पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/४३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
४०४
महाभारतमीमांसा

४०४ 8 महाभारतमीमांसा - नदी बहती थी। लिखा है कि इसी द्वैत उसका भी वर्णन दिया हुआ है। यहाँसे धनसे वे तीर्थ-यात्राको निकले और फिर फिर, लिखा है कि, पांडव नन्दा और काम्यक वनमें श्राये । यहाँसे पहले पूर्व अपरनन्दा नामक दो नदियों पर गये और ओर नैमिषारण्य है। यह पुण्य-देश फिर हेमकट पर्वत पर गये । इस पर्वत पर अयोध्याके पश्चिममें है । लिखा है कि अदृश्य वेदघोष सुनाई देता है। कौशिकी इसके पूर्व और गोमती तीर्थ है । इसके नदीके पास उक्त नदियाँ होगी। यही बाद वर्णन किया है कि नैमिपारण्यमें विभांडकपुत्र ऋष्यशृंगका श्राश्रम है। पहले आनेके बाद गोमतीका स्नान करके ऋष्यशृंगकी कथा यहाँ दी हुई है। थे बाहुदा नदी पर गये । यह बाहुदा नदी कौशिकीसे चलकर पांडव समुद्र पर गये। यहाँ दूसरी आई है । इसके बाद पांडव । और जिस जगह गङ्गा समुद्रसे मिली प्रयागको भाये । यह प्रयाग गङ्गा-यमुना- है, उस जगह पाँच सौ नदियोके मध्य का सङ्गम ही है । लिखा है कि, गङ्गा- । भागमें उन्होंने समुद्रमं स्नान किया । सङ्गम पर उन्होंने ब्राह्मणोंको दान दिया। यह वर्णन प्रसिद्ध है कि, गङ्गा नदी यहाँ यह कहा गया है कि प्रयाग-भूमि समुद्रमें सहस्रमुखसे मिलती है। उसीका देवोंकी यज्ञभूमि है । फिर लिखा है कि, उल्लेख इन ५०० नदियोंके नामसं किया प्रयागसे पांडव गयाको गये । गयामें हुअा जान पड़ता है। यहाँ पूर्व औरके गयाशिर नामक एक पर्वत है, और रेत- तीर्थ समान हुए । यह बड़े श्राश्चर्यकी से सुशोभित महानदी नामकी अर्थात् बात है कि, इस वर्णनमें काी जानेका फल्गु नदी है । इसके अतिरिक्त यहाँ वर्णन नहीं है। तथापि धोम्यने जो तीर्थ- ब्रह्मवेदी भी पास है: और लिखा है कि, ; वर्णन किया है, उसमें दो तीन और तीर्थ अक्षयवट भी है । यही अक्षयवट श्राद्ध लिखे हैं । उनका यहाँ समावेश किया जा करनेके लिए सर्वश्रेष्ठ स्थान कहा गया है। सकेगा। कालिंजर पर्वत पर हिरण्यबिन्दु यहाँ अक्षयपद-फलकी प्राप्ति होती है । यहाँ नामक एक बड़ा स्थान है। इसके बाद गय राजाका वर्णन भी दिया है । इसके : भार्गवरामका महेन्द्र पर्वत बतलाया गया बाद लिखा है, कि पांडव लीग गयासं चल- है। लिखा है कि उस पर्वत पर भागीरथी कर मणिमती नामक दुर्जया नगरीमै रहे: : नदी मणिकर्णिका सरोवरमेंसे आई है। और फिर उन्होंने अगस्त्याश्रमका दर्शन ऐसा अनुमान करनेमें कुछ भी बाधा किया ।निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता नहीं जान पड़ती कि महेन्द्र पर्वतका यह कि यह तीर्थ कहाँ है तथापि उस वर्णनसे मणिकर्णिका तीर्थ वास्तवमें काशीमें ही यह स्पष्ट जान पड़ता है कि भागीरथी होगा। तथापि, यह आश्चर्यकी बात है पर वह श्राश्रम था। अगस्त्यने जो वातापी- कि, काशी अथवा वाराणसीका विस्तृत को मारा था, सो भी वर्णन दिया हुआ है। वर्णन इस तीर्थ-वर्णनमें नहीं है । जो हो। इसके बाद कौशिकी नदीका वर्णन दिया अब हम दक्षिणके तौँकी ओर पाते हैं। है। यह नदी भागीरथीमें उत्तर ओर- पाण्डव गङ्गामुख पर स्नान करके से मिलती है। लिखा है कि कौशिकी समुद्र तीरसे कलिंग देशको गये। वहाँ उन्हें मदी पर विश्वामित्रने तपस्या करके ' पहले वैतरणी नदी मिली। इस नदीमें ब्राह्मण्य प्राप्त किया । रके वे पवित्र हुए। इस नदीमें भागीरथी पर भगीरथने जो यज्ञ किया, स्नान करनेसे उनकी मालम हुआ कि, मह