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महाभारतमीमांसा

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  • महाभारतमीमांसा

में आये; वहाँ उन्होंने वनमें प्राचीन यात्रामें पुष्करका बहुत वर्णन है। पुष्कर- राजाओंके किये हुए यज्ञ देखे; और का क्षेत्र ब्रह्माजीका है । पुष्कर एक बड़ा किनारसे भीतर जाने पर तपस्वी ब्राह्मणों- तालाब है, नदी नहीं। वह राजपूतानेके से भरी हुई परशुरामकी वेदी देखी। मध्य भागमें है। इसके पासका अर्बुद वसु, अश्विनीकुमार, यम, सूर्य, कुबेर, अर्थात् प्राबूका पहाड़ वहाँ बतलायागया इन्द्र, विष्णु, विभु, शङ्कर इत्यादिके सुन्दर | है । नारदकी तीर्थयात्राके वर्णनमें द्वारका- मन्दिरोंका अवलोकन किया । इसके बाद का वर्णन है । वास्तवमें पाण्डवोके वे फिर शूर्पारक तीर्थ पर आये; और समयमें द्वारकाको तीर्थत्व नहीं प्राप्त हुआ वहाँसे प्रभास तीर्थ पर गये । प्रभास था; और इसी कारण पाण्डव द्वारका- तीर्थ काठियावाड़में दक्षिण समुद्रके को नहीं गये। नारदकी वर्णन की हुई किनारे पर द्वारकासे दूर है। यहाँ उन्हें तीर्थयात्रा महाभारतके समयकी है । श्रीकृष्ण और यादव मिले । यहाँसे | उस समय द्वारका स्वभावतः एक बड़े पाण्डव विदर्भ देशके अधिपति द्वारा तीर्थका स्थान बन गई थी। इस स्थान- बढ़ाई हुई पवित्र पयोष्णी नदी पर आये। का बहुत ही विस्तृत वर्णन किया गया इससे यह अनुमान निकलता है कि विदर्भ है। (द्वारकामें) पिंडारक तीर्थ पर स्नान देशकी यह नदी गुजरातमें होगी। परन्तु करनेसे सुवर्ण-प्राप्ति होती है। यह यह भी सम्भव है कि पाण्डव पीछे फिर- आश्चर्यकी बात है कि उस तीर्थमें अब भी कर पयोष्णी नदी अर्थात् ताप्ती पर आये पमरूपी चिह्नोंसे युक्त मुद्रा (सोनेके सिक्के) हो। क्योंकि फिर लिखा है कि यहाँसे दृष्टिगोचर होते हैं । वहाँ ऐसे कमल वे वैदूर्य पर्वत और नर्मदा नदी पर गये। दिखाई पड़ते हैं जिन पर त्रिशलके चिह्न अथवा, प्रभास तीर्थ काठियावाड़का न होते हैं । यहाँ सदैव शंकरका निवास है। होगा। जो हो; नर्मदा नदीमें स्नान करके इस वर्णनसे जान पड़ता है कि महाभारत- वे राजा शर्यातिके यज्ञप्रदेश और व्यवन- कालमें द्वारका एक प्रसिद्ध तीर्थ बन गया के आश्रम में आये । ये दोनों स्थान नर्मदा- था । परन्तु जब हम इन बातों पर ध्यान के तीर पर ही थे । यहाँ च्यवन मुनि देते हैं कि द्वारकाकी स्थापना श्रीकृष्णने और शर्यातिकी कन्या सुकन्याकी कथा नवीन ही की, रेवतक पर्वत पर उन्होंने है। यहाँसे फिर वे लोग सिन्धु नदके नवीन दुर्ग बनवाये, और उनके निज- तीर्थ पर गये; और वहाँके अरण्यमें जो धाम जाने पर द्वारका पानीमें डूब गई, सरोवर था उसे देखा। इसके बाद वे तब स्पष्ट प्रकट हो जाता है कि श्रीकृष्ण पुष्कर तीर्थ पर आये और आर्थिक पर्वत | अथवा पाण्डवोंके समयमें यह तीर्थ नहीं पर रहे । तदनन्तर गङ्गा, यमुना और था। इससे स्वभावतः अनुमान होता है सरस्वतीके किनारेके तीर्थ उन्होंने देखे। कि यह वर्णन और यह सम्पूर्ण नार- पाण्डवोंकी इस पश्चिम-तीर्थयात्राका दोक्त तीर्थयात्रा महाभारत-कालकी, पर्णन बहुत विचित्र और बहुत ही थोड़ेमें अर्थात् ईसवी सन्के पहले २५० वर्षके किया गया है । विशेषतः पुष्करका वर्णन लगभगकी है। जो कि अन्य स्थानों में बहुत अधिक किया | इसके बाद उत्तर आरके तीथोक गया है, यहाँ वैसा नहीं पाया जाता। वर्णनमें युवन्धर, अच्युतस्थल और भूत- नारदकी तीर्थयात्रा और धौम्यकी तीर्थ- ! लव्य नामक, यमुना परके तीथौंका वर्णन