४६२ & महाभारतमीमांसा ® दिखाई पड़ता है।" पारसी लोगोंने इस विवेचन बहुत ही उत्तम रीतिसे किया विषयमें एक निराली ही कल्पना की है। गया है। वह भौतिक और आध्यात्मिक उनके मतानुसार जगत्में दो तत्त्व सदैव सारी सृष्टि के लिए लगाकर दिखलाया ही प्रचलित रहते हैं। एक अच्छा और एक | गया है। यहाँ पर यह बात बतलानी चाहिए खुरा, एकसद्गुणी और एक दुर्गुणी। दोनों कि भारती प्रार्योके तत्वज्ञानमें यह के देवता भी स्वतन्त्र हैं। और सदैव उनका सिद्धान्त कदापि स्वीकार नहीं हुआ है झगड़ा जारी रहता है । परमेश्वर अच्छेका कि, बुरा परमेश्वरने उत्पन्न नहीं किया, अधिष्ठाता है; और उसे उन्होंने प्राहुर्मस्द् किन्तु उसे परमेश्वरके मतके विरुद्ध, (इसीका रूपान्तर होर्मज) नाम दिया है। किसी न किसी दूसरेने जगत्में पैदा किया बुरेका अधिष्ठाता अहरिमन् है, उसका है। भगवद्गीतामें स्पटतया कहा है कि, माहर्मस्से सदैव विवाद होता रहता है। तीनों गुण परमेश्वरने ही उत्पन्न किये है: अन्तमें आहुर्मस्टूकी ही विजय होनेवाली और अच्छी वस्तुएँ तथा क्रियाएँ जैसे है; तथापि, कमसे कम वर्तमान समयमें परमेश्वरसे उत्पन्न होती हैं, वैसे ही बुरी संसारमें जो दुर्गुण, दुःख, रोग, संकट, । भी होती हैं । परन्तु परमेश्वर इन दोनों में दर्भित इत्यादि दिखाई देते हैं, उन्हें नहीं रहता। प्रहरिमन ही उत्पन्न करता है। परन्तु ये चैव सात्विका भावा राजसास्ता- उनका नाश करके श्राहुर्मस्द् लोगोंको मसाश्च ये । मत्त एवेति तानविद्धि न वह सुख भी देता है। पर्शियन लोगोंकी यही ' तेषु ते मयि ॥ कल्पना ज्यू और क्रिश्चियन मतमें ईश्वर । (भगवद्गीता) और शैतानके स्वरूपमें दिखाई पड़ती है। हमारे मतसे भारतीय तत्वज्ञानकी कपिलने ऐसा सिद्धान्त किया कि, दो- यह विशेषता है कि, उन्होंने तत्वज्ञानमें की जगह तीन तत्व जगत्में भरे हैं: अच्छा, आनेवाल दो कठिन प्रश्नोंका बहुत ही मध्यम और बुरा । इन्हींको उन्होंने सत्व, मार्मिक रीतिसे विवेचन किया है । इस रज और तम नाम दिया। मैटर अथवा प्रश्नका, कि जड़ और चेतन सृष्टि कहाँसे अव्यक्त अथवा प्रकृतिके ही ये गुण हैं: · उत्पन्न हुई, उन्होंने यह जवाब दिया है और इन्हीं गुणोंके न्यूनाधिक मिश्रणसे कि, परमेश्वरसे परमेश्वरने ही उत्पन्न देवता, दैत्य, मनुप्य, वृक्ष, शिला, इत्यादि : की। अर्थात् उसकी विशेषता यह है कि, सब ऊँचे-नीचे स्थावर-जङ्गम पदार्थ बने जड़ चेतनका द्वैत उन्होंने निकाल डाला। हैं। इन तीन गुणोंके न्यूनाधिक प्रभावसे अन्य तत्वशानियोंकी भाँति-फिर चाहे वे ही सुख,दुःख, शान, मोह, नीति, अनीति, प्राचीन हो, अथवा अर्वाचीन हो-यदि इत्यादि आध्यात्मिक भाव दिखाई देते हैं। उन्होंने चेतन अर्थात् जीव या प्राम्माको कपिलकी यह कल्पना इतनी सुन्दर और परमेश्वर माना, तो इसमें आश्चर्यकी कोई सयुक्तिक है कि, भारती श्रार्योंकेतन्वज्ञानमें बात नहीं। परन्तु उन्होंने चेतनके साथ वह पूर्णतया प्रस्थापित हो गई है । यह ही साथ जड़को भी परमेश्वरस्वरूप नहीं कि, त्रिगुणोंका अस्तिम्ब केवल सांख्यो- माना । उनकी यह कल्पना बहुत ही उच्च मे ही मान्य किया हो। किन्तु वेदान्त, है। यही नहीं, आधुनिक वैज्ञानिक प्राधि- योग, कर्म, इत्यादि सब सिद्धान्तवादियों- कारोंकी भाँति, वह सच भी होना मे उसे माना है। भगवद्गीतामें त्रिगुणोंका चाहती है। हमारे तत्वशानियों के लिए जड़
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