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महाभारतमीमांसा

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  • महाभारतमीमांसा

दिग्विजयमें लिखा है कि वह हिमालय उपर्युक्त वर्णनमें हमने यह विचार पार करके हरिवर्षमें गया था। वहाँ उसे : किया है कि, दिग्विजयके आधार पर एक नगर मिला। वहाँ दृष्टपुष्ट और भीष्म पर्व के देशोंकी सूचीके लोग भारत- तेजस्वी द्वारपालोंने उसे पीछे हटा दिया; वर्षके भिन्न भिन्न भागोंमें किस प्रकार और यह कहा कि “इस शहरको तुम दिखलाये जा सकते हैं। जान पड़ता है; नहीं जीत सकते । इसके आगे उत्तरकुरु-मेगास्थिनीज़ने भारतवर्ष के रहनेवाले में मनुष्य-देहसे किसीका प्रवेश नहीं हो लोगोंकी सूची तैयार की थी। लिखा है सकता।" इसके बाद उन्होंने, अपनी कि उस सूचीम ११८ नाम थे। स्ट्रेबोने खुशीसे, अर्जुनको दिव्य श्राभरण और वह सूची अपने ग्रन्थमें उद्धृत की है। दिव्य वस्त्र इत्यादि यज्ञके लिए दिये मेगास्थिनीज़का ग्रन्थ अब नहीं मिलता। (सभा० अ० २८)। इससे जान पड़ता है। परन्तु दुर्भाग्यसे स्ट्रेबोके ग्रन्थमें हमको कि तिब्बत देशमें भारती आर्य न केवल यह सूची नहीं मिली। भीष्म पर्वकी नहीं जाते थे, बल्कि उनको वहाँ जाने हीन सूचीका वैगुण्य हमने पहले ही बतलाया दिया जाता था। यह बात तो प्रसिद्ध ही है। उसमें जो देश दिये हैं, उनके नाम है कि तिब्बत देशके लोग अबतक अपने किसी विशिष्ट अनुक्रमसे नहीं बतलाये देशमें किसीको न श्राने देते थे। अवश्य ही गये हैं। बल्कि कुछ जगह केवल वर्ण- इस बीसवीं शताब्दीमें तिब्बत प्रान्त पर- सादृश्यसे नाम एक जगह दिये हुए पाये कीय लोगोंके लिए कुछ न कुछ खुल गया जाते हैं। तथापि देशोंका क्रम लगानेका, है। उत्तर और उत्तर-कुरु रहते हैं, इस जहाँ तहाँ हो सका है, प्रयत्न किया गया कल्पनाके लिए यही आधार देख पड़ता है। तङ्गण और परतङ्गण नामक दो देश है कि, चन्द्रवंशी कुरु लोग उत्तरकी ओर. अथवा लोग जो दक्षिणके लोगोंके अन्तमें सेगङ्गाकी घाटियोमसे आये थे। और इस दिये है, सो शायद भूलसे दिये गये है। विषयकी प्राचीन दन्तकथाओंसे यह यहाँ यह बतला देना चाहिए कि ये लोग धारणा दृढ़ हो गई कि हमारी जन्मभूमि उत्तर ओरके अर्थात् तिब्बतके हैं। वन उत्तर ओर है। तथापि ये लोग तिब्बती पर्वके २५४ वे अध्यायम, कर्गाने दुर्योधन- न थे। आर्योंका मूलस्थान उत्तर ध्रवकी के लिए जो दिग्विजय किया था, उसका ओर था, यही सिद्ध है; और यह हमने वर्गान संक्षेपमें दिया गया है। उसमें जो पहले ही कहा है कि भारती आर्योका देश पाये हैं वे इस प्रकार हैं:-प्रथम मूलस्थान कहीं न कहीं साइबेरियामहोगा। दुपदको जीतकर वह उत्तर ओर गया । तथापि इतनी बात यहाँ अवश्य बतला वहाँ उसने नेपाल देश जीता। पूर्व और देनी चाहिए कि, त्रिगर्न अथवा अानत अंग, वंग, कलिंग, शुंडिक, मिथिल, इत्यादि लोग यदि उत्तरकी और फिर मागध और कर्कखण्डको जीता। फिर बतलाये गये हों, तो इसमें आश्चर्य नहीं: । वह वत्सभूमिकी ओर चला । वहाँ जो क्योकि आर्योंकी बस्ती उत्तरकी ओरसे केवल मृत्तिकायुक्त भृमियाँ थीं उन्हें उसने ही दक्षिणकी और श्राई है। अतएव उत्तर जीत लिया। इसके बाद मोहन नगर, ओरके लोगों के नाम यदि दक्षिण ओरके विपुर और कोशलको उसने जीता। तब लोगोंको फिर प्राप्त हो गये हों, तो इसमें वह दक्षिणकी ओर चला। वहाँ पहले आश्चर्यकी कोई बात नहीं। रुक्मीको जीना । फिर पाण्ड्य और शैल