पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/७१

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  • महाभारत ग्रन्थका काल

४५ - कौन सी है। प्रथम महत्त्वकी बात यह है भो न था। ऐसी अवस्थामें सिकन्दरकी कि महाभारतमें यवनोंका उल्लेख बार बार चढ़ाईको, अर्थात् ईसवी सन्के पहले लग- किया गया है। उनकी कुशलताके वर्णन* भग ३२० वर्षको, साधारण तौर पर, महा- में यह भी कहा गया है कि वे बड़े योद्धा भारतके कालकी पूर्वमर्यादा कह सकते हैं।पादिपर्वमें वर्णन है कि-"जिस यवन हैं। और यह बात सिद्ध मानी जा सकती राजाको वीर्यवान् पांडु भी न जीत सका है, कि ईसवी सन्के पहले ३२० वर्षसे उसे अर्जुनने जीत लिया।" यह बात लेकर सन् ५० ईसवीतक एक लाख श्लोको प्रसिद्ध है कि यवनोंका और हमारा बहुत का वर्तमान महाभारत तैयार हुआ है। समीपका परिचय अलेक्जेन्डर (सिकन्दर) ज्योतिष शास्त्रके आधार पर दूसरा के समय हुआ। इसके पहले यवनोंका प्रमाण दिया जा सकता है। ज्योतिष शास्त्र- और हमारा जो परिचय हुआ था वह की दो बाते-अर्थात् राशि और नक्षत्र- समीपका न था। हम लोगोंको उनके इस काल-निर्णयके काममें बहुत उपयोगी बुद्धि-कौशल्यका परिचय या अनुभव कुछ हुआ करती हैं। हमारे मूल पार्य-ज्योतिष- हापकिन्सका कथन है कि महाभारतमे ग्रीक की रचना नक्षत्रो पर है और यनानी (यनानी) शब्दोंका भी प्रवेश हो गया है। जतुदाह पर्वमे ज्योतिषकी रचना राशियों पर है। बहत जहॉ यह वर्णन है कि जमीनके अन्दर खोदकर गम्ता । कुछ निश्चयात्मक रीतिसे यह बतलाया जा बनाया गया था, वहाँ मुरङ्ग शब्दका प्रयोग किया गया सकता है कि हिन्दुस्थानमें राशियोका है; जैसे "सुरंगा विविशुरतणं मात्रामा मरिदमाः ।" प्रवेश कबसे हश्रा । प्रमाणकी दृष्टिसे यह (भा० आदि० अ० १४८----१२)। हापकिन्सका कथन है । एक महत्त्वकी बात है कि महाभारतमें कि यह सुरङ्ग शब्द ग्रीक मिरि जम' शब्दमे बना है। हम भी समझते है कि यह शब्द ग्रीक होगा। यह भी जान मेष, वृपम आदि राशियोका उल्लेख कहीं पडता है कि पुरोचन यवन था । सुरङ्ग लगानेकी युक्ति निर्देश यूनानियोंके युद्धकलामे होगी । इस जाँदाह पर्वमे यह किया गया है, वहाँ वहाँ यही कहा गया वर्णन है कि म्लेच्छ भाषामें बातचीत करके विदुरने युधि- है कि अमुक बात अमुक नक्षत्र पर हुई। हिरको लाक्षागृहमें जलाये जाने के प्रयत्नकी सूचना इस गमायणमें जहाँ रामजन्मका वर्णन है, प्रकार दे दी कि जो और लोगोंकी समझमे न आ सकी। परन्तु भागे चलकर विदुरका जो भाषण दिया गया है वह वहाँ यही कहा गया है कि उस समय संस्कृत में और कृट लोकोंके समान है। यह एक महत्त्वका कके लग्न पर पाँच ग्रह उच्च स्थानमें थे। प्रश्न है कि विदुरने किस म्लेच्छ भाषामें बातचीत की। इससे निश्चय होता है कि हिन्दुस्थानमें टीकाकारने सुझाया है कि वह प्राकृत भाषामें बोला । परन्तु राशियोंके प्रचलित हो जाने पर रामायण- सच बात तो यह है कि प्राकृत कुछ म्लेच्छ भाषा नहीं को वर्तमान स्वरूप प्राप्त हुआ है। महा- है। और यदि वह वैसी हो तो भी इस देशके साधारण भारतमें यधिष्ठिरका जो जन्म-काल बत- लोग उसी भाषामें बातचीत करते थे, इसलिये यह नहीं - । लाया गया है वह राशि-व्यतिरिक्त है। माना जा सकता कि वह लोगोकी समझमें भाई न हो। हमारा खयाल है कि वह भाषा यूनानी ही होगी। सिक- उसके सम्बन्धमे यह वर्णन है कि जब चन्द्र न्दरके जमाने में कुछ समयतक, पंजाबमे राजभाषा समझ ज्येष्ठा नक्षत्र पर था, तब अभिजित् मुहर्स कर, कुछ लोग यूनानी भाषा बोलना सीख गये होंगे; और में युधिष्ठिरका जन्म हुआ । सारांश, वर्तमान समयमें जिस प्रकार हम लोग दूसरोंको समझमें -- ----- -- नभाने देनेके लिये अँगरेजी भाषामें बोलते है, उसी प्रकार .महाभारतके आदि पर्वमें युधिष्ठिरके जन्मकालके गुप्त कार्रवाइयोंके लिये यूनगनी भाषाका उपयोग किया । सम्बन्धमे यह वाक्य है:-"पेन्द्र चन्द्रसमारोहे मुहूनें। जाता होगा। मारांश, जब इस प्रकार यूनानी भाषाका भिजितेऽष्टमे। दिवामध्यगते मर्ये तिथौ पूर्णेनिपूजिते।" कुछ प्रचार हो चुका होगा तब महाभारत बना होगा। इम भोकमे राशिका उल्लेख कहीं नहीं है । इस पर