पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/४६१

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उपयोगमें आ गया हो कि आर्योंको भाषा भाषासे आया है। तथापि ऐसे शब्दोंकी बोलने में म्लेच्छोकी तरह भूलें न करनी संख्या बहुत ही कम है। खास प्राकृत चाहिएँ। जो हो, धीरे धीरे महाभारत- | भाषाके शब्द अर्थात् देशी भाषामें प्रच- काल पर्यन्त अनार्य लोग और उनके लित शब्द भी महाभारतमें थोड़े ही हैं। मिश्रणसे उत्पन्न हुए लोग, समाजमें बहुत ऐसे शब्दोंमें ही एडूक शब्द है, यह बात बढ़ गये तथा उनकी प्राकृत भाषाएँ ही अन्यत्र लिखी जा चुकी है। ऋग्वेदमें भी महत्त्वकी हो गई। संस्कृत केवल विद्या- कचित् अनार्य भाषाके शब्द आते हैं- पीठों और यज्ञशालाओं में रह गई। महा- इस बातको उस वेदका अभ्यास करने- भारतकी उच्च वर्णकी स्त्रियाँ संस्कृत वाले मानते हैं। परन्तु पूर्ण दृष्टिसे देखने बोलती हैं: परन्तु सुबन्धु और कालिदास पर कहना चाहिए कि महाभारतकी आदिके नाटकोंमें उच्च वर्णकी भी स्त्रियाँ संस्कृतमें प्राकृत, देशी अथवा अनाय प्राकृत बोलती हैं। इससे यह अनुमान म्लेच्छ एवं यूनानी भाषाके शब्द बहुत ही किया जा सकता है कि महाभारत कालमें थोड़े-उँगलियों पर गिनने लायक हैं। प्राकृत भाषा उच्च वर्णकी स्त्रियों में प्रविष्ट प्राकृतका उल्लेख नहीं न थी। ___ऐसा मालूम होता है कि बाहरी देशों- महाभारत-कालमें प्राकृत भाषाएँ के म्लेच्छों के साथ व्यवहार करनेके लिए, प्रचलित हो गई थीं, परन्तु अचरजकी भारती आर्योका. बिलकुल भिन्न म्लेच्छ वात यह है कि महाभारतमें कहीं उन भाषा बोलनेके लिए. अभ्यास करना पड़ता भाषाओंका उल्लेख नहीं है । बहुधा ऐसा होगा । पञ्जाब पर सिकन्दरका अाक्रमण उल्लेख करनेका अवसर ही न आया हो चुकनेके पश्चात् यह बात और भी होगा । महाभारतके चाराडाल अथवा आवश्यक हो गई होगी। आदि पर्वमें श्वपचनक संस्कृत बोलते हैं, इसमें कुछ विदुरने युधिष्ठिरको एक स्नेच्छ भाषामें श्राश्चर्य नहीं है। व्यासजीका मूल ग्रन्थ भाषण करके सावधान किया है कि वार- संस्कृतम ही लिग्वा गया और यह प्रकट णावतमें "तुम जिस घर में रहने के लिए जा है कि उस समय प्राकृत भाषाओंका जन्म रहे हो, उस घरमै लाख श्रादि ज्वालाग्राही भी न हुआ था। सौतिने सन् ईसवीसे पदार्थ भरे हुए हैं।" उस भाषामें कही लगभग २५० वर्ष पहले जब महाभारत- हुई बातको और लोग नहीं समझ सके। को वर्तमान रूप प्रदान किया, तब प्राकृत यह भाषा हमारी समझमें बहुत करके भाषाएँ उत्पन्न हो गई थी; किंबहुना यह यूनानी रही होगी। इस बातका वर्णन भी सच है कि जनसाधारण उन्हीं भाषाओं- पहले किया हो जा चुका है: और आज- को बोलने लगे थे। परन्तु मूल ग्रन्थ कल भी एक आध भाषा समझमें न आवे, संस्कृतमें होनेके कारण, उसकी छाया तो अँगरेज़ीमें यह कहनेकी प्रथा है कि इस बढ़े हुए ग्रन्थ पर पड़ी। इसके सिवा तुम तो यूनानी बोलते हो। अस्तु: भारती पहले यह दिखाया ही गया है कि बौद्ध आर्यों द्वारा बोली गई संस्कृत भाषामें धर्मके विरोधसे यह महाभारत ग्रन्थ बाहरी भाषाओंके शब्दोंका, क्वचित् प्रसङ्ग नैयार हुआ । बौद्ध धर्मने प्राकृत मागधीको पड़ने पर, आ जाना सम्भव है। तद- हथियाया था। अर्थात् उसके विरोधसे नुसार महाभारतमें सुरङ्ग शब्द यूनानी सौतिने, सनातनधर्मियोंकी पुरानी संस्कृत ५५