ॐ धर्म। 8 ४५४ - - - - है कि एक ही बार लगातार तीन दिनसं अवकाश मिल गया होगा । जैनोने उप- अधिकका उपवास न करना चाहिए । वासोंका इतना अधिक महत्त्व बढ़ा दिया ब्राह्मण और क्षत्रिय, तीन दिनका उपवास कि अन्तिम उपास उन्होंने ४२ दिनतकका करें: और वैश्य तथा शुद्र एक दिनसे बतलाया है। उपवासमें हर प्रकारका अधिक उपवास न कर । यह एक महत्त्व अन्न वर्ण्य है। यही नहीं, पानी पीनेतककी की श्राहा है, जिस पर ध्यान देना चाहिए, मनाही है, यह ध्यान देनेकी बात है। कि 'वैश्य और शद्र तीन दिनका उपवास । महाभारतमें उपवासकी तिथियाँ कभी न करें। क्योंकि उनके पेशेके हिसाब-निर्दिष्ट हैं। वे ये हैं-पञ्चमी, षष्ठी, और से अधिक उपवास करना उनके लिए कृष्ण पक्षकी अष्टमी तथा चतुर्दशी । इन सम्भव नहीं । एक दिनमें दो बार भोजन तिथियों में जो उपवास करता है, उसे कोई होता है और तीन दिनोंमें छः बार; इनमें दुख-दर्द नहीं होता। भिन्न भिन्न महीनों में से एक.दो या तीन बारका भोजन छोड भी उपवास करनेका फल कहा गया है। दिया जाय । यही उपवास-विधि है। उल्लिखित तिथियाँ आजकल बहुधा उप- दिनमें एक ही बार भोजन करनेको एक- | वासकी नहीं हैं। किन्तु अचरजकी बात यह भक्त * कहते हैं और यह भी उपवासमें है कि आजकल जो एकादशी, द्वादशी उप- माना गया है। तीन दिनका उपवास करके वासकी तिथियाँ हैं, व महाभारतमें इस अर्थात् छः बारके भोजनोंको छोड़कर, कामके लिए निर्दिष्ट नहीं है। ये तिथियाँ सातवाँ भोजन करे : यह मुख्य उपवास- विष्णु और शिवकी उपासनाकी हैं। इस विधि है । परन्तु इसके आगे पक्ष भर लिए उनकी उपासनाओंके प्रसङ्ग पर इन- (पन्द्रह दिन) तक उपवास करनका वर्गान का उल्लंख हो सकता था। अनुशासन पर्व- किया गया है। जो पुरुष वर्ष भर, एक के इस अध्यायमें समग्र उपवास-विधि पक्षतक तो उपास करता और दूसरे पक्ष- वर्णित है और इसीसे, इसमें बतलाये हुए में भोजन करता है, उसका षण्मास अन- समग्र तिथि-वर्णनमें, उन तिथियोंका शन हो जाता है । यह अङ्गिरा ऋषिका नाम नहीं आया। यह बात भी विशेष मत बतलाया है। महीने भरका भीउपवास रूपसे लिखने योग्य है कि अनुशासन बतलाया है, इसका अचरज होता है। पर्वके १०६ अध्यायमें एक ऐसा व्रत शूद्रों और वैश्योंको जोएक दिनकी अपेक्षा बतलाया गया है कि प्रत्येक महीनेकी अधिक उपवास करनेकी मनाही है, वह द्वादशी तिथिको यदि भिन्न भिन्न नामोले उन्हें पसन्द न हुई होगी। जैनोंने अनेक विष्णुकी पूजा की जाय तो विशेष पुण्य उपवास करनेकी आशा सभीके लिए दे मिलता है। वे नाम यहाँ लिखे जाते हैं। दी: इस कारण, जैन धर्मका विस्तार निम्न मार्गशीर्षसे प्रारम्भ कर प्रत्येक महीनेके श्रेणीके लोगोंमें होनेके लिए बहुत कुछ लिए यो नाम लिखे हैं- केशव, २ नारा-
यण, ३ माधव, ४ गोविन्द, ५ विष्णु,
•मूल शब्द एक-भक्त है, लोगोमें कहीं कही एक- मधसूदन, त्रिविक्रम, वामन, श्री- मुक्त बोला जाता है। परन्तु मूलमें एकभक्त शब्द है। इसकी कल्पना यह है कि दिनमे जो दो बार भोजन किया। धर, १० हृषीकेश, ११ पद्मनाभ, १२ दामो- जाता है अर्थात् दो बार भक्त या भात खाया जाता है, सो । दर । अर्थात् सन्ध्योपासनके श्रारम्भमें उसके स्थान में एक बार दी भोजन को पानी कात विष्णुके जिन चौबीस नामोका स्मरण डोगह ध्यान देने की बात है। किया जाता है, उनमें से पहले बारह नाम