पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/५७४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
५४६
महाभारतमीमांसा
  • महाभारतमीमांसा *

मुझे पिताके तुल्य प्राज्ञा कर । मैं ही डालूँगा । त्रेतायुगमें संपत्ति और संकर्षण, प्रद्युम्न, अनिरुद्ध अवतार लेता सामर्थ्य से क्षत्रिय मत्त होंगे, तो भृगुकुल- हूँ, और अनिरुद्धके नाभिकमलसे ब्रह्म- में परशुराम होकर मैं उनका नाश करूँगा। देवका अवतार होता है।" यह कहकर प्रजापतिके दो पुत्र-ऋषि, एकत और इसके आगे इस अध्यायमें दशावतारोंके | द्वित, त्रित ऋषिका घात करेंगे जिसके संक्षिम चरित्रका जो कथन किया है वह प्रायश्चित्तके लिए उन्हें बन्दरकी योनिमें बहत ही महत्वका है। इन दस अवतारों- अन्म लेना पडेगा। उनके वंशमें जो महा- की कल्पना बहुत प्राचीन नहीं है। उसका बलिष्ट बन्दर पैदा होंगे वे देवोंको छुड़ाने- प्रारम्भ नारायणीय आख्यानसे है। प्रव-, के लिए मेरी सहायता करेंगे और मैं तारकी कल्पनाका बीज भगवद्गीतामें ही पुलस्त्यके कुलके भयंकर राक्षस रावण है। भगवान्ने स्पष्ट कहा है कि-"भक्तों और उसके अनुयायियोंका नाश करूँगा। का उद्धार करनेके लिए और धर्मकी (बानरोंकी यह उत्पत्ति बहुत ही भिन्न उन्नतिके लिए मैं बार बार अवतार लेता और विचित्र है जो रामायणमें भी नहीं है। परन्तु यहाँ यह नहीं बतलाया कि है।) द्वापरके अन्तमें और कलियुगा- श्रीविष्णुके दस अवतार हैं । यह निर्वि- रम्भके पूर्व में मथुरामें कंसको मारूँगा। वाद है कि यह दशावतारकी कल्पना द्वारका स्थापित करके अदिति माताका बौद्ध धर्मकी जय या पराजय होनेके पूर्व-अपमान करनेवाले नरकासुरको मारूँगा। की है। अर्थात् सचमुच महाभारतके काल-। फिर प्राग्ज्योतिषाधिपतिको मारकर वहाँ- की है, क्योंकि इन दस अवतागेम बुद्धका की सम्पत्ति द्वारकामें लाऊँगा । तदनन्तर अन्तर्भाव नहीं है। बली-पुत्र वाणासुरको माडंगा, फिर हंसः कर्मश्च मत्स्यश्च प्रादुर्भावा द्विजोत्तम । सीमनिवासियोंका नाश करूँगा । फिर बराहो नारसिंहश्च वामनो राम एव च ॥ काल-यवनका वध कमैंगा, जरासन्धको रामो दाशरथिश्चैव सान्वनो काल्किमेव च ॥ मारूंगा और युधिष्ठिर के गजसूयके समय इस समय लोगों में जो अवतार प्रसिद्ध शिशुपालका वध करूँगा।” लोग मानते है वे बहुधा ये हो है: परन्तु प्रारम्भमें जो हैं कि भारती-युद्ध-कालमें नर-नारायण हंस है, केवल वह भिन्न है और उसके कृष्णार्जुनके रूपसे क्षत्रियोंका संहार बदले नवाँ अवतार बुद्ध आया है। हंस करनेके लिए उद्यक्त हुए हैं। "अन्तमें अवतारकी कथा इसमें नहीं है परन्तु द्वारकाका तथा यादवोंका भी घोर प्रलय वाराहकी है और वहींसे वर्णन शुरू में ही कराऊँगा। इस प्रकार अपार कर्म होता है,-"जो पृथ्वी समुद्र में डूबकर करनेपर मैं उस प्रदेशको वापस जाऊँगा नष्ट हो गई उसे मैं वाराह-रूप धारण कर जो ब्राह्मणोको पूज्य है और जिसे मैंने ऊपर लाऊँगा । हिरण्याक्षका वध मैं पहले निर्माण किया ।" काँगा। नृसिंह रूप धारण कर मैं हिरण्य- ऊपरके विस्तृत अवतरणमें नाराय- कशिपुको माऊँगा । बलि राजा बलवानगीय-आख्यानसे दशावतारकी प्रचलित होगा, तो मैं वामन होकर उसे पातालमें कल्पना ली गई है और श्रीविष्णु या • यह ध्यानमें रखने योग्य है कि महाभारतमें अब- नारायणने भिन्न भिन्न असुरोको मारनेके नार शब्द नहीं आया है-प्रादुर्भाव आया है। (शा लिए जो जो अवतार धारण किये हैं ०३३६) उनका वर्णन किया गया है । इस पर्णनमें