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महाभारतमीमांसा
  • महाभारतमीमांसा

-६-६३), वह पीछेसे सौतिने जोड़ा है। वर्णन और गन्धमादन पर्वतके वर्णन ध्यान इसमें जो श्लोक हैं वे बड़े वृत्तके हैं और देने योग्य हैं। शोक-वर्णनमें स्त्रीपर्व प्रायः समस्त श्राख्यान भी मुख्य कथासे सम्बद्ध सबका सब सौतिका होना चाहिये । इसमें नहीं है । परन्तु इसमें सनातम-धर्मके कविने यह वर्णन किया है कि दिव्य-दृष्टिकी तस्वोंकावर्णन संक्षेपमें औरमार्मिक रीतिसे प्राप्तिसे गान्धारी भारती-युद्धको समस्त किया गया है : इसलिये यह श्राख्यान भूमिको देख सकी और समर-भूमिमें अभ्यास करने योग्य है। नीतिके तत्त्व भी मरे हुए वीरोंकी स्त्रियाँ अपने अपने स्थान स्थानपर समझा दिये गये हैं। इस पतिके शवको गोदमें उठाकर शोक कर थातका उदाहरण विदुरनीति है। उद्योग रही है । यह चमत्कारिक वर्णन महाकविके पर्व (अध्याय ३२-३६) में विदुरका जो लिये शोभादायक नहीं है। गान्धारीके सम्भाषण है वह पूर्वापर कथासे विशेष मुखसे इस प्रकार शोक-वर्णन कराना सम्बद्ध नहीं है, तथापि विदुर-नीतिके अयोग्य जान पड़ता है। यह भी सम्भव अध्याय बहुत ही मार्मिक हैं और व्यव- नहीं कि अठारह दिनतक युद्धके जारी हार-चातुर्यसे भरे हैं । सारांश, धर्म और रहनपर, जिन वीरोंके शव इधर उधर नीतिका उपदेश इस ग्रन्थम बार बार अनक पड़े थे वे पहचाने जा सके। जब इस बात स्थानों में किया गया है। इसलिये इस ग्रन्थ- पर ध्यान दिया जाता है कि भारती-युद्ध- को अपूर्व महत्त्व प्राप्त हो गया है। भूमि किसी साधारण युद्ध-भूमिके समान मर्यादित न होकर कई कोसोंकी दूरीतक (५) कवित्व । फैली हुई थी, तब कहना पड़ता है कि यह महाभारत न केवल इतिहास और सारा दृश्य असम्भव है । युद्ध-भूमिमें धर्मका ही ग्रन्थ है, किन्तु वह एक उत्तम स्त्रियोंका जाना भी अनुचित जान पड़ता महाकाव्य भी है। यह बात प्रसिद्ध है कि है। काव्यालंकार-ग्रन्थमें उदाहरणके तौर सब संस्कृत कवियोंने व्यास महर्षिको प्राय ! पर दिया हुआ "अयं स रशनोत्कर्षी" कवि वाल्मीकिकी बराबरीका स्थान दिया वाला प्रसिद्ध श्लोकभी इसीस्त्री-पर्वमें पाया है। इसमें कुछ आश्चर्य नहीं कि व्यासजीके जाता है और आधुनिक कवियोंके अश्लील मूल भारतके रसमय कवित्वकी स्कृर्तिसे वर्णनके नमूनेका है । स्पष्ट रूपसे जान मेरित होकर सौतिने भी अपनी काव्य- पड़ना है कि यह श्लोक सौतिका ही होगा, शक्तिको प्रकट करने के लिये अनेक अच्छे । वह महाकवि व्यासका नहीं हो सकता। अच्छे प्रसङ्ग साध लिये हैं। सृष्टि-वर्णन, युद्ध-भृमिमें पड़े हुए वीरोंके जिन मृत युद्ध-वर्णन और शोक-प्रसङ्गही कविको शरीरोंको हिंस्र पशुओं और पक्षियोंने स्फूर्तिका प्रदर्शन करनेकेलिये प्रधान विषय नोचकर छिन्न भिन्न कर डाला है, वे सुन्दर हुश्रा करते हैं । सौतिने महाभारतमें और वर्णनीय कैसे हो सकते हैं ? युद्धमें युद्धके वर्णनोको बहुत ही अधिक बढ़ा दिया बालवीर अभिमन्युके काम आनेपर, चार है, यहाँतक कि कभी कभी इन वर्णनोंसे पाँच दिनके बाद, उसका मुख मनोहर पाठकोंका जी ऊब जाता है । सृष्टि- और प्रफुल्लित कैसे दिखाई दे सकता है? सौन्दर्यके वर्णनको भी सौतिने स्थान स्थान | और उसकी बाल-स्त्री उस मुखका चुम्बन पर बहुत बढ़ा दिया है। विशेषतः बन कैसे कर सकती है ? सारांश, यह समूचा पर्वम दिये हुए. हिमालय पर्वतके रश्याक स्त्री पत्र सौतिन मवे सिरसे रचा है और