- तत्वज्ञान।
५१३ - करनेवाला पुरुष भी वेदान्तीकी भाँति श्रासुरी सम्पत्तिसे बन्धन मिलेगा। इस अथवा योगीकीभाँतिमोक्षको प्राप्त होगा। वचनसे जान पड़ता है कि, गीताका यह यहाँ पर जो यह बतलाया गया है कि, स्पष्ट मत है कि, नीतिका आचरण मोक्ष:- इस मार्गका आचरण सजन लोग करते का ही कारण है। समग्र महाभारतका हैं, उसका मार्मिक खुलासा उद्योगपर्व में भी मत देवयानपथके वर्णनसे वैसा ही एक जगह किया गया है। है, सो ऊपर बतलाया ही है। ... अत्रपूर्षश्चतुर्षों दंभार्थमपि सेव्यते।। उत्तरस्त चतुर्वर्गो नामहात्मसु तिष्ठति ॥ धर्माचरण मोचपद है। .. ____ यह बात संसारके अनुभवकी है कि यह माननेमें कोई आश्चर्य नहीं कि, या, वेदपठन, दान, तप, इत्यादि बाते वेदान्त-ज्ञान और योगसाधनसे जिस अधार्मिक मनुष्य भी दम्भके लिए कर प्रकार मोक्षप्राप्ति है, उसी प्रकार संसार- सकता है। परन्तु दूसरा मार्ग अर्थात् के नैतिक आचरणसे भी मोक्षप्राप्ति है। नीतिका मार्ग सत्य, क्षमा, दम और निर्लो- कयोंकि कितने ही लोगोंकी यह धारणा भता ढोंगसे नहीं पा सकते । जो सचमुच होती है कि,नीतिका आचरण वेदान्तज्ञान- ही नीतिमान् महात्मा हैं, उन्हींसे इन के समान कठिन नहीं है । परन्तु वास्तव- सद्गुणोंका आचरण होता है । यही चतु. में ऐसी बात नहीं है। संसारमें नीतिसे विध धर्म मनुस्मृतिमें बढ़ाकर दशविध चलनका काम, जङ्गलमें जाकर योगसे धर्मबतलाया गया है। उसे प्रत्येक मनुष्य-मन निश्चल करनेके समान ही, किंबहुना को-फिर वह चाहे किसी वर्ण अथवा उससे भी अधिक कठिन है। ऐसा पाच- आश्रमका हो-अवश्य पालना चाहिए। रण करनेवाले लोग युधिष्ठिर और राम- भगवद्गीतामें इस विषयका विचार अप्र- के समान अथवा भीष्म और दशरथके निम रीतिसे किया गया है और यह बत- समान, प्रत्येक समय, हाथकी उँगलियों लाया है कि, सज्जनोंके सद्गण कौनसे होते . पर गिनने योग्य ही मिलते हैं। इस हैं। इन सद्गुणोंको दैवी सम्पत्का नाम संसारमें मनुष्य पर सदैव ऐसे अवसर दिया गया है। वे सद्गण ये हैं:-निर्भयता, आते हैं कि बड़ा धैर्यशाली और दृढ़ चित्तशुद्धि, ज्ञानयोगमें एकनिष्टता, मनुष्य भी नीतिका मार्ग छोड़ देनेको दातृत्व, बाह्य इन्द्रियोंका संयम, यक्ष और उद्यत हो जाता है। ऐसा मनुष्य भी अध्याय, सरलता, अहिंसा, सत्यभाषण, स्वार्थके चक्कर में पड़ जाता है। विद्वान् अक्रोध, त्याग, शांति, चुगली न करना, भी ऐसे संशयमें पड़ जाते हैं कि, नीतिके प्राणिमाष पर दया करना, विषय-लम्पट आचरणसे वास्तबमें कुछ लाभ है या न होना, नम्रता, जनलजा, स्थिरता, तेज, नहीं: और फिर वे सत्य, क्षमा और दया. क्षमा, धैर्य, पवित्रता, दूसरेसे डाह न का मार्ग छोड़ देते हैं । साधारण मौकों करणा और मानीपनका अभाव, ये दैवी पर भी बड़े बड़े प्रतिष्ठित मनुष्य, थोड़े सम्पत्तिके गुण हैं: और दम्भ, दर्प (गर्व), स्वार्थके लिए, सत्यका सहारा छोड़ देने. मानीपन, क्रोध.मर्मवेधक भाषण, अज्ञान, के लिए तैयार हो जाते हैं। फिर साधा- ये आसुरी सम्पसिके लक्षण हैं-"देवी रण जनोका क्या कहना है ? यह बात हम सम्पद्विमोक्षाय निबन्धायासुरी मता" संसारमें पग पग पर देखते ही रहते हैं। दैवी सम्पत्तिसे मोक्ष प्राप्त होगा: और फिर इसमें क्या सन्देह है कि, नीतिका