पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/४१६

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महाभारतमीमांसा

ॐ महाभारतमीमांसा वीय पार्योंको बहुत प्राचीन कालसे इन आर्यावर्त और मेरुके बीचमें रहते थे। लोगोंकी अच्छी जानकारी थी। इनके | इसमें सन्देह नहीं कि ईसवी सन्के ३०० सिवा हण और चीन लोगोंका भी उनको वर्ष पहलेके लगभग ये हूण और चीनी बहुत कुछ शान अवश्य ही होना चाहिए। एक दूसरेके पड़ोसमें हरिवर्ष में रहते थे। यह सच है कि हण लोगोंका नाम पश्चिमी चीनका पुराना इतिहास यह बतलाता इतिहासमें ईसवी सन्के बाद आता है, है कि, हूण लोग चीनकी सरहद पर रहते तथापि पूर्व ओरके यह स्नेच्छ, हण और थे। इससे यह अच्छी तरह मालूम हो चीनी, बहुत प्राचीन हैं। चीनियोंका इति- जायगा कि, आर्य लोगोंको ईसवी सन्के हास ईसवी सन्के २००० वर्ष पहलेसे पहले ही इन हण लोगोंका कैसा ज्ञान अबतकका बराबर मिलता है। अवश्य ही था। उस समय ये लोग चीनके उत्तर- उन लोगोंके बड़े बड़े बादशाह, तिब्बत पश्चिम ओर थे। और नेपालके बीचसे, अपने वकीलों और व्यापारियोंको भारतवर्ष में भेजते होंगे। महाभारत कालमें भारतवर्षका हण लोग चीन देशके पश्चिममें रहते थे पूर्ण ज्ञान। और उनका नाम भी बहुत पुराना है। यह जय कि भारतवर्ष के बाहर के देशोंका नहीं कहा जा सकता कि, भारतवर्ष में बहुत कुछ शान यहाँके लोगोंको महाभारत- आने पर ही भारतीय प्रायौँका हरण लोगों- कालमें था, तब फिर इसमें कोई आश्चर्य- का परिचय हुआ। सारांश यह है कि की बात नहीं कि, स्वयं भारतवर्षका ज्ञान इन लोगोंका शान, प्रत्यक्ष और परम्परा- महाभारत-कालमें उनको सम्पूर्ण और से, भारतके लोगोंको प्राचीन कालमें और विस्तृत रूपसे था । वेद-कालमें आयौंको महाभार -कालमें अवश्य ही था। पञ्जाब और मध्यदेशका शान था। फिर शान्तिपर्षके शुकाख्यानमें भृगोलिक आगे चलकर धीरे धीरे उन्हें सारे देशकी उल्लेख बड़े महत्वका आया है। वह इस जानकारी हो गई और महाभारतसे जान प्रकार है। शुकदेवजी मेरु पर्वतसे चलकर पड़ता है कि उसकालमें उनको इस देशका जनकको गुरु करनेके लिए विदेहको सम्पूर्ण ज्ञान हो गया था। कितने ही आये। उनके मार्गका वर्णन करते हुए लोगोंने यह तर्क किया है कि, पाणिनिके कहा गया है:- कालमें दक्षिणके देशोंका विशेष शान न मेरोहरेश्च देवर्षे वर्ष हैमवतं तथा। था। यह सम्भवनोय जान पड़ता है। क्रमेणैव व्यतिक्रम्य भारतं वर्षमासदत् ॥ पाणिनिका काल ईसवी सनके ८००- स देशान् विविधान् पश्यन चीनहण-४०० वर्ष पूर्व मानने में कोई हर्ज नहीं। निषेवितान् । आर्यावर्तमिमं देशमाजगाम इस कालके बाद बुद्ध के समयतक दक्षिण महामुनिः ॥ (शां० अ० ३२५) और ठेठ कन्याकुमारीतक भारतीय आर्यों- इन श्लोकोंमें उत्तर ओर मेरु, दक्षिण का फैलाव होगया था और उनके राज्य भी ओर हरिवर्ष, उसके दक्षिण और हैमवत स्थापित हो चुके थे। विशेषतः चन्द्रवंशी और अन्तमें भारतवर्ष बतलाया गया है। आर्य भोजों और यादवोंने दक्षिणमें निवास ऐसी दशामें मेरुको साइबेरियामें ही किया था और वहाँ वैदिक धर्म पूर्णतया कल्पित करना चाहिए । इसके सिवा स्थापित हो गया था। यह बात निर्विवाद चीनी और हूण, इन दो जातियों के लोग, है कि, बौद्ध धर्मके पहले, वैदिक-धर्मका