पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/४३१

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भूगोलिक शान । निकलकर पूर्व ओर जानेवाली नदियाँ अाजकलकी तोर्थयात्राके स्थानोंसे मेल गोदावरी, भीमरथी अर्थात् भीमा, वेणा मिलानेका मनोरञ्जक कार्य करने योग्य है। और कृष्णा बतलाई गई हैं। कृष्ण-वेणा हम इसके लिए यथाशक्ति प्रयत्न करेंगे। एक नदी अलग बतलाई गई है। कृष्णाके लिखा है कि,पहले पाण्डव काम्यक घनमें दक्षिण ओरकी कावेरी नदी भी इन थे। प्राचीन काल में प्रत्येक देशके भिन्न भिन्न नदियोंकी सूचीमें लिखी गई है। इसके भागोंमें वन थे। उन वनों में हर किसीको भी दक्षिणमें त्रावनकोरकी ताम्रपर्णी ' रहनेकी परवानगी थी । वन पर किसी नदी है। परन्तु इसका नाम नदियोंकी देशके राजाकी सत्ता न थी । वन- सूचीमें नहीं दिखाई देता; तथापि तीर्थ- वासी क्षत्रिय ऐसे वनोंमें मृगया पर उदर- वर्णनमें इसका नाम पाया है। कोंकणकी निर्वाह किया करते थे; और तपस्या नदियाँ बिलकुल ही छोटी हैं। उनके नाम करनेवाले ब्राह्मण कन्दमूलफल खाकर इस सूची में आये हैं अथवा नहीं, सो अपना निर्वाह करते थे। यह बात कुछ नहीं बतलाया जा सकता । पश्चिम ओर · काल्पनिक नहीं है । इस प्रकारकी परि- बहनेवाली नदियों में नर्मदा और पयोष्णी- स्थिति महाभारत-कालतक थी । ग्रीक का उल्लेख पहले ही आ चुका है । मही लोगोंने वनमें निर्भयताके साथ रहनेवाले नदी गुजरातमें है, उसका उल्लेख इस तत्ववेत्ता मुनियोका वर्णन किया है । बौद्धो- सूची में नहीं है। सिन्धका उल्लेख प्रारम्भ- के ग्रन्थों में भी ऐसे अनेक वर्णन है। लिखा में ही है। यहाँ यह बतलाया गया है कि है कि बद्ध. राज्य त्याग करनेके बाद, सबसे बड़ी नदी गङ्गा है और उसीके ऐसे ही अनेक जङ्गलोंमें रहा। उनमेसे भगीरथी, मन्दाकिनी इत्यादि नाम हैं। प्रत्येक वनका भिन्न भिन्न नाम है। इन नदियोंकी सूची देशोंकी ही सूचीकी लुंदिनी वनका नाम बौद्ध ग्रन्थोंमें बरा- तरह हम यहाँ देते हैं: और जिन नदियों- बर पाता है। प्रस्तु; महाभारतमें लिखा का हम इसमें आजकलकी नदियोंसे मेल है कि पांडव वनवासकं समय कितने मिला सके हैं, उन पर तारका-चिह्न कर ही वनों में रहे । उन्हीं वनोंका स्थल दिया है। पहले हम यहाँ निश्चित करेंगे । लिखा है कि, पाण्डव पहलेपहल काम्यक महाभारत कालके तीर्थ।। । कालक ताथा वनमें रहे । वे भागीरथीके तीर परसे अब जिन भिन्न भिन्न तीर्थोका वर्णन पहले कुरुक्षेत्रकी ओर गये । सरस्वती, महाभारतमें किया गया है, उनका वृत्तान्त दृशद्वती और यमुनाका दर्शन करके वे यहाँ दिया जाता है। पाण्डवोंकी इस पश्चिमकी ओर चले । तब गुप्त रूपसे रहने- तीर्थयात्राके वर्णनके पहले तीर्थोंकी दो वाली सरस्वतीके तीरके निर्जल मैदानमें सूचियाँ वनपर्वमें दी हुई हैं । अर्थात्, एक ऋषिप्रिय काम्यक वन उन्हें दिखाई दिया बार नारदके मुखसे और दूसरी बार (वनपर्व अध्याय ५) । इससे यह ध्यानमें धौम्य ऋषिके मुखसे। इन दोनों सूचियोंमें । श्रा जायगा कि काम्यक वन मरु देशमें थोडासा फर्क है। पागडव प्रत्यक्ष जिन था । उस बनको छोड़कर फिर वे द्वैतवन- जिन तीर्थोंमें गये थे उन उन तीर्थोंका वर्णन में गये । द्वैतवन उत्तर और हिमालयकी वनपर्व में विस्तार सहित दिया हुश्रा है। तराई में होगा । उसमें पशु, पक्षी, मृग और जहाँ जहाँ पाण्डव गये थे, उन स्थानोंका हाथियोंक झुंड थे, और उसमें सरस्वती