पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/४३३

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8 भूगोलिक ज्ञान । तपोबलके योगसे मृत्युलोकसे बहुत दूर समुद्रके किनारे किनारे स्थलसे गये हैं, चले गये । यहाँसे पास ही महेन्द्र पर्वत नौकामें बैठकर नहीं गये हैं। इस कारण है। उस पर्वत पर परशुराम रहे हैं। यह सम्भव है कि, वे प्रायः अगस्त्य पृथ्वी जब कश्यपको दान दी गई, तब तीर्थसे द्रविड़ देशमें होते हुए एकदम वह समुद्र में डूबने लगी। उस समय पश्चिम किनारे पर आ गये हो। पश्चिम कश्यपके तपःप्रभावसे वह सागरसे किनारे पर जो गोकर्ण महाबलेश्वर- बाहर वेदीके रूपसे यहाँ रह गई है। यह · का तीर्थ है, उसका भी वर्णन नहीं किया घेदी समुद्रमें एक छोटासा टापू है । गया । इससे यह नहीं माना जा सकता पाण्डवोने समुद्रमे स्नान करके उस वेदी कि, वह तीर्थ उस समय नहीं था। पर श्रारोहण किया; और इसके बाद महेन्द्र अच्छा, धौम्यने दाक्षिण ओरके जो तीर्थ पर्वत पर ठहर गये। प्रत्येक चतुर्दशी- बतलाये हैं, उन्हें अब देखिये। पहले को वहाँ परशुरामका दर्शन होता है। गोदावरी, वेणानदी, भीमरथी नदी और तदनुसार उस दिन दर्शन करके पाण्डव पयोष्णी, ये नदियाँ बतलाई है । लिखा है समुद्रके किनारे किनारे दक्षिण दिशाको कि, पयोष्णोके किनारे राजा नृगने सैंकड़ो ओर चले। समुद्र किनारक तीर्थ यहाँ यज्ञ किये थे। पाण्डयोंके देशके अगस्त्य तीर्थ नामनिर्देशके बिना बतलाये गये हैं। प्रश- और वरूण तीर्थका वर्णन है: और अन्तमें स्ता नदी देखकर वे समुद्रभामिनी गोदा- ताम्रपर्णी और गोकर्ण तीर्थका वर्णन है। वरी नदी पर प्राय। इसके बाद द्रविड़ : नारदतीर्थयात्रामें जो और अधिक तीर्थ देशमें समुद्र किनारे अगस्त्य तीर्थ पर : बतलाये गये है, व कावेरी नदी और आये । वहाँसे नारीतीर्थ पर आये। उसके कुमारी तीर्थ हैं । अर्थात् दक्षिणी सिरेमें बाद अन्य पवित्र समुद्रतीर्थों पर क्रमशः , कन्या कुमारीका यहाँ उल्लेख है । कृष्णा, जानेके बाद वे शारकक्षेत्रमें आये । वेणा और दण्डकारण्यका भी उल्लेख है। दक्षिण और पूर्वके इन तीर्थोके वर्णनमें सप्त गोदावरीका भी उल्लेख है: अर्थात् दो तीन नाम हमको दिखाई नहीं देते। ' गोदावरीके सात मुखोंका यहाँ निर्देश मुख्यतः पूर्व और जगन्नाथके स्थानका किया गया है। सबसे विशेष बात यह है अथवा पुरीका वर्णन नहीं है। ऐसी दशामें कि, उज्जयिनीके महाकालका वर्णन किया हमारे सामने यह प्रश्न आता है कि, क्या गया है। और यहाँके दोनों स्थान, कोटि- इस क्षेत्रका माहात्म्य पीछेसे उत्पन्न हुआ तीर्थ और भद्रवट, जो अब भी प्रसिद्ध हैं, है ? धौम्यक बतलाये हुए तीर्थ-वर्णनमें उल्लिखित है । उपर्युक्त वर्णनसे यह अनु- भी पुरीका नाम नहीं है: और नारदके मान किया जा सकता है कि दक्षिण ओर- वर्णनमें भी पुरीका नाम नहीं आया। का अधिकाधिक शान कैसे होता गया। इसी प्रकार रामेश्वरका नाम भी पाण्डवी- इससे यह स्पष्ट हो जायगा कि, पाण्डवो. की तीर्थ-यात्रामें नहीं पाया। इससे यह को तीर्थ यात्राको अपेक्षा धौम्यके तीर्थ- संशय होता है कि, ये तीर्थ इस समयके यात्रा-वर्णनमें अधिक तीर्थोके नाम आये बाद उत्पन्न हुए होंगे। परन्तु यह बात है; और उनसे भी अधिक नारदकी तीर्थ- हमने अनेक जगह कही है। कि, उल्लेखके यात्राके वर्णनमें तीर्थोके नाम पाये हैं। प्रभावका प्रमाण लँगड़ा है। इसके अब हम पश्चिम ओरके तीर्थीका अतिरिक्त यह बात भी है कि, पागडव' उल्लेख करते हैं। पाण्डव शारक तीर्थ-