पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/४३५

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  • भृगोलिक ज्ञान ।

४०७ है। लक्षावतरण तीर्थका उल्लेख होकर आगे दिया गया है। यह कहनेवाला मनुष्य भी कुरुक्षेत्रमें पाण्डवोंके जानेका वर्णन है। कि मैं कुरुक्षेत्रको जाऊँगा, कुरुक्षेत्रमें कुरुक्षेत्रसे सरस्वतीके विनशन तीर्थका रहूँगा, पापसे मुक्त हो जाता है। दशद्वती- वर्णन है। इसके बाद विपाशा अर्थात् के उत्तर और सरस्वतीके दक्षिण जितना व्यासा नदो पाई है। विपाशासे फिर वे क्षेत्र है, वह सब पुग्यभूमि है। इतने ही काश्मीरको गये । इसके प्रागे फिर वे क्षेत्रमें, अनेक किंबहुना सैंकड़ों तीर्थोंका मानस सरोवर पर गये। वहाँ उन्हें वर्णन इस अध्यायमें किया गया है, जिनमें वितस्ता नदो दिखाई दी। वितस्ता नदीके तीन मुख्य हैं। पहला पृथूदक है। लिखा पास जला और उपजला नामक दो : है कि, सब क्षेत्रोंमें कुरुक्षेत्र पवित्र है। नदियाँ उन्हें मिली। धागे मैनाक तथा कुरुक्षेत्रमें सरस्वती और सरस्वतीमें पृथू- श्वेतगिरि पर्वत परसे वे कैलाश पर्वत दक सबसे अधिक उत्कृष्ट है। दूसरा पर गये। वहीं उनको भागीरथीका दर्शन तीथे स्यमन्तपञ्चक है। कहते हैं कि. ये हुआ। इसके बाद वे गन्धमादन पर्वत पाँच तालाब परशुरामने क्षत्रियोंका नाश पर आ पहुँचे और जहाँ कि विशाला- करके उनके रक्तसे भरे थे। तीसरा तीर्थ संज्ञक बदरी (बेरी) है और नरनारायण- सन्निहती नामक है। लिखा है कि, सूर्य- का प्राश्रम है, तथा जहाँसे अलकनन्दा । ग्रहणके समय जो मनुष्य इस तीर्थमें नदी निकलती है, वहाँ वे जा पहुंचे। स्नान करेगा वह सौ अश्वमेध करनेका नरनारायणके श्राश्रममें पहुँचने पर घटो- पुगय पावेगा। इस तीर्थमे सब तीर्थ आये कचकी सहायतासे आगे जाकर फिर है और इसी लिए इसका नाम सन्त्रिहती उन्होंने भागीरथी नदीमें स्नान किया है। भागवतमें लिखा है कि, सूर्यग्रहणके और अपनी तीर्थ यात्रा समाप्त की। समय कुरुक्षेत्रमें कौरव, पागडव, यादव, पुष्कर और कुरुक्षेत्रका महत्त्व। गोपाल, सब एक जगह इकट्ठे हुए थे। और, श्राज भी सूर्यग्रहणके समय कुरु- __ महाभारत-कालमें दो तीर्थ अथवा क्षेत्रमें ही जानेकी विशेष महिमा मानी तीर्थोके स्थान बहुत ही प्रसिद्ध थे। एक जाती है। वहाँलाखों मनुष्य यात्रामें एकत्र अर्बुदके पासका पुष्कर तीर्थ और दूसरा होते हैं। कुरुक्षेत्र । पुष्कर तीर्थ सब तीर्थीका राजा उस समय यह धारणा थी कि कुरु- है। पुष्कर का जो सुबह-शाम स्मरण करेगा क्षेत्रमें जो युद्धमें मरेगा, वह मुक्ति उसे भी सब तीर्थोंके स्नान करनेका फल पावेगा। इसी कारण कौरव-पाण्डव इस मिलेगा। पुष्कर तीर्थक विषयमें एक बात क्षेत्रमें युद्ध के लिए जमा हुए थे। परन्तु और यह है कि, ब्रह्माजीका एक मात्र । यह बात सम्भव नहीं कि, इतनी बड़ी यही क्षेत्र है। शेष सब तीर्थ शिव, सेना कुरुक्षेत्रमें रह सकी हो । स्वयं विष्णु अथवा अन्य देवताओंके हैं । नारद- महाभारतमें ही लिखा हुआ है कि, कुरु- की बतलाई हुई तीर्थ-प्रशंसामें इस तीर्थ- क्षेत्रको बीचमें रखकर दोनों ओरकी फौजे को सब तीर्थोका आदिभूत कहा है। बहुत विस्तीर्ण प्रदेशमें फैली हुई थीं। दूसरा तीर्थ कुरुक्षेत्र है । नारद-तीर्थ-वर्णन- पञ्जाबका कुछ भाग, पूरा कुरुजाङ्गल, में इस तीर्थके लिए एक बहुत बड़ा स्वतन्त्र रोहितकारण्य और मरुभूमितक सेना अध्याय (वन पर्वका ३ वाँ अध्याय) फैली हुई थी । अहिच्छत्र, कालकूट, गङ्गा-