गिर पड़ता था (सभापर्व पुलिसमें बनवाया हुआ सभागृह आजतक । अ० ३) । इसके आगे यह भी वर्णन किया ज्योंका त्यों खड़ा है। वह एक अतिशय गया है कि जहाँ दीवारमेंदरवाजा दिखाई दर्शनीय इमारत है। हमने किसी स्थानमें देता था वहाँ वह नहीं था और जहाँ नहीं कहा है कि चन्द्रगुप्तने अपने साम्राज्यमें दिखाई देता था वहाँ दरवाजा बना रहता बहुतसी बातें पर्शियन साम्राज्यसे ली था। ऐसे स्थानमें दुर्योधनको भ्रम हो
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