पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/४१७

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ॐ भूगोलिक शान । ® ३८ दक्षिणमें पूर्ण साम्राज्य था। प्रो० रिस्ट- आदि भूगोल ग्रन्थकारोंने लिख रखा है डेविडसने लिखा है कि-"दक्षिण देशमै कि भारतवर्षकी पूरी जानकारी, लम्बाई- सीलोनतक ईसवी सन्के २०० वर्ष पहले-चौड़ाईके परिमाण सहित, अलेक्जेण्डर- तक पार्योका प्रसार न हुआ था : क्योकि को पञ्जाबमें प्राप्त हुई थी। वही जान- निकाय नामक बौद्ध-ग्रन्थमें विन्ध्याचलके कारी इरेटॉस्थनीसने अपने ग्रन्थमें लिख दक्षिण ओरके लोगोंमेसे किसीका नाम रखी है । कन्याकुमारीसे सिन्धुनदके मुख- नहीं है। सिर्फ एक गोदावरीके तीरका तककी जो लम्बाई उसने दी है, वह राज्य सोलह राज्योंकी सूची में पाया आजकलकी प्रत्यक्ष स्थितिसे प्रायः बिल. जाता है। दक्षिण भारतका नाम इसमें है। कुल मिलती है। यह देखकर जनरल कनि- ही नहीं। उड़ीसा, बङ्गाल और दक्षिणका गहमको बड़ा आश्चर्य हुआ; और उन्होंने भी नाम नहीं है। निकाय-ग्रन्थके समय, | लिख रखा है कि, सिकन्दरके समयमें दक्षिणमें, आर्योका फैलाव हुश्रा । विनय- भी भारतीय लोगोंको अपने देशके श्राकार ग्रन्थमें भरुकच्छ (भडोच ) का नाम है: और लम्बाई-चौड़ाईका सम्पूर्ण ज्ञान और उदानग्रन्थमें शूर्पारक ( सोपारा) था। मतलब यह है कि ईसवी सन्के ८०० का नाम है ।" परन्तु यह कथन बिलकुल वर्ष पहलेके बाद, अर्थात् पाणिनिके बाद भ्रमपूर्ण है। निकाय-ग्रन्थमें दक्षिण और परन्तु सिकन्दरके पहले, दक्षिणमें आयौं- के देशोंका नाम यदि नहीं आया, तो का फैलाव हो गया: ओर पांड्य इत्यादि इतनेसे ही यह कहना कि, दक्षिण ओरके आर्य राज्य भी वहाँ स्थापित हो गये। देश मालूम नहीं थे, बिलकुल भूलकी बात महाभारतके भीष्मपर्वमें भारतवर्षका जो है। उल्लेखाभावका प्रमाण चाहे देखने वर्णन दिया हुआ है, उसमें भारतवर्ष के में सुन्दर जान पडता हो, परन्त है वह कन्याकुमारीतकके सब राज्य दिये हुए बिलकुल लँगड़ा । जबतक यह निश्चय न हैं। यह भाग भूगोल-वर्णनका ही है। हो कि, जिस ग्रन्थमें उल्लेख नहीं है उसमें इस भागमें यदि किसी देशका नाम न उसका उल्लेख होना आवश्यक ही था, तब- पाया हो, तो अवश्य ही यह अनुमान तक इस प्रमाणकी कुछ भी कीमत नहीं करनेके लिए स्थान है कि वह देश महा- है। बौद्धोंके निकाय अथवा विनय ग्रन्थ भारत-कालमें ईसवी सन्के २५० वर्ष धार्मिक ग्रन्थ हैं। ये कुछ इतिहास अथवा पहलेके लगभग अस्तित्वमें नहीं था। महा. भूगोलके ग्रन्थ नहीं है; अतएव इन ग्रन्थों- भारतके भीष्म-पर्वके 8वें अध्यायमें भरत- में उल्लेखका न होना किसी प्रकारका खण्डके वर्णनमें सम्पूर्ण देशकी नदियों, सिद्धान्त निकालनेके लिए प्रमाणभूत पर्वतों और देशोंकी सूची दी हुई है । इस आधार नहीं हो सकता । इससे यह किसी सूचीका हमारे लिए यहाँ बड़ा उपयोग प्रकार सिद्ध नहीं होता कि दक्षिण भोर- था। परन्तु दुर्भाग्यसे वह सूची सिल- का ज्ञान उस समय था अथवा नहीं था। सिलेवार दिशाओंके क्रमसे नहीं दी गई परन्तु हम पहले ही देख चुके हैं कि है: अतएव यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा अलेक्जेण्डरके पहलेसे भारतीय आर्योको जा सकता कि वे देश कौनसे और कहाँ दक्षिण ओरका शान था और इसके अस्ति- है, अथवा थे। तथापि महाभारतमें अन्य पक्षका सबल प्रमाण भी मौजूद है। सैंकड़ों जगह भूगोलिक उल्लेख हैं। उन सिकन्दरके साथ आये हुए इरेटॉस्थनीस सबका उल्लेख करके उपयोग करना