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महाभारतमीमांसा

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  • महाभारतमीमांसा

अदृश्य रहता है; और उसके साथ रहने होती" । जैसा कि पहले कहा है, मार्फिरी- बाला उसका लिंगशरीर, चूँकि सूक्ष्म का मत था कि, मनुष्यका आत्मा कभी होता है, अतः वह भी किसीको दिखाई : पशुके शरीर में प्रवेश नहीं करता। किन्तु नहीं पड़ता। वह सदैव मनुष्यके ही शरीरमें जाता यहाँ एक बतलाने योग्य बात है। है। प्लेटोके अनुयायियोंका, नवीन और हमने पहले यह प्रश्न किया है कि, सांस्यों- प्राचीन दोनोंका, मत इससे भिन्न था। के सूक्ष्म पंचमहाभूत अथवा तन्मात्राओ- उनके मतानुसार आत्मा भिन्न मिल की जो कल्पना की गई है, सो किस योनियों में प्रवेश करता है। पुनर्जन्मके लिए ? इसका थोड़ा बहुत उत्तर लिंगदेह- फेरेमें कोई ऐसा विषय नहीं रहता कि की कल्पनामें दिखाई देता है। यदि प्रमक ही योनिमें जन्म लेना चाहिए। हम यह मान लें कि प्रान्माके साथ कुछ भारती आर्य तत्वज्ञानके मतसे मनुष्य, न कुछ जड़ कोश जाता है, तो यह स्पष्ट देव, इत्यादि ऊँचे प्राणी और पशु, कीट, है कि वह सूक्ष्म भृतोंका ही होना चाहिए। वृक्ष इत्यादि नीच जीवित प्राणी-इन जिस प्रकार मन और पंचेन्द्रियाँ जड़ सभीमें प्रात्माको कर्मानुसार फिरमा होकर भी सूक्ष्म होती हैं, उसी प्रकार पड़ता है। उसका मत है कि पशुओं और पंचमहाभूत भी सूक्ष्म कल्पित करके यहाँ वृक्षोंमें भी श्रात्मा है । इस मतसे पूर्वोक्त यह माना गया है कि, वे प्रान्माके साथ पहले प्रश्नका बहुत ही उत्तम रीतिसे जाते हैं। खुलासा हो जाता है । इस विषयमें कि जान पड़ता है कि, लिंगदेहको कल्पना आत्मा शरीरमें कैसे और कब प्रवेश ग्रीक दार्शनिकों में भी थी। यह यात उन्होंने करता है, थोड़ेमें और सरलतापूर्वक यह भी मानी थी कि, आत्माके आसपास कहा जा सकता है कि प्रात्मा भोजनमें कोई न कोई भौतिक आवरण होना। वनस्पतिके द्वारा जाता है। और उस चाहिए । प्लेटिनसका मत यह था कि, भोजनके द्वारा जब उसे प्राणीके शरीर में आत्मा जिस समय पृथ्वीसे स्वर्गकी ओर प्रवेश मिल जाता है, तब फिर वह वहाँसे जाता है, उस समय जब कि वह तारोंके रेतके द्वारा किसी न किसी योनिमें समीप पहुँचता है, तब वहाँ उसका भौतिक कर्मानुसार जाता है, और वहाँ उसे प्रावरण गिर पड़ता है; और उसको शरीर मिलता है। यह कल्पना बिलकुल स्वर्गीय आवरण अथवा देह प्राप्त होता अशास्त्रीय नहीं है। पाश्चात्य शारीर-शास्त्र- है। परन्तु मार्फिरी नामक ग्रीक तत्ववेत्ता- वेत्ताओका यह मत है कि पुरुषके (मनुष्य का मत प्लेटिनसके आगे गया था। वह अथवा पशुक) रेतमें असंख्य स्पर्म होते कहता है-"तारोंके समीप भी आत्माका है; और स्त्रीके रजसे उनका संसर्ग होता लिंगदेह नीचे नहीं गिरता।मानधी आत्मा- है। परन्तु उनमेंसे प्रत्येक प्राण-धारण के अस्तित्व के लिए एक भौतिक लिंगदेह अथवा बीज-धारणकी शक्ति नहीं होती। मामाके पास होना चाहिए, और ऐसे हजागें स्पा में किसी एक-आध स्पर्ममें ही लिंगदेहसे युक्त आत्मा मनुष्यके शरीर- बीज अथवा जीव धारण करने की शक्ति में प्रवेश करता है। और इसी कारण यह होती है और स्त्रीके शुमसे उसका संयोग अन्य शरीरमें प्रवेश नहीं कर सकता, होकर गर्भधारण होता है। इस बातका अथवा उसे करनेको इच्छा भी नहीं उपर्युक्त सिद्धान्तसे बहुत अच्छा मल