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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/४०३

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  1. व्यवहार और उद्योग-धन्धे। *

- गया और वह धोखा खा गया।" एक प्रत्यक्ष अनुमान करनेके लिए साधन नहीं जगह स्फटिकका स्थल बनाकर उसमें यह है कि महाभारत-कालके पहलेकी इमारते, चतुराई की गई थी कि वहाँ पानीके होने पत्थरके पुतले आदि कैसे बनाये जाते थे का भास होता था। दूसरी जगह स्फटिक- और तत्कालीन शिल्पकला कहाँनक उन्नत के एक हौज़में शंख सरीखा पानी भरा दशाको पहुँच चुकी थी। हुआ था। उसमें स्फटिकका प्रतिबिम्ब , पडनेके कारण ऐसा मालम होता था कि व्यापार। वहाँ पानी बिलकुल नहीं है। एक स्थानमें उद्योग-धंधोंका विचार हो जानेपर दीवार पर ठीक ऐसा चित्र खींचा गया अब हमें व्यापारका विचार करना चाहिए। था जिसमें एक सच्चा दरवाजा खुला पूर्व कालसे वैश्य लोग व्यापारका काम हुआ देख पड़े । वहाँ मनुष्यका सिर करते थे और अब भी वे करते है । भगव- टकरा जाता था। दूसरी जगह स्फटिक- गीतामें कहा गया है कि वैश्योंका काम का दरवाजा बंद दिखाई पड़ता था, । वाणिज्यभी है । भिन्न भिन्न देशोसे मित्र परन्तु यथार्थमं वह दरवाजा खुला था भिन्न वस्तुओंको खरीदकर लाने और यहाँ (सभापर्व श्र०४७)। यह वर्णन पर्शियन की वस्तको परदेश ले जाने श्रादिके लाभ- बादशाहकी पर्सिपुलिमवाली सभाके दायक कामों को बहुतेरे वैश्य करते थे आधार पर नहीं किया गया है । इसकी और खेती तथा गौरक्षाके धंधोंको भी वे कल्पना नहीं की जा सकती कि यह वर्णन ही करते थे: परन्तु अब वैश्य लोगोंने कहाँसे लिया गया है। फिर भी निश्चय- इन्हें छोड़ दिया है। यह पहले बतलाया पूर्वक मालूम होता है कि ये सब बान जा चुका है कि हिन्दुस्थानके ही किसी सम्भव हैं। यह भी कहा गया है कि इस दुसरे भागमें माल लाने-ले जानेके साधन सभाका सामान असुगेको सभामे लाया । पूर्व कालमें बैलोंके टॉड़े थे। महाभारतम गया था। हिमालयके आगे बिंदुसरोवर- एक दो स्थानों पर गोमी (बंजारे) लोगोंके के पास वृषपर्वा दानवकी एक बड़ी भारी हजारों बैलोंके टॉडांका वर्णन किया गया सभा गिर पड़ी थी। उसमें कई प्रकार के है। ये गोमी लोग किसी राजाको अमल- स्तंभ, नाना प्रकारके रत्न, मंदिर अँगनेके दारीके अधीन नहीं रहते थे। जंगलों में लिए चित्र-विचित्र रंग और भिन्न भिन्न रहनेकी आदत होनेके कारण वे मज़बूत प्रकारके चूर्ण थे। इस वृषपर्व-सभाका और स्वतंत्र वृत्तिके होते थे। और इसी काम समान होने पर बचे हुए सामानको सबबसे वे कभी कभी गजा लोगोंको कष्ट मयासुर अपने साथ ले आया और उसीसे भी दिया करते थे। महाभारतमें पक जगह उसने सभा तैयार की। चूर्ण अर्थात् चूना कहा गया है कि राजा लोगोंको ध्यान कई तरहका बनाया जाता है। एक प्राचीन रखना चाहिए कयोंकि इन गोमी लोगोंसे मराठी ग्रंथमें पानी सरीखे दिखाई पड़ने- उन्हें भय है। वे कमी कभी लुटमार भी करते पाले चूनेके बनानेकी युक्ति लिखी है । हमें थे। उनके द्वारा माल भेजनेमें कभी कभी तो युधिष्ठिरकी सभाकी सब बातें सम्भव धोखा भी होता था। महाभारतमें कहा मालूम होती हैं। यह स्पष्ट कहा गया है गया है कि राजाओंको राज्यके मार्गोको कि उसके बनानेघाले कारीगर पर्शियन सुरक्षित रम्बनेकी खबरदारी रखनी देशके, अर्थात् असुर, थे। इस बातका चाहिए । यह निर्विवाद है कि खुश्कीकी