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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/४१८

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महाभारतमीमांसा
  • महाभारतमीमांसा

- - असम्भव ही है। परन्तु जितना हो सका उल्लेख वनपर्व के वें अध्यायमें हिमा- है, प्रयत्न करके, विशेषतः तीर्थयात्राके लयपुत्र अर्बुदके नामसे पाया है। (६) वर्णनकी सहायतासे हमने यह निश्चित विन्ध्यका पर्यत प्रसिद्ध ही है। यह नर्मदा- किया है कि देशों, नदियों और पर्वतोंकी के उत्सर बड़ौदा प्रान्तसे पश्चिम पूर्व फैला स्थिति कैसी थी और उसके अनुसार है। उत्तर ओर गंगाके किनारेतक थोड़ी भारतवर्षका महाभारत-कालीन नकशा सी विन्ध्याद्रिकी श्रेणी गई है। मिर्जापुर- भी तैयार किया है। उन सबका वर्णन के पास विन्ध्यवासिनी देवी इसी पहाड़- आगे किया जायगा। की एकटेकरी पर है। (७) अब यह निश्चित सात कुलपवेत अथवा करना चाहिए कि पारियात्र पहाड़ कौन- पर्वतोंकी श्रेणी। सा है। इसके विषयमें बहुत ही मतभेद महाभारत (भीष्म पर्व, अध्याय 8) दिखाई देता है। कितने ही अर्वाचीन ग्रन्थों- में हिमालय पर्वतके अतिरिक्त भारतवर्षके में लिखा है कि विन्ध्यके पश्चिम भागको निम्नलिखित सात मुख्य पर्वत बतलाये । पारियात्र कहते हैं। परन्तु यदि ऐसा हो, गये हैं। तो विन्ध्य और पारियात्र नामके दो मित्र महेन्द्रोमलयःसह्यःशुक्तिमान ऋक्षवानपि। भिन्न कुलपर्वत कैसे हो सकते थे ? हमारे विन्ध्यश्च पारियात्रश्च सप्तैते कुलपर्वताः॥ मतसे पारियात्र पर्वत सिन्धु नदीके आगे- ___ इसमें बतलाये हुए कुलपर्वतो अर्थात् का पर्वत होना चाहिए । इस श्रेणीको बड़े बड़े पर्वतोकी श्रेणियाँ इस प्रकार आजकल सुलेमान पर्वत कहते हैं। यात्राकी हैं:-(१) महेन्द्रपर्वत-यह पूर्व ओर है। परिसमाप्ति वहाँ होती है, इसी विचारसे इसीसे महानदी निकलती है। इसीसे उसका पारियात्र नाम पड़ा होगा। महा- मिले हुए पूर्व ओरके घाट हैं। कहते हैं : भारत काल में इस पर्वततक आर्योंकी बस्ती कि इसी पर परशुराम तपस्या करते हैं।। थी। फिर कई शताब्दियोंके बाद उधर (२) मलयपर्वत-यह पूर्वघाट और पश्चिम- : मुसलमानोंकी प्रबलता हुई, अतएव वहाँ- घाटको जोड़ता है। इस कुलपर्वतमें नील- तक हिन्दू लोगोंकी यात्रा न होने लगी। गिरि बड़ा शिखर है। (३) सह्यपर्वत, नब इस विषयमें मतभेद उत्पन्न हुआ कि अर्थात् सह्याद्रि, प्रसिद्ध ही है । यह महा- पारियात्र पर्वत कोनसा है; और शायद राष्ट्र में है। इसकी श्रेणी त्र्यम्बकेश्वरसे इसीसे विन्ध्य पर्वतको ही पश्चिम भागमें नीचे पश्चिम-समुद्रके किनारकी समा- पारियात्र कहने लगे होंगे। रामायणमें नान्तर रेखामें मलाबारतक चली गई है। किष्किन्धा कांडमें जो भवर्णन दिया हश्रा (४) शुक्तिमान्-यह कौन कुलपर्वत है, है, उसमें पारियात्र पर्वत सिन्धु नदीके सो ठहराना कठिन है। शायद काठिया- , आगे बतलाया गया है। जो हो, इस प्रकार वाड़के पर्वतकी यह श्रेणी होगी, जिसमें ये मुख्य सात कुलपर्वत हैं। इनके अतिरिक्त, गिरनारका बड़ा शिखर है। इस पर्वतके इस भूवर्णनमें बतलाया गया है कि,और भी अगलोंमें अबतक सिंह मिलते हैं। (५) अनेक छोटे अथवा बड़े पर्वत हैं। इन अन्य इसके आगेकी पर्वतश्रेणी ऋक्षवान शायद पर्वतोंमें, महाभारतमें जिनका नाम आया राजपूतानेकी अराली पर्वतकी श्रेणी होगी। है ऐसा एक विनक पर्वत है । यह द्वारका- इसका मुख्य शिखर आबूका पहाड़ है। ' के पास है। शुक्तिमान पर्वतकी यह शाखा इसको अर्बुदपर्वत भी कहते हैं। इसका होगी। इसके सिवा नर्मदा और ताप्तीके