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महाभारतमीमांसा

® महाभारतमीमांसा मोक्षका निश्चित और विश्वासपूर्ण मार्ग शब्दमें वास्तवमें सम्पूर्ण प्राचरलका है। धर्मयुक्त निष्काम कर्माचरणका मार्ग समावेश होता है परन्तु महाभारतमें-पह सिर्फ भगवद्गीतामें ही नहीं बतलाया बात बतलाई गई है कि, धर्मके दो भाग, गया है। किन्तु सम्पूर्ण महाभारतमे, प्रथसे | | एक अधिक श्रेष्ठ और दूसरा कम श्रेष्ठ, हो लेकर इतितक, इसका उपदेश मौजूद है। सकते हैं। वनपर्वमें धर्म आठ प्रकारका महाभारत और रामायण यह दो आर्ष- बतलाया गया है। यज्ञ. वेदाध्ययन. दार काव्य इसी उपदेशके लिए अवतीर्ण हुए और तपका एक वर्ग किया गया है। और हैं। संन्यास अथवा योगकी भाँनि धर्मा- सत्य, क्षमा, इन्द्रियदमन, और निर्लोभता चरण भी मुक्तिप्रद है, यही बात मन पर इन चारका दूसरा भाग है। जमा देनेके लिए इन राष्ट्रीय प्रन्योका इज्याध्ययनदानानि जन्म है। किसी विपत्तिमें भी अथवा तपः सत्यं क्षमा दमः। संसारके किसी प्रलोभनसे मनुष्यको प्रलोभाति मार्गोयं धर्माचरणका मार्ग न छोड़ना चाहिए, यही धर्मस्याएविधः स्मृतः ॥ उस तन्त्र सिखलानेके लिए वाल्मीकि इनमेंसे पहले चार पितृयाण-संशक और व्यासके सारे परिश्रम हैं । इन मार्गकी प्राप्तिके कारण हैं : और दूसरे राष्ट्रीय महाकाव्योंने राम, युधिष्ठिर, दश- चार देवयान-संज्ञकमार्गकी प्राप्तिके कारण रथ, भीष्म, इत्यादिके चरित्र, कर्मयोगका हैं। सजन निरन्तर उनका अवलम्बन अमर सिद्धान्त पाठकोंके चित्त पर अंकित करते हैं । (वनपर्व अध्याय २:-तत्रपूर्वश्चतु- करनेके लिए, अपनी उच्च वाणीसे,अन्यन्न वर्गः पितृयाणपथे रतः उत्तगे देवयानस्तु उत्तम चित्रोंसे रँगे हैं: और उन चरित्रों- मद्भिराचरितः सदा)। इन दो भेदोंसे के द्वारा उन्होंने यह उपदेश दिया है कि, धर्मके, कर्ममार्ग और नीनिमार्ग, ये दो इसी उच्च तत्वके अनुसार आचरण करने- भाग किये गये हैं, जिनमेंसे पहला भाग से मनुष्यको परमपद प्राप्त होगा। हमारे कम दर्जेका है और दूसरा श्रेष्ट दर्जेका मतसे, महाभारतका पोथा चाहे जितना है। यक्ष, अध्ययन, दान और तप, ये बढ़ गया हो और उसमें भिन्न भिन्न अनेक धर्मकार्योके, प्राजकलके भी प्रसिद्ध खरूप विषयोंकी चर्चा चाहे जितनी की गई हो, ' हैं । परन्तु यहाँ पर यह सूचित किया तथापि उसका परमोश्च नीति धर्मतन्वोंका गया है कि, धर्मकार्य करनेवाले लोग यह सिद्धान्त कही लुप्त नहीं हुआ है और पितृयाणसे, जैसा कि पहले बतलाया है. वह पाठकोंकी दृष्टिके सामने स्पष्ट अक्षरों चन्द्रलोकको जाकर अथवा स्वर्गको जाकर में सदैव लिखा हुआ दिखाई देता है। फिर वहाँसे पुनरावृत्ति पायेंगे। सत्य, ___ यह बात निर्विवाद स्वीकार करनी क्षमा, इन्द्रियनिग्रह और निलोभता, ये चाहिए कि, नीतिकी कल्पना और सिद्धान्त धर्मके दूसरे भाग आजकलकी रष्टिसे भारतवर्ष में धर्मकी कल्पना और सिद्धान्त-नीतिके भाग हैं: और इनका आचरण से मिला हुआ है। पाश्चात्य तत्वज्ञानियों करनेवाले लोग, जैसा कि हमने पहले की भाँति भारतीय आर्य तत्वज्ञानियोंकी बतलाया है, देवयानसे ब्रह्मलोकको जाकर बुद्धि में नीति और धर्मका भेद प्रारूढ़ नहीं फिर वहाँसे नहीं लौटेंगे। अर्थात् महा- होता । तथापि किसी किसी जगह महा- भारतकारका यह सिद्धान्त स्पष्टतया भारतमें ऐसा भेद किया गया है । धर्म दिखाई पड़ता है कि, प्रीतिका आचरण