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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/५२७

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  • तत्वज्ञान । 8

झोका देकर मन बाहर निकलता है। एक ही स्थानको जाते हैं। महाभारतमें भी तथापि योगीको चाहिए कि वह निराश कहा है कि, सारी निष्ठाएँ नारायणके प्रति न होते हुए, अश्रान्त परिश्रम करके, हैं । इन भिन्न भिन्न मार्गौसे मनुष्य जब निद्रा और मत्सरका त्याग करके, मनको अपने अन्तर्याममें जाता है, तब उसे वहाँ फिर पूर्व स्थानमें लाकर स्थिर करे। मन परमात्माका साक्षात् दर्शन हो सकता है। भिन्न भिन्न विचार, विवेक, वितर्क उत्पन्न इसके विषयमें दो तीन बातें यहाँ बतला करेगा। इस प्रकार मन चाहे बार बार देना आवश्यक है। पहली बात यह है कि कष्ट दिया करे, तथापि मुनिको धैर्य न अन्य तत्वज्ञानोकी भाँति योगमें भी यही छोड़ना चाहिए : और अपना कल्याण' कहा है कि जिस मनुष्यको मनका निरोध साधनेका मार्ग स्थिर रखना चाहिए। करके समाधिमै ईश्वर-साक्षात्कार करने इस मार्गसे योगीको धीरे धीरे ध्यानकी की इच्छा हो, उसको नीतिका आचरण रुचि लगेगी, और उसे मोक्ष प्राप्त ' खूब दृढ़तासे और शुद्ध करना चाहिए। होगा।" व्यवहारमें नीतिके जो नियम सर्वमान्य हैं, ईश्वरका ध्यान करनेके विषयमें , उन सबका उसे अच्छी तरह पालन करना भारती आर्य तत्वज्ञानियोंका पूर्ण श्राग्रह ! चाहिए:अर्थात् परद्रव्य, परस्त्री, परनिन्दा है: और ऐसा ही ग्रीक दशके नृतन इत्यादिसे उसे अलिप्त रहना चाहिए । लेटो-मतवादियोंका भी है। अनुमान है। इसके अतिरिक्त योगीको अहिंसाका नियम कि उन्होंने अपने ये मत शायद महा-' पूर्णतया पालन करना चाहिए । मांसका भारतसे अथवा भारती तत्वज्ञाताओंसे भोजन अवश्य ही योगीके लिए वर्त्य है। ही ग्रहण किये हों, क्योंकि उनके ये मत यही नहीं, किन्तु योगीको कीटकादि क्षुद्र सिकन्दरकी चढ़ाईके बादके हैं। वे कहते । जन्तुओंकी भी हिंसा नहीं करनी चाहिए। है:-"दृश्य जगत्को पीछे छोडकर प्लेटाके नवीन मतवादी ग्रीक तत्वज्ञानियों- मनुष्यको अपना मन ऊँचे ले जाकर का भी यही मत था। उनके बडे तत्व. परमेश्वरस तादात्म्य करना चाहिए । : वत्ता प्लाटिनस्ने मांस-भक्षण वर्ण्य किया यही उसका इति-कर्तव्य है । ईश्वरकी ' था। इसके सिवा, योगीको निद्रा, जहाँ- भूमि ध्यान है।" इस ध्यानके भीतर तो तक हो सके, कम करनी चाहिए । लिखा हम प्रवेश न कर सके: और यह कहें कि । है कि लोटिनस्ने भी अपनी निद्रा अत्यन्त ध्यान अथवा समाधिमे ईश्वरसे तादात्म्य कम कर दी थी। इस वर्णनसे यह उप- पाकर आनन्दकी परमावधि अर्थात् ब्रह्म- र्युक्त अनुमान दृढ़ होता है कि, योगशास्त्र साक्षात्कारका अनुभव हो जाय, तो ये के सिद्धान्त भारतवर्षसे ही पाश्चात्य बातें कहनेकी नहीं हैं। सारे दार्शनिक- ग्रीस देशमें गये । भारतीय आर्य लोगोंके फिर चाहे वे योगी हों, वेदान्ती हो, प्लेटो-योगी प्रायः सारा दिन और रात नींदके के अनुयायी हो, अथवा पायथागोरसके बिना काटते हैं। योगके जो तत्व और हों-साक्षात्कारके विषयमें और वहाँके लक्षण ऊपर दिये हैं, उनका एक छोटेसे परम सुखके विषयमें खानुभवसे और सुन्दर श्लोकमें, भीष्मस्तवराजमें, महा- विश्वाससे बतलाते हैं। मनकी इस भारतने समावेश किवा है:- प्रकारकी स्थितितक जा पहुँचनेका प्रत्येक यं विनिद्रा जितश्वासाः का मार्ग भिन्न होगा: परन्तु सब मार्ग सत्वस्थाः संयतन्द्रियाः।