पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
४६
महाभारतमीमांसा
  • महाभारतमीमांसा

महाभारतमें जहाँ तहाँ नक्षत्रोंका ही उल्लेख मेषादि गशियोंके नाम उसी समय प्रच- है. राशियोंका उल्लेख नहीं है। इससे लित हुए हैं जब कि यूनानियोंके साथ निर्णयात्मकरीतिसे मालूम होजाता है कि हमारा दृढ़ परिचय हो गया था। इसलिये हिन्दुस्थानमें राशियोंका प्रचार महाभारत- प्रस्तुत विवेचनमें इस बातका ऐतिहासिक के बाद हुआ है। प्राचीन समयके अपने विचार भी किया जाना चाहिये कियना- किसी ग्रन्थके विषयमें यदि निश्चयात्मक नियोकेसाथ हमारारदपरिचय कब हुआ। गतिसे जानना हो कि वह ग्रन्थ सचमुच , ईसवी सन्के पहिले ३२३ वे वर्ष में प्राचीन है या नया, तो राशियोका उल्लेख सिकन्दरने हिन्दुस्थान पर चढ़ाई की थी। एक अत्यन्त महत्त्वका शापक प्रमाण है। उसी समय ग्रीक लोगों के साथ हमारा इस उल्लेखके आधार पर प्राचीन ग्रन्थोके . निकटका परिचय हुश्रा और हमें उनकी दो भाग–अर्थात पूर्वकालीन और अाधु- शरताकी पहचान हुई। परन्तु उस समय निक-हो जाते हैं। अब हमें इस बातका उनके ज्योतिष-शास्त्रका कुछ दृढ़ परिचय विचार करना चाहिये कि हिन्दुस्थानमें हम लोगोंको नहीं हुआ, क्योंकि सिकन्दरके गशियाँ कबसे प्रचलित हुई। लौट जाने पर पञ्जाबसं ग्रीक-सत्ताका यह बात निश्चयात्मक रीतिसे सिद्ध उच्चाटन चन्द्रगुप्तने कर डाला। इसके बाद है कि राशियाँ हम लोगोंने यूनानियोंसे चन्द्रगुप्तके दरबाग्में मेगास्थिनीज़ नाम- ली हैं। शङ्कर बालकृष्ण दीक्षित कृत 'भार- ' का एक यूनानी राजदूत रहता था और तीय ज्योतिष शास्त्र' के १३६ वे पृष्ठमें यह । आगे भी कुछ दिनोंतक यूनानियोंके राजदूत निश्चय किया गया है कि ईसवी सन्के यहाँ रहा करते थे। परन्तु यह सम्बन्ध लगभग ४५० वर्ष पूर्व हमारे यहाँ राशियाँ, पर-राष्ट्रीय सम्बन्धके ढंगका था, इस- ली गई। महाभारतमें श्रवणादि गणना है, ' लिये इसमें विशेष दृढ़ परिचय होनेकी उसका समय शक ४५० है और भारतमें कोई सम्भावना न थी। यह भी नहीं कहा राशियाँ नहीं हैं, इससे प्रकट होता है कि · जा सकता कि सिकन्दरके पहले यूना- शकके पहले लगभग ५०० वर्षतक मेषादि नियोंके साथ हमारा कुछ भी परिचय न नाम हमारे देशमें नहीं थे।" दीक्षितका था । पारसीक (Persian) लोगोंके बाद- मत है कि शकके पहले ५०० के लगभग शाह दाराउस और खुसरोने पूर्वकी ओर हमारे देश मेवादिका प्रचार हुश्रा: परन्तु सिन्धतकका मुल्क जीत लिया था और इस मतमें बहुत कुछ ग्द-बदल करना , पश्चिमकी अोर एशिया माइनरके किनारे पड़ेगा। इसमें सन्देह नहीं कि हमारे देशमें परकी ग्रीक रियासतोंको जीत लिया था। चतुर्धरको यह टीका है:-"ऐन्ने ज्येष्ठानक्षत्रे अष्टमे सम्ब- ग्रीक लोगोके इतिहाससे पता चलता है सरारम्भात् अभिजितेऽभिजिति विशन् मुहूर्त स्यान्होऽष्टमे । इस बादशाहकी फौजमें भिन्न भिन्न देशोंकी मुहूर्ते दिवा शुक्लपक्षे म यगते तुलागते तिथौ पूर्णे पूर्णयां सेनाएँ, ग्रीक लोगोंकी तथा हिन्दुस्थान- पंचम्यां अयं योगः।" इसमे 'मध्यगने' का अर्थ 'तुलायन- के निवासियोंकी भी सेनाएँ, थी और गते' नही किया जा सकता। यह एक कुटार्थका ही प्रकार हमारे हिन्दुस्थानी भाई उस बादशाहके है। कदाचित् टोकाकारको 'दिवा मध्यगते मर्ये' अधिक जान . । साथ यूनान देशतक गये भी। सारांश, पड़ा होगा (क्योंकि अभिजित् गुहूर्त से उसका बोध हो. ईसवी सनके पहिले ५०० वर्ष तक यूना- जाता है) इसलिये यह अर्थ किया गया हो। परन्तु इसका ' कुछ दूसरा अर्थ हो ही नहीं सकता। कुछ भी हो, यह नियोके साथ हमारे सहवासका प्रमाण बात निर्विवाद मिझ है कि मलमे राशिका नाम नहीं है। मिलना है। इसके पहिले भी कई सौवर्ष