४६३ और चेतनमें अनुल्लंध्य भेद ही नहीं रहा। भारती आर्य प्राध्यात्मिक विचारमें अग्रणी सच तत्वज्ञानका मूलभूत हेतु जो एकन्व थे और अब भी हैं। उनके आध्यात्मिक सिद्ध करना है, उसे इन तत्वज्ञानियोंने विचार अब भी सारे संसारके लोगोंको अपनी बृहत् कल्पना-शक्तिकी सहायतासे आश्चर्यमें डाल रहे हैं। प्रात्मा क्या पदार्थ है, पूर्ण करके यह सिद्धान्त स्थापित किया कि, उसका स्वरूप क्या है, उसकी आगेकी गति जगत में एक ही तत्व भरा हुआ है। तत्व- क्या है, इत्यादि बातोंके विषयमें प्राचीन शानीको दूसरी कठिनाई संसारके सुख-: ऋषियोंने बहुत अधिक विचार किया दुःख, अच्छे-बुरे, नीति-अनीति इत्यादिके है। उन्होंने अपने विचार वक्तत्वपूर्ण वाणी- विषयमें पड़ती है। इस कठिनाईको हल से उपनिषदों में लिख रखे हैं और उन्हींका करनेके लिए भी द्वैतको अलग कर उन्होंने विस्तार महाभारतमें किया गया है । ऐसा माना है कि, सब उच्च-नीच भाव : प्रात्माही सारे जगन्का चेतन करनेवाला परमेश्वरसे ही उत्पन्न हुए हैं: और पर- मूलभूत पदार्थ है। वह सम्पूर्ण जगत्के मेश्वरसे अलग कोई अहरिमन या शैतान भौतिक और बौद्धिक तन्वके मूलमें है। नहीं है। यह बात अरिस्टाटलने भी स्वीकार की अस्तु: यह बात स्वीकार करनी पड़ेगी है। पंचशिखका कथन है- "जब किमरणके कि, भारती प्रार्य तत्वज्ञानियोंकी भौतिक बाद चेतन क्रिया बन्द हो जाती है, तब सृषिकी यिचिकित्सा अपूर्ण है । यह अवश्य ही चेतन आत्मा जड़के भीतर ध्यानमें रखना चाहिए कि, अर्वाचीन रहनेवाला एक भिन्न है।" पाश्चात्य भौतिक तत्वज्ञानकी इस विषयमें बेकनके कालसे शास्त्रियोंको-पाश्चात्य वैज्ञानिकोको- ही प्रगति हुई । जबसे बेकनके यह प्रति- अभीतक यह रहस्य नहीं मालम हुआ पादित किया कि, प्रयोग और अनुभवका ! कि जीव क्या पदार्थ है। महत्व प्रत्येक शास्त्र और तत्वज्ञानमें है, तबसे पाश्चात्य भौतिक शास्त्रोंकी बहुत प्राण। कुछ उन्नति हुई है। प्राचीन कालमें प्राच्य ___जीवका मुख्य लक्षण प्राण है; क्योंकि अथवा पाश्चात्य तत्वज्ञानमें केवल कल्पना सम्पूर्ण जीवित वस्तुएँ श्वासोच्छास करती और अनुमानोंका आधार लिया जाता हैं । अर्थात् प्राण कहते हैं जीवको, और था । इसके अतिरिक्त, आध्यात्मिक जीव कहते हैं आत्माको। यह प्रान्मा विचारोंमें प्रयोग अथवा अनुभवको ईश्वरस्वरूप है, परब्रह्मका अंश है। इस स्थान ही नहीं है। ये विचार केवल : प्रकार प्राणका परब्रह्मसे सम्बन्ध है। प्राण- तर्क अथवा अनुमान पर अवलम्बित का भारतीय तत्वज्ञानियोंने खूब अध्ययन हैं । मनुष्यकी बुद्धिमत्तासे जितना हो किया: और अध्ययन तथा तर्कसे उन्होंने सकता है, उतना अध्यात्मिक विचार उसके विषयमें कितने ही सिद्धान्त बाँधे प्राचीन भारतीय प्रायौंने किया है: हैं। प्राणके मुख्य पाँच भाग उन्होंने कल्पित और इस विचारमें भारतीय आर्य सब किये हैं: और पाँच इन्द्रियों तथा पाँच लोगोंमें अग्रणी हैं। प्रीक लोग जिस प्रकार भूतोकी भाँति ही उनके भिन्न भिन्न स्थान भौतिक विचार अथवा कला-कौशलमें बतलाये हैं। अग्रणी थे, अथवा रोमन लोग जैसे प्राणात्मणीयतेप्राणीव्यानात्व्यायच्छते तथा। कानूनके तत्वविचारमें अग्रणी थे, वैसे ही गच्छत्यपानोऽधश्चैव समानोहृद्यवसितः॥
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