पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/४३०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
४०२
महाभारतमीमांसा

४०२

  • महाभारतमीमांसा *

प्रसिद्ध है। यह नदी, जिसका पहले नदियाँ हैं । इसलिए यह माने बिना काम जिक्र आ चुका है, वैदिक असिनी है। नहीं चलेगा कि, सरयू के पश्चिम ओर इसके सिवा दृशद्वती नदी कुरुक्षेत्रमें | इसी नामकी दूसरी छोटी नदियाँ हैं । यह सरस्वती और यमुनाके बीच बतलाई गई वर्णन ठीक है कि गङ्गा और शोणनद है। इस पुण्य नदीका वर्णन सरस्वती- उतरकर वे मगधमें गये । शोणनद मगधमें के समान ही किया गया है । सरस्वती है: और दक्षिण श्रोरसे वह गङ्गामें मिलता और दृशद्वतीके बीचका पुण्य-देश सबसे है। अब यह देखना चाहिए कि बङ्गाल अधिक पवित्र है: और इसीको ब्रह्मर्षि प्रान्तकी कौन कौनसी नदियाँ महाभारतमें देश मानते हैं। बतलाई गई है । लौहित्या नदी ब्रह्मपुत्रा अब हम इस बातका विचार करते है। परन्तु ब्रह्मपुत्राका नाम नदियोंकी हैं कि कुरुपांचालोंके पूर्व श्रोर कौन कौन-सूची में नहीं है । कौशिकी नामक एक और सी नदियाँ हैं । जैसा कि पहले वर्णन नदी बङ्गालको जान पड़ती है। तीर्थ- किया जा चुका है, श्रीकृष्ण, भीम और वर्णनमें गयाके पासकी फल्गु नदी आई अर्जुन जब यहाँसे मगधको जाने लगे, है, परन्तु नदियोंकी सूची में नहीं। कर- तब उन्हें गण्डकी, महाशोग और सदा- तोया बङ्गालकी एक नदी जान पड़ती नीरा नदियाँ मिली थी । इसके बाद है। अब हम दक्षिणकी नदियोंकी ओर उन्हें सरयू मिली । अयोध्याको सरयू पाते हैं। नदी प्रसिद्ध है । परन्तु सरयू और गङ्गाके : प्रथम गङ्गामें मिलनेवाली यमुना नदी बीच गण्डकी, महाशोण और सदानीरा। प्रसिद्ध ही है। उस यमुनामें मिलनेवाली नदियाँ नहीं हैं । ये तीनों नदियाँ सरयूके और मालवासे आनेवाली चर्मरावती पूर्व ओर हैं । सरयू और गङ्गाके बीच जो अथवा चंबल नदी भी वैसीही प्रसिद्ध है। गोमती नदी है, सो यहाँ बिलकुल ही नहीं इस नदीके किनारे एक राजाने हजारों बतलाई गई है। इस प्रकारका भ्रम उत्पन्न : यज्ञ किये थे वहाँ यज्ञमें मारे हुए पशुओके करनेवाले अनेक स्थल महाभारत में हैं। चमड़ीकी राशियाँ एकत्र हो गई थीं: गण्डकी और सदानीरा बिहार प्रान्तकी इसलिए इसका नाम चर्मण्वती पड़ा। • गङ्गा गत्वा समुद्रभिः सप्तधा समपद्यत ॥१६॥ वेत्रवती अथवा बेतवा नदी चम्बलकी (श्रा० अ० १७०) भाँति ही मालवासे निकलकर यमनामें 'गङ्गा मप्तधा गत्वा यह अर्थ करके टीकाकारने हिमालय- मिलती है। सिन्धु अथवा काली सिन्धु में ही सात गङ्गा बनलाई है । वे इस प्रकार है:-बस्वोक-भी मालवाकी नदी है । इसका नाम सारा, नलिनी, पावनी, सीता, सिन्धु, अलकनदा और चक्ष। . नदियोंकी सूची में नहीं दिखाई पड़ता। पर हमारे मतमे ऐमा प्राशय दिखाई देता है कि, अगले भोकमें बतलाई हुई नदियाँ मात ही है। - महानदी पूर्व ओर महेन्द्र पर्वतके पाससे गङ्गा च यमुना चैव प्लक्षजातां मरस्वतीम् । जाती है । बाहुदा नदी भी इसी जगह है। रथस्था सरय चैव गोमती गगडकी तथा ॥ विन्ध्यके दक्षिण और नर्मदा नदी प्रसिद्ध अपयुषितपापास्ते नदीः सप्त पिबन्ति ये॥ ही है। इसी भाँति पयोष्णी अर्थात् ताप्ती गङ्गा, यमुना, प्लक्षावतरण नीर्थसे निकली हुई " हु नदी भी प्रसिद्ध है । परन्तु ताप्तीका नाम सरस्वती, रथरथा, सरयू, गोमती और गण्डको ये बड़ी नदियाँ हिमालयसे निकलकर एकत्र होकर समुद्र में जा महाभारतमें कहीं पाया नहीं जाता। मिलती है। आदिपर्वमें दी दुई जानकारी यहाँ लेने योग्य है। गिरती है । इधर, महाराष्ट्र के सह्याद्रिसे